"तर्कशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
[[यूरोप]] में तर्कशास्त्र का प्रवर्तक एवं प्रतिष्ठाता यूनानी दार्शनिक अरस्तू (३८४-३२२ ई० पू०) समझा जाता है, यों उससे पहले कतिपय तर्कशास्त्रीय समस्याओं पर वैतंडिक ([[सोफिस्ट]]) शिक्षकों, [[सुकरात]] तथा [[अफलातून]] या [[प्लेटो]] द्वारा कुछ कुछ चिंतन हुआ था। यह दिलचस्प बात है कि स्वयं अरस्तू, जिसने विचारों के इतिहास में पहली बार ज्ञान का विभिन्न शाखाओं में विभाजन किया, 'तर्कशास्त्र' नाम से परिचित नहीं है। उसने अपनी एतद्विषयक विचारणा को 'एनेलिटिक्स' (विश्लेषिकी) नाम से अभिहित किया है। तर्कशास्त्र के वाचक शब्द 'लाजिका' का सर्वप्रथम प्रयोग रोमन लेखक [[सिसरो]] (१०६-४३ ई० पू०) में मिलता है, यद्यपि वहाँ उसका अर्थ कुछ भिन्न है।
 
अरस्तू के अनुसार तर्कशास्त्र का विषय चिंतन है, न कि चिंतन के वाहक शब्दप्रतीक। उसके तर्कशास्त्रीय ग्रंथों में मुख्यतः निम्न विषयों का प्रतिपादन हुआ है :
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*(३) [[अनुमान]] और उसके विविध रूप, जिन्हें [[न्यायवाक्य|न्यायवाक्यों]] (सिलाजिज्मों) के रूप में प्रकट किया जाता है।
 
वाक्य पदों से बनता है। प्रत्येक पद कुछ वस्तुओं का संकेत करता है और कुछ गुणों या विशेषताओं का बोधक भी होता है। वस्तुसंकेत की विशेषता पद का 'डिनोटैशनडिनोटेशन' कहलाती है, संकेतित स्वरूपप्रकाशक गुणों को समष्टि रूप में 'कॉनोशनकॉनोटेशन' कहते हैं, जैसे 'मनुष्य' पद का डिनोटेशन 'सब मनुष्य' है, उसका कॉनोटेशन 'प्राणित्व' तथा 'बुद्धिसंपन्नत्व' है। (मनुष्य की परिभाषा है - मनुष्य एक बुद्धिसंपन्न प्राणी है।) प्रत्येक वाक्य में एक उद्देश्य पद होता है, एक विधेय पद और उन्हें जोड़नेवाला संयोजक। विधेय पद कई श्रेणियों के होते हैं, कुछ उद्देश्य का स्वरूप-कथन करनेवाले, कुछ उसकी बाहरी विशेषताओं को बतलानेवाले॥बतलानेवाले। विधेय पदों के वर्गीकरण का अरस्तू के परिभाषा संबंधी विचारों से घना संबंध है। वाक्यों (तर्कवाक्यों) या कथनों का वर्गीकरण भी कई प्रकार होता है; अर्थात गुण, परिमाण, संबंध और निश्चयात्मकता के अनुसार। संबंध के अनुसार वाक्य कैटेगॉरिकल (कथन रूप : राम मनुष्य है); हेतुहेतुमद् (यदि नियुक्ति हुई, तो वह पटना जायेगा); और डिस्जंक्टिव (वह या तो मूर्ख है, या दुष्ट) होते हैं। निश्चायात्मकता के अनुसार कथनात्मक (राम यहाँ है), संभाव्य (संभव है वह पटना जाए) और निश्चयात्मक (वर्षा अवश्य होगी) तीन प्रकार के होते हैं। वाक्य का प्रमुख रूप 'कैटेगारिकल' (निरपेक्ष कथन रूप) है। वैसे वाक्यों का वर्गीकरण गुण (विघेयात्मकविधेयात्मक तथा प्रतिषेधात्मक) तथा परिमाण (कुछ अथवा सर्व संबंधी) के अनुसार होता है। गुण और परिमाण के सम्मिलित प्रकारों के अनुरूप वर्गीकरण द्वारा चार तरह के वाक्य उपलब्ध होते हैं, जिन्हे रोमन अक्षरों - ए, ई, आई, ओ द्वारा संकेतिकसंकेतित किया जाता है। विधेयात्मक सर्व संबंधी वाक्य की संज्ञा ए है, जैसे 'कोई मनुष्य पूर्ण नहीं है'; कुछ संबंधी विधायक और निषेधक वाक्य क्रमशः आई व ओ कहाते है; यथा - 'कुछ मनुष्य शिक्षित हैं' और 'कुछ मनुष्य शिक्षित नहीं है।'
 
अरस्तू के तर्कशास्त्र का प्रधान प्रतिपाद्य विषय न्यायवाक्यों में व्यक्त किए जानेवाले अनुमान है; सही अनुमान १९ प्रकार के होते हैं जो चार तरह की अवयवसंहतियों में प्रकाशित किए जाते हैं। चार प्रकार के न्वायवाक्य या अवयवसंहतियाँ 'फिगर्स' कहलाती हैं और उनमें पाए जानेवाले सही अनुमानरूप 'मूड' कहे जाते हैं। ये 'मूड' दूसरी 'फिगरों' से पहली 'फिगर' के रूपों में परिवर्तित किए जा सकते हैं। प्रथम 'फिगर' सबसे पूर्ण 'फिगर' मानी जाती है।