"हिन्दू धर्म में गौतम बुद्ध": अवतरणों में अंतर

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भगवान बुद्ध ब्रह्मा का अवतार नहीं है
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[[हिन्दू|हिन्दुओं]]गौतम बुद्ध हिंदुओं के [[वैष्णवकर्मकांड सम्प्रदाय]]ढोंग पाखंड पशु हत्या अंधविश्वास स्वार्थ भावना और धर्म का निजी स्वार्थ हेतु उपयोग के विरोधी थे विज्ञानवादी थे विज्ञान में [[गौतमविश्वास बुद्ध]]करते थे भी कहते थे स्वर्ग की प्राप्ति करने के लिए ईश्वर को [[भगवानखोजने विष्णु]]में समय व्यर्थ मत करो इस संसार में कोई ईश्वर नहीं है जो भी है वह सत्य है इसलिए ईश्वर को खोजने में अपना समय व्यर्थ मत करो मैं सदैव कर्म का [[अवतार]]सिद्धांत देते थे अगर मेहनत करोगे तो फल मिलेगा किसी देवी देवता की पूजा पाठ करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा इसलिए नास्तिक व्यक्ति ही सर्वोत्तम व्यक्ति है जो हर घटना का प्रमाण मांगता है और स्वयं का विवेक अनुसार चलता है वह कहते थे कि मुझे कोई ईश्वर दिखा दे तब मैं ईश्वर को मानो उनका मानना था कि हिंदू धर्म व्यक्ति का शोषण कर रहा है और वह कुछ लोगों के भले के लिए बनाया गया है इसमें सभी का भला नहीं हो सकता क्योंकि यह धर्म मानसिक गुलामी पर आधारित है किसी का प्रमाण नहीं मांगता किसी सुनी सुनाई बातों को मान लेता है इसलिए वह हिंदू धर्म में चल रही आडंबरों के विरोधी थे और कुछ ब्राह्मणों ने उनकी हत्या करने का मानासदेव जाताप्रयत्न है।किया। बौद्ध मत [[वेद|वेदों]] पर आधारित नहीं है और '[[नास्तिक]]' है, [[आत्मा]] के अस्तित्व को अस्वीकार करता है; अतः हिन्दू दार्शनिकों ने बौद्ध मत को सनातन धर्म के अन्दर 'नास्तिक' मत के रूप में स्वीकार किया है।[[चित्र:Viṣṇu_as_Buddha_making_gesture_of_dharmacakrapravartana_flanked_by_two_disciples.jpg|अंगूठाकार|394x394पिक्सेल|गौतम बुद्ध, विष्णु के अवतार के रूप में]]बुद्ध का उल्लेख सभी प्रमुख [[पुराण|पुराणों]] तथा सभी महत्वपूर्ण हिन्दू ग्रन्थों में हुआ है। किन्तु सभी एक ही 'बुद्ध' के बारे में हों, ऐसा सम्भवतः नहीं है। किन्तु इन ग्रन्थों में से अधिकांश स्पष्टतः बौद्ध मत के प्रवर्तक 'बुद्ध' की ही बात करते हैं। इन ग्रन्थों में मुख्यतः बुद्ध की दो भूमिकाओं का वर्णन है- धर्म की पुनः स्थापना के लिये नास्तिक (अवैदिक) मत का प्रचार तथा पशु-बलि की निन्दा। नीचे उन कुछ पुराणों में बुद्ध के उल्लेख का सन्दर्भ दिया गया है-
{{स्रोतहीन|date= अगस्त 2016}}
 
[[हिन्दू|हिन्दुओं]] के [[वैष्णव सम्प्रदाय]] में [[गौतम बुद्ध]] को [[भगवान विष्णु]] का [[अवतार]] माना जाता है। बौद्ध मत [[वेद|वेदों]] पर आधारित नहीं है और '[[नास्तिक]]' है, [[आत्मा]] के अस्तित्व को अस्वीकार करता है; अतः हिन्दू दार्शनिकों ने बौद्ध मत को सनातन धर्म के अन्दर 'नास्तिक' मत के रूप में स्वीकार किया है।[[चित्र:Viṣṇu_as_Buddha_making_gesture_of_dharmacakrapravartana_flanked_by_two_disciples.jpg|अंगूठाकार|394x394पिक्सेल|गौतम बुद्ध, विष्णु के अवतार के रूप में]]बुद्ध का उल्लेख सभी प्रमुख [[पुराण|पुराणों]] तथा सभी महत्वपूर्ण हिन्दू ग्रन्थों में हुआ है। किन्तु सभी एक ही 'बुद्ध' के बारे में हों, ऐसा सम्भवतः नहीं है। किन्तु इन ग्रन्थों में से अधिकांश स्पष्टतः बौद्ध मत के प्रवर्तक 'बुद्ध' की ही बात करते हैं। इन ग्रन्थों में मुख्यतः बुद्ध की दो भूमिकाओं का वर्णन है- धर्म की पुनः स्थापना के लिये नास्तिक (अवैदिक) मत का प्रचार तथा पशु-बलि की निन्दा। नीचे उन कुछ पुराणों में बुद्ध के उल्लेख का सन्दर्भ दिया गया है-
 
[[हरिवंश पर्व]] (1.41)