"दशनामी सम्प्रदाय": अवतरणों में अंतर

यदि गोवर्धन मठाधीश स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के अनुसार सन्यास लेने का अधिकार केवल ब्राह्मण...
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{{स्रोतहीन|date=जून 2015}}
'''दशनामी''' शब्द [[संन्यास|संन्यासियों]] के एक संगठनविशेष के लिए प्रयुक्त होता है और प्रसिद्ध है कि उसे सर्वप्रथम स्वामी [[आदि शंकराचार्य|शंकराचार्य]] ने चलाया था, किंतु इसका श्रेय कभी-कभी [[स्वामी सुरेश्वराचार्य]] को भी दिया जाता है, जो उनके अनन्तर दक्षिण भारत के [[शृंगेरी मठ]] के तृतीय आचार्य थे। ("ए हिस्ट्री ऑव दशनामी नागा संन्यासीज़ पृ. 50")
गोस्वामी एक महान समाज ब्राह्मण से उच्च गोस्वामी है !
यदि गोवर्धन मठाधीश स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के अनुसार सन्यास लेने का अधिकार केवल ब्राह्मण को है तो, सभी सन्यासी पुरे भारत के सात अखाड़े चार मठ में दसनाम का प्रयोग क्यों करते हैं, ब्राह्मण उपनाम धारण करने के बजाय।
आखिर क्यों दशनामी अखाड़ा में ही सन्यास लेने वाले को असली नागा साधु या सन्यासी का दर्जा दिया जाता है।
ब्राह्मण उपनाम को क्यो नही।
इसके पीछे आखिर क्या वजह है कि गृहस्थ सन्यासी को कोई महत्व नहीं जा रहा है?
यह गोस्वामी समाज पर अभुतपूर्व सवाल है जिसका जवाब समाज स्वयं निर्णय लेवें।
आपको ज्ञात हो कि संपूर्ण विश्व में लगभग ७ करोड़ दसनाम गोस्वामी है, अकेले भारत में लगभग ४.८० करोड़ और गोवर्धन मठाधीश की मानें तो गोस्वामी पथभ्रष्ट नागा साधुओं के वंशज हैं तो इतने नागा साधु अचानक गृहस्थ आश्रम में कैसे प्रवेश कर गया यह अत्यंत विचारणीय विषय है??
और यदि मान लिया जाए कि ये सब अचानक गृहस्थ जीवन में आ गये तो दसनाम समाप्त कर अखाड़ों में ब्राह्मण उपनाम को जगह क्यो नही दिया गया।
जैसे कि वे यह भी कहते हैं कि हमारे गुरु परंपरा (ऋषि परंपरा) को वर्तमान में १अरब ९७करोड़ २७ लाख ४९हजार ११८ वर्ष हो गए हैं जो कि पौराणिक प्रमाण से परिपूर्ण है।
तो जब साबित हो रहा है कि दसनाम इतने वर्षों से धरातल पर विद्यमान है तो आरुणच्युत कैसे हुआ??
उनके अनुसार राम सेतु को १७५०० वर्ष हुए हैं और वैज्ञानिकों ने भी रिसर्च में यह जवाब ही दिया है,तो इनके अरबों वर्ष में करोड़ों वर्ष पुर्व द्वापर युग के पहले त्रेता युग में श्री राम सेतु का निर्माण हुआ है तो यह भी पुराणों का अपमान और स्वयं के गुरु परंपरा के अपमान करने के बराबर है।
आपको अवगत करा दें कि यह सब केवल दसनाम गोस्वामी संप्रदाय को बदनाम व दुनिया दृष्टि में नीचा दिखाने के लिए किया जा रहा है, ताकि गोस्वामी समाज की पुजा न हो🤔🤔🤔🤔
आपको ज्ञात हो कि हम जिन्हें अपने वंशावली का ज्ञाता समझते हैं *राव* / *भाट* वह जाति से ब्राम्हण है जो पुर्व में गरीब परिवार से हुआ करते थे तो ब्राह्मण समाज के द्वारा उन्हें रोजगार का लालच देकर गोस्वामी समाज के महत्व घटाने के लिए गोस्वामी समाज के वंशावली के रखवाले बना कर समाज में पेश किया गया यह लगभग आज से ४५० वर्ष पुर्व ही प्रारंभ हुआ था तब अहमादाबाद, गुजरात में श्री नित्यानंद पुरी गोस्वामी जी महाराज ने पुरजोर विरोध किया था, और ज्ञात हो कि उसी कारण मेरे घर में आज भी राव भाट व उनके द्वारा बनाए गए वंशावली *पोथी* पुजा भी नहीं कि जाती है। श्री नित्यानंद पुरी गोस्वामी मेरे १४ पीढ़ी पुर्व थे।
और उन राव भाटवों के द्वारा एक विचित्र वंशावली तैयार किया गया जिसमें आदि नारायण से वंशावली प्रारंभ करने के बजाय अखाड़े के नागा साधुओं के नाम से प्रारंभ किया गया। हमारे वंशावली राव के पास केवल ७ पीढ़ी के हैं व उनसे पुर्व नहीं क्योंकि मेरे पुर्वजों ने कभी उनसे कोई संबंध नहीं रखा।
वर्तमान में यह षड्यंत्र जारी है कि कहीं भी कोई भी ब्राह्मण किसी भी पुराणों के कथा करते हैं तो सृष्टि प्रकरण में अनिवार्य व सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण *सन्यासी वर्णन* की कथा नहीं कहते हैं और जल्द ही पुराणों में उन कथा के भावों को परिवर्तित करने का प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि पुराणों में वर्णित सन्यासी वर्णन में गृहस्थ सन्यासी का वर्णन विषेश रूप से की गई है।
गोस्वामी समाज सन्यासी (नागाओं) के नहीं बल्कि ऋषियों के संतान हैं।
उक्त बातें पौराणिक प्रमाणों से परिपूर्ण है।
कृपया गोस्वामी समाज एकजुट होकर एक मंच होकर, चारों शंकराचार्य को एक मंच करके इस विषय पर बात रखें और अंतिम निर्णय पर पहुंचाने का प्रयास करें अन्यथा जिस तरह लोगों में आशा राम, राम-रहीम, के तरह विचार व दृष्टिकोण स्थापत्य हो जाएगा गोस्वामी समाज के प्रति। और समाज का अस्तित्व ख़तरे में है।
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इन सब षड्यंत्रों का कारण एक श्लोक के अर्थ से ही समझा जा सकता है कि ब्राह्मण समाज शंकराचार्य के सहयोग से गोस्वामी समाज के प्रति ऐसी व्यवहार क्यों कर रही है❓🤔🤔
*ब्रह्मचारी सहस्त्रेशु वानप्रस्थौ सतत्रयं।*
*ब्रहम्णानाम् च कोटिश्च यतिरेको विषिष्यते।।*
अर्थात:- एक हजार ब्रह्मचारी , सात सौ वानप्रस्थी, और एक करोड़ ब्राह्मण के बराबर एक गोस्वामी होता है।
*अवधुतश्च द्विविद्यो गृहस्थ चितानुग:*
*सचैलश्चापि दिग्वाशा: विधियोनि विहारवान।*
*सदार:सर्वदारस्थश्चादृहाशो दिगम्बर्*
*गृहावधूतो देविशि! द्वितयस्तु सदाशिव:* (शिव पुराण,स्कंद पुराण, लिंग पुराण)
अर्थात:- अवधुत दो भागों में बंटे हैं,१:- पहला गृहस्थ सन्यासी, कपड़ा पहनने वाला तथा विधिपूर्वक स्त्रीसंग करने वाले,२:- स्त्री त्यागी दुसरा है। हे!देवि गृहस्थ सन्यासी को सदाशिव ही जानों।
 
आपका अपना:-
पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
डिंडोरी जिला मुंगेली छत्तीसगढ़।
८१२००३२८३४
(पुर्व पत्रकार एवं गोस्वामी समाज पर पुराणों में वर्णित महत्व पर रिसर्च कर्ता)
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कृपया समाज हित में ५ मिनट समय निकाल कर उक्त लेख पर विचार जरूर करें।
 
व सभी सामाजिक ग्रुपों में शेयर कर समाज के प्रति लोगों को जागरूक करने का कष्ट करें।
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== परिचय ==