"कुतुब-उद-दीन ऐबक": अवतरणों में अंतर

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== ऐबक के सैन्य अभियान ==
[[उसने कहा था|उसने]] गोरी के सहायक के रूप में कई क्षेत्रों पर सैन्य अभियान में हिस्सा लिया था तथा इन अभियानों में उसकी मुख्य भूमिका रही थी। इसीसे खुश होकर गोरी उसे इन क्षेत्रों का सूबेदार नियुक्त कर गया था। महमूद गोरी विजय के बाद [[राजपूताना]] में राजपूत राजकुमारों के हाथ सत्ता सौंप गया था पर राजपूत तुर्कों के प्रभाव को नष्ट करना चाहते थे। सर्वप्रथम, ११९२ में उसने [[अजमेर]] तथा [[मेरठ]] में विद्रोहों का दमन किया तथा दिल्ली की सत्ता पर आरूढ़ हुआ। दिल्ली के पास [[इन्द्रप्रस्थ]] को अपना केन्द्र बनाकर उसने भारत के विजय की नीति अपनायी। भारत पर इससे पहले किसी भी मुस्लिम शासक का प्रभुत्व तथा शासन इतने समय तक नहीं टिका था।
 
जाट सरदारों ने हाँसी के किले को घेर कर तुर्क किलेदार मलिक नसीरुद्दीन के लिए संकट उत्पन्न कर दिया था पर ऐबक ने जाटों को पराजित कर हाँसी के दुर्ग पर पुनः अधिकार कर लिया। सन् ११९४ में [[अजमेर]] के उसने दूसरे विद्रोह को दबाया और [[कन्नौज]] के शासक [[जयचन्द]] के सातथचन्दवार के युद्ध में अपने स्वामी का साथ दिया। ११९५ इस्वी में उसने कोइल ([[अलीगढ़]]) को जीत लिया। सन् ११९६ में अजमेर के मेदों ने तृतीय विद्रोह का आयोजन किया जिसमें [[गुजरात]] के शासक भीमदेव का हाथ था। मेदों ने कुतुबुद्दीन के प्राण संकट में डाल दिये पर उसी समय महमूद गौरी के आगमन की सूचना आने से मेदों ने घेरा उठा लिया और ऐबक बच गया। इसके बाद ११९७ में उसने भीमदेव की राजधानी [[अन्हिलवाड़ा]] को लूटा और अकूत धन लेकर वापस लौटा। ११९७-९८ के बीच उसने कन्नौज, [[चन्दवार]] तथा [[बदायूँ]] पर अपना कब्जा कर लिया। इसके बाद उसने सिरोही तथा मालवा के कुछ भागों पर अधिकार कर लिया। पर ये विजय चिरस्थायी नहीं रह सकी। इसी साल उसने बनारस पर आक्रमण कर दिया। १२०२-०३ में उसने चन्देल राजा परमर्दी देव को पराजित कर [[कालिंजर]], [[महोबा]] और [[खजुराहो]] पर अधिकार कर अपनी स्थिति मज़बूत कर ली। इसी समय गोरी के सहायक सेनापति [[बख्यियार खिलजी]] ने [[बंगाल]] और [[बिहार]] पर अधिकार कर लिया।