→‎इतिहास: अशुद्धि निवारण, वाक्य पूर्णता व समुचित उदाहरण
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वाक्य पदों से बनता है। प्रत्येक पद कुछ वस्तुओं का संकेत करता है और कुछ गुणों या विशेषताओं का बोधक भी होता है। वस्तुसंकेत की विशेषता पद का 'डिनोटेशन' कहलाती है, संकेतित स्वरूपप्रकाशक गुणों को समष्टि रूप में 'कॉनोटेशन' कहते हैं, जैसे 'मनुष्य' पद का डिनोटेशन 'सब मनुष्य' है, उसका कॉनोटेशन 'प्राणित्व' तथा 'बुद्धिसंपन्नत्व' है। (मनुष्य की परिभाषा है - मनुष्य एक बुद्धिसंपन्न प्राणी है।) प्रत्येक वाक्य में एक उद्देश्य पद होता है, एक विधेय पद और उन्हें जोड़नेवाला संयोजक। विधेय पद कई श्रेणियों के होते हैं, कुछ उद्देश्य का स्वरूप-कथन करनेवाले, कुछ उसकी बाहरी विशेषताओं को बतलानेवाले। विधेय पदों के वर्गीकरण का अरस्तू के परिभाषा संबंधी विचारों से घना संबंध है। वाक्यों (तर्कवाक्यों) या कथनों का वर्गीकरण भी कई प्रकार होता है; अर्थात गुण, परिमाण, संबंध और निश्चयात्मकता के अनुसार। संबंध के अनुसार वाक्य कैटेगॉरिकल (कथन रूप : राम मनुष्य है); हेतुहेतुमद् (यदि नियुक्ति हुई, तो वह पटना जायेगा); और डिस्जंक्टिव (वह या तो मूर्ख है, या दुष्ट) होते हैं। निश्चायात्मकता के अनुसार कथनात्मक (राम यहाँ है), संभाव्य (संभव है वह पटना जाए) और निश्चयात्मक (वर्षा अवश्य होगी) तीन प्रकार के होते हैं। वाक्य का प्रमुख रूप 'कैटेगारिकल' (निरपेक्ष कथन रूप) है। वैसे वाक्यों का वर्गीकरण गुण (विधेयात्मक तथा प्रतिषेधात्मक) तथा परिमाण (कुछ अथवा सर्व संबंधी) के अनुसार होता है। गुण और परिमाण के सम्मिलित प्रकारों के अनुरूप वर्गीकरण द्वारा चार तरह के वाक्य उपलब्ध होते हैं, जिन्हे रोमन अक्षरों - ए, ई, आई, ओ द्वारा संकेतित किया जाता है। विधेयात्मक सर्व संबंधी विधायक और निषेध वाक्य की संज्ञा ए और ई है,जैसे 'सभी मनुष्य पूर्ण है' और 'कोई मनुष्य पूर्ण नहीं है'; कुछ संबंधी विधायक और निषेधक वाक्य क्रमशः आई व ओ कहाते है; यथा - 'कुछ मनुष्य शिक्षित हैं' और 'कुछ मनुष्य शिक्षित नहीं है।'
 
अरस्तू के तर्कशास्त्र का प्रधान प्रतिपाद्य विषय न्यायवाक्यों में व्यक्त किए जानेवाले अनुमान है; सही अनुमान १९ प्रकार के होते हैं जो चार तरह की अवयवसंहतियों में प्रकाशित किए जाते हैं। चार प्रकार के न्वायवाक्यन्याय यावाक्य अवयवसंहतियाँ 'फिगर्स' कहलाती हैं और उनमें पाए जानेवाले सही अनुमानरूप 'मूड' कहे जाते हैं। ये 'मूड' दूसरी 'फिगरों' से पहली 'फिगर' के रूपों में परिवर्तित किए जा सकते हैं। प्रथम 'फिगर' सबसे पूर्ण 'फिगर' मानी जाती है।
 
=== भारतीय प्रमाणशास्त्र तथा लॉजिक ===
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{{मुख्य|भारतीय तर्कशास्त्र}}
 
भारतीय दर्शन में, जैसा ऊपर कहा गया, जिस चीज का विकास हुआ, वह प्रमाणशास्त्र है; '''तथाकथित तर्कशास्त्र उसका एक भाग मात्र है'''। गोतमगौतम के '[[न्यायसूत्र]]' में प्रमा या यथार्थ ज्ञान के उत्पादक विशिष्ट या प्रधान कारण '[[प्रमाण]]' कहलाते हैं; उनकी संख्या चार है, अर्थात्‌ '''प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द'''। भाट्ट मीमांसकों और वेदांतियों के अनुसार प्रमाण छह हैं, अर्थातअर्थात् उपयुक्त चार तथा अर्थपतिअर्थपत्ति व अनुपलब्धि। भारतीय [[ज्ञान मीमांसा]] में उक्त प्रमाणों को लेकर बहुत चिंतन और विवाद हुआ है। बौद्धों, नैयायिकों, वेदांतियों आदि के द्वारा किया हुआ प्रत्यक्ष का विश्लेषण विशेष रूप में उनके अपने-अपने [[तत्वमीमांसा]] संबंधी विचारों से प्रभावित है। न्याय के अनुसार [[अनुमान]] दो प्रकार का होता है, परार्थानुमान तथा स्वार्थानुमान। अनुमान के बोधक न्यायवाक्य में पाँच वाक्य होते हैं जो क्रमशः प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय तथा निगमन कहलाते हैं। वेदांतियों के अनुसार इन पाँचों में से शुरू या बाद के तीन वाक्य अनुमान के लिये पर्याप्त है। बौद्ध तर्कशास्त्री [[धर्मकीर्ति]] के मत में त्रिरूप अर्थात्‌ तीन विशेषताओं से युक्त लिंग या हेतु ही अनुमान का कारण है। ये तीन विशेषताएँ हैं- अनुमेय या पक्ष (पर्वत) में निश्चित उपस्थिति; सपक्ष (महानस या रसोईघर) में ही उपस्थिति (सब सपक्षों में नहीं किंतु कुछ में); और असपक्ष या विपक्ष (सरोवर) में निश्चित अनुपस्थिति (समस्त विपक्षों में अनुपस्थिति)। यहाँ पर्वत पक्ष है, जहाँ धूम की उपस्थिति से अग्नि का अनुमान किया जाता है; रसोईधररसोईघर सपक्ष है, जहाँ ही अनिश्चित उपस्थिति के साथ धूम की उपस्थिति विदित है, जहाँ अग्नि के साथ धूम की अनुपस्थिति निश्चित है।
 
== तर्कशास्त्र का स्वरूप ==