"मथुरा की मूर्तिकला": अवतरणों में अंतर

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|title=सांस्कृतिक विरासत|accessmonthday=[[२२ मई]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय निदेशालय|language=}}</ref>
 
इतिहास पर दृष्टि डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि मधु नामक दैत्य ने जब मथुरा का निर्माण किया तो निश्चय ही यह नगरी बहुत सुन्दर और भव्य रही होगी। शत्रुघ्न के आक्रमण के समय इसका विध्वंस भी बहुत हुआ और वाल्मीकि [[रामायण]] तथा [[रघुवंश]], दोनों के प्रसंगों से इसकी पुष्टि होती है कि उसने नगर का नवीनीकरण किया। लगभग पहली सहस्राब्दी से पाँचवीं शती ई० पूर्व के बीच के मृत्पात्रों पर काली रेखाएँ बनी मिलती हैं जो ब्रज संस्कृति की प्रागैतिहासिक कलाप्रियता का आभास देती है। उसके बाद मृण्मूर्तियाँ हैं जिनका आकार तो साधारण लोक शैली का है परन्तु स्वतंत्र रूप से चिपका कर लगाये आभूषण सुरुचि के परिचायक हैं। मौर्यकालीन मृण्मूर्तियों का केशपाश अलंकृत और सुव्यवस्थित है। सलेटी रंग की मातृदेवियों की मिट्टी की प्राचीन मूर्तियों के लिए मथुरा की पुरातात्विक प्रसिद्ध है। लगभग तीसरी शती के अन्त तक यक्ष और यक्षियों की प्रस्तर मूर्तियाँ उपलब्ध होने लगती हैं।<ref>{{cite book |last=शर्मा |first=रमेशचंद्र |title= मथुरा की मूर्तिकला "उत्तर प्रदेश" पत्रिका|year=१९८१ |publisher="उत्तर प्रदेश" पत्रिका, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग उत्तर प्रदेश|location=लखनऊ|id= |page= ४९-५३
|accessday= २२|accessmonth= मई|accessyear= २००९}}</ref>
 
==संदर्भ==
<references/>
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==शुंगकाल के शिल्प प्रयोग==
==कुषाण युग और बुद्ध मूर्ति==
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==शिल्प के अन्य प्रयोग==
==गुप्त युग में दिव्यता==
-->
 
[[श्रेणी:प्राचीन भारतीय कला]]