"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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|children = '''चार पुत्र''' : यशवंत, रमेश, गंगाधर, राजरत्न और '''एक पुत्री''' : इन्दु <br /><sub>''(यह पाँचो बच्चे 'रमाबाई' के थे, तथा 'यशवंत' को छोड़कर सभी संतानों की बचपन में मृत्यु हो गई थीं।)''</sub>
|residence = मुम्बई, दिल्ली
|education = [[कला स्नातक|बी॰ए॰]] (1913) <br /> [[कला स्नातकोत्तर|एम]] (दोबार, 1915 व 1916) <br /> [[पीएच॰डी॰]] (1916, 1927 में प्रदान) <br /> [[एम॰एससी॰]] (1921) <br /> [[बैरिस्टर|बैरिस्टर-अॅट-लॉ]] (1922) <br /> [[डी॰एससी॰]] (1923) <br /> [[डॉक्टर ऑफ लॉ|एलएल॰डी॰]] (1952) <br /> [[डॉक्टर ऑफ लिटरेचर अँड फिलासफी|डी॰लीट॰]] (1953)
|alma_mater = {{•}} [[मुंबई विश्वविद्यालय]] <sub>(बी॰ए॰)</sub> <br /> {{•}} [[कोलंबिया विश्वविद्यालय]] <sub>(एम॰ए॰, पीएच॰डी॰, एलएल॰डी॰)</sub> <br />{{•}} [[लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स]] <sub>(एमएस॰सी॰, डीएस॰सी॰)</sub><br /> {{•}} ग्रेज इन <sub>(बैरिस्टर-एट-लॉ)</sub>
|occupation = वकील, प्रोफेसर
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[[भारत सरकार अधिनियम, १९१९|भारत सरकार अधिनियम १९१९]], तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और [[आरक्षण]] देने की वकालत की।<ref name=Tejani>{{cite book|last=Tejani|first=Shabnum|title=Indian secularism : a social and intellectual history, 1890-1950|year=2008|publisher=Indiana University Press|location=Bloomington, Ind.|isbn=0253220440|pages=205–210|url=https://books.google.com/books?id=6xtrPKa59j4C&pg=PA205&dq=%22ambedkar%22+%22+Southborough+Committee%22&hl=en&sa=X&ei=UN7mUa2EF8z7rAe_wICABA&ved=0CC8Q6AEwAA#v=onepage&q=%22ambedkar%22%20%22%20Southborough%20Committee%22&f=false|accessdate=17 July 2013|chapter=From Untouchable to Hindu Gandhi, Ambedkar and Depressed class question 1932}}</ref> [[१९२०]] में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक ''मूकनायक'' के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन शीघ्र ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका प्रयोग रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया।<ref name="Jaffrelot">{{cite book |last1=Jaffrelot |first1=Christophe |title=Dr Ambedkar and Untouchability: Analysing and Fighting Caste |year=2005 |publisher=C. Hurst & Co. Publishers |location=London |isbn=1850654492 |page=4 }}</ref>
 
आम्बेडकर एक कानूनी व्यावसायी के रूप में काम जारी रखा। 1926 में, उन्होंने सफलतापूर्वक तीन गैर-ब्राह्मण नेताओं का बचाव किया जिन्होंने [[ब्राह्मण]] समुदाय पर भारत को बर्बाद करने का आरोप लगाया था और बाद में उनपर अपमान के लिए मुकदमा चलाया गया था। [[धनंजय कीर]] के अनुसार "डॉक्टर साहब एवं मुद्दई, दोनों की ही सामाजिक और व्यक्तिगत रूप से जीत बढ़ती जा रही थी।"<ref>https://books.google.co.in/books?id=B-2d6jzRmBQC&pg=PA64&lpg=PA64&dq=The+victory+was+resounding,+both+socially+and+individually,+for+the+clients+and+the+Doctor.%22&source=bl&ots=x0ADO6j2Z_&sig=Vkz0UuGhJS3RUaYqwsP94XHGQj0&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiv_7HX_svdAhUVWysKHa2FBpUQ6AEwAHoECAUQAQ#v=onepage&q=The%20victory%20was%20resounding%2C%20both%20socially%20and%20individually%2C%20for%20the%20clients%20and%20the%20Doctor.%22&f=false</ref>{{तथ्य}}
 
बॉम्बे हाईकोर्ट में विधि का अभ्यास करते हुए, उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उन्हें ऊपर उठाने के प्रयास किये। उनका पहला संगठित प्रयास केंद्रीय संस्थान [[बहिष्कृत हितकारिणी सभा]] की स्थापना था, जिसका उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के साथ ही अवसादग्रस्त वर्गों के रूप में संदर्भित "बहिष्कार" के कल्याण करना था।<ref>{{cite web |url=http://www.ncdhr.org.in/ncdhr/general-info-misc-pages/dr-ambedkar |title=Dr. Ambedkar |accessdate=12 January 2012 |publisher=National Campaign on Dalit Human Rights |deadurl=no |archiveurl=https://web.archive.org/web/20121008195805/http://www.ncdhr.org.in/ncdhr/general-info-misc-pages/dr-ambedkar |archivedate=8 October 2012 |df=dmy-all }}</ref> दलित अधिकारों की रक्षा के लिए, उन्होंने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, समता, प्रबुद्ध भारत और जनता जैसी पांच पत्रिकाएं निकालीं।<ref>{{cite journal|last=Benjamin|first=Joseph|title=B. R. Ambedkar: An Indefatigable Defender of Human Rights|journal=Focus|date=June 2009|volume=56|publisher=Asia-Pacific Human Rights Information Center (HURIGHTS OSAKA)|location=Japan}}</ref>
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"सांप्रदायिकता" से पीड़ित हिंदुओं और मुसलमानों दोनों समूहों ने सामाजिक न्याय की माँग की उपेक्षा की है।<ref name="Ambedkar"/>
</blockquote></span>
 
==यौन शिक्षा पर विचार==
{{काम जारी}}
1934 में बाबासाहेब आम्बेडकर ने बतौर वकील "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" संबंधी [[यौन शिक्षा]] से जुड़ा एक मुक़दमा लड़ा था, जो "समाज स्वास्थ्य" नामक एक मराठी पत्रिका के लिए लड़ा गया मुक़दमा था। 20वीं सदी की शुरुआत में महाराष्ट्र के रघुनाथ धोंडो कर्वे अपनी पत्रिका "समाज स्वास्थ्य" के लिए रूढ़िवादियों के निशाने पर रहते थे क्योंकि कर्वे अपनी पत्रिका में यौन शिक्षा, परिवार नियोजन, नग्नता, नैतिकता जैसे उन विषयों पर लिखा करते थे जिस पर भारतीय समाज में खुले तौर पर चर्चा नहीं हुआ करती थी। स्वास्थ्य यौन जीवन और इसके लिए चिकित्सा सलाह पर केंद्रित उनकी पत्रिका में कर्वे ने इस संवेदनशील मुद्दे पर निडरता पूर्वक चर्चा की। वो तर्कसंगत और वैज्ञानिक बातें लिखते। लोगों की आम ज़िंदगी पर अत्यधिक धार्मिक प्रभाव वाले समाज के रूढिवादियों को उनके लेख से बेहद चिढ़ थी। इस दौरान उनके कई दुश्मन बन गये किंतु कर्वे निराश नहीं हुए। उन्होंने लिखने के साथ ही अपनी लड़ाई जारी रखी। 1931 में कर्वे को पहली बार पुणे में रूढिवादी समूह ने उनके एक लेख "व्यभिचार के प्रश्न" के लिए उन्हें अदालत में घसीटा। उन्हें गिरफ़्तार किया गया और दोषी ठहराए जाने के बाद 100 रुपये जुर्माना भी लगाया गया. जब कर्वे ने उच्च न्यायालय में अपील की, तो मामले की सुनवाई जज इंद्रप्रस्थ मेहता के सामने हुई और उनकी अपील ख़ारिज कर दी गयी. तीन साल के भीतर ही फरवरी 1934 में कर्वे दोबारा गिरफ़्तार किए गए. ऐसे समय में मुंबई के एक सधे हुए वकील बैरिस्टर बाबा साहेब आंबेडकर कर्वे के लिए अदालत में वकालत की. इस बार "समाज स्वास्थ्य" के गुजराती संस्करण में पाठकों द्वारा निजी यौन जीवन के बारे में सवाल के जवाब रूढिवादियों को अच्छा नहीं लगा. प्रश्न हस्तमैथुन और समलैंगिकता के विषय में थे जिसका कर्वे ने खुल कर उत्तर दिया था. तब समाज में इस तरह की बातें करना अश्लील और हानि पहुंचाने वाला माना जाता था.
 
ऐसे समय में बाबा साहेब आंबेडकर कर्वे के लिए मसीहा बन कर सामने आए और उनके लिए अदालत में वकालत की.
 
यह भारत के सामाजिक सुधारों के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण क़ानूनी लड़ाई में से एक है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया.
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
लेकिन इस बार कर्वे अकेले नहीं थे. तब मुंबई के एक सधे हुए वकील बैरिस्टर बी आर आंबेडकर उच्च न्यायालय में उनके लिए लड़ने को तैयार थे.
 
तब तक महाड और नासिक सत्याग्रह के बाद आंबेडकर वंचितों के लिए लड़ने वाले राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे.
 
आंबेडकर अपने राजनीतिक और सामाजिक मिशन में पूरी तरह व्यस्त थे फिर भी उन्होंने कर्वे का केस क्यों लिया? और वो भी उस मसले पर जिसका समाज में अस्तित्व नहीं था और जिस पर तीखी प्रतिक्रिया का मिलता तो तय था. आख़िर उन्हें कर्वे का मामला अपने हाथ में लेने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई?
 
मराठी नाटककार प्रोफ़ेसर अजीत दल्वी ने आंबेडकर के उसी कोर्ट केस पर आधारित एक नाटक "समाज स्वास्थ्य" बनाया है जिसका पूरे देश में मंचन किया जा रहा है.
 
प्रोफ़ेसर दल्वी कहते हैं, "आंबेडकर निश्चित तौर पर दलितों और वंचितों के नेता थे लेकिन वो पूरे समाज के लिए सोच रखते थे. सभी वर्गों से बना आधुनिक समाज उनका सपना था और वो उसी दिशा में आगे बढ़ रहे थे."
 
भीमराव आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर कहते हैं, "उन्होंने 1927 में मनुस्मृति क्यों जलायी, क्योंकि उनका मानना था कि ऐसी साहित्य व्यक्तिगत आज़ादी को दबा देती है. इसलिए जहां भी व्यक्तिगत आज़ादी के लिए संघर्ष चला बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर उसके पीछे खड़े हुए."
 
वो कहते हैं कि, "समाज स्वास्थ्य के मामले में हम देख सकते हैं कि यहां कट्टरपंथी ब्राह्मणवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के ख़िलाफ़ खड़ा था. इसलिए उन्होंने इस केस को लिया."
 
आंबेडकर ने अपनी पूरी पढ़ाई और शोध यूरोप और अमरीका में की. इसलिए वो भारत में उदारवादी परंपराओं के साथ ही आधुनिक पश्चिमी उदारवादी विचारों से भी प्रभावित हुए.
 
कर्वे के लेखों में उनका तर्कवादी विचार आंबेडकर के लेखों और उनके कार्यों में भी साफ़ झलकता है. इसलिए जिस विषय पर बड़े से बड़े नेता बोलने में हिचकते आंबेडकर ने इसे आसानी से अपने हाथों में ले लिया.
 
कर्वे ने पाठकों के वास्तविक संदेहों का केवल उत्तर दिया और सरकार ने रूढिवादियों को ख़ुश करने के लिए उन्हें गिरफ़्तार कर लिया.
 
इससे आंबेडकर आश्चर्य में पड़ गये. अगर "समाज स्वास्थ्य" का विषय यौन शिक्षा और यौन संबंध है और आम पाठक उसके विषय में प्रश्न पूछता है तो उसका उत्तर क्यों नहीं दिया जाना चाहिए. यह अंबेडकर का सीधा सवाल था.
 
अगर कर्वे को इसका उत्तर नहीं देना दिया जाए तो इसका मतलब है पत्रिका को बंद कर दिया जाना चाहिए.
 
दल्वी कहते हैं, "आंबेडकर के लिए, कर्वे को समाज की तथाकथित नैतिक मान्यताओं के अनुसार जवाब देने के लिए बाध्य किया जाना भी अन्याय है."
 
मामले में फिर 28 फरवरी से 24 अप्रैल 1934 के बीच बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यामूर्ति मेहता के सामने दलील रखी गयी. कर्वे के ख़िलाफ़ मुख्य आरोप यौन मुद्दों पर सवालों के जवाब देकर अश्लीलता फ़ैलाना था.
 
प्रोफ़ेसर दल्वी बताते हैं, "आंबेडकर का पहला तर्क यह था कि अगर कोई यौन मामलों पर लिखता है तो इसे अश्लील नहीं कहा जा सकता. हर यौन विषय को अश्लील बताने की आदत को छोड़ दिया जाना चाहिए. इस मामले में हम केवल कर्वे के जवाबों पर नहीं सोच कर सामूहिक रूप से इस पर विचार करने की जरूरत है. हमारे राजनीतिक नेता आज भी इस तरह के मुद्दों पर कुछ नहीं कहना चाहते वहीं आंबेडकर इस पर 80 साल पहले ही इस पर निर्णायक स्थिति में थे."
 
दल्वी कहते हैं, "न्यायाधीश ने उनसे पूछा कि हमें इस तरह के विकृत प्रश्नों को छापने की आवश्यकता क्यों है और यदि इस तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं तो उनके जवाब ही क्यों दिये जाते हैं? इस पर आंबेडकर ने कहा कि विकृति केवल ज्ञान से ही हार सकती है. इसके अलावा इसे और कैसे हटाया जा सकता है? इसलिए कर्वे को सभी सवालों को जवाब देने चाहिए थे."
 
यौन शिक्षा का अधिकार
 
आंबेडकर ने अदालत में इस विषय पर आधुनिक समाज में उपलब्ध साहित्य और शोध का उल्लेख भी किया.
 
उन्होंने समलैंगिकों पर हेवलॉक एलिस के शोध को भी अदालत में पेश किया. उनका मानना था कि यदि लोगों में इस तरह की भी इच्छा होती है तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. उन्हें अपने तरीक़े से खुशी हासिल करने का अधिकार है.
 
प्रोफ़ेसर दल्वी कहते हैं, "उस दौर में जब कोई भी यौन संबंधों पर खुल कर नहीं बोलता था, समलैंगिकता पर आंबेडकर के विचार मेरे लिए क्रांतिकारी हैं."
 
आंबेडकर दो अधिकारों पर बिल्कुल दृढ़ थे. एक यौन शिक्षा का अधिकार. वो इसके ख़िलाफ़ किसी धार्मिक रूढ़िवादी विचार को नहीं आने देना चाहते थे. ये पारंपरिक बाधाएं थीं.
 
प्रकाश आंबेडकर कहते हैं, "जैसा कि मैं देख रहा हूं, भारतीय समाज में कामुकता का प्रश्न वैदिक परंपराओं से संबंधित है. समाज के कुछ वर्ग उदार विचारों के रास्ते चलने को तैयार थे. लेकिन वैदिक परंपराओं को मानने वाला उच्च वर्ग रूढ़िवादी विचारों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. बाबा साहेब इस परंपरागत धारणा के ख़िलाफ़ थे."
 
दल्वी कहते हैं, "बाबा आंबेडकर की स्थिति केवल अदालत में तर्कों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह उनके राजनीतिक कामों में भी दिखा. कर्वे ने अपने लेखन के माध्यम से परिवार नियोजन की जरूरत पर जोर दिया और आंबेडकर ने एक सांसद के रूप में इसे क्रियान्वित किया. आंबेडकर 1937 में तत्कालीन बंबई क्षेत्रीय सभा में परिवार नियोजन पर एक बिल लाये. इस विषय पर उनका विस्तृत भाषण उपलब्ध है."
 
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वो दूसरा अधिकार था जिसके लिए वो लड़े. वो इस बात से सहमत नहीं थे कि यदि समाज का कोई वर्ग किसी खास विषय पर कोई बात नहीं सुनना चाहता या पसंद नहीं करता है तो किसी और को ऐसा करने की अनुमति नहीं है. उदारवादी रवैया अपनाते हुए उन्होंने दृढ़ता से कहा था कि जब हम सभी मुद्दों पर खुल कर बहस और चर्चा करेंगे तभी समाज से विकृतियां जायेंगी, ज्ञान ही इसका एकमात्र जरिया है.
 
प्रोफ़ेसर दल्वी अंत में कहते हैं, "क्या आज हमारे समाज में "समाज स्वास्थ्य" जैसी कोई पत्रिका उपलब्ध है. बीते युग में बड़े बड़े नेताओं ने कामुकता को छोड़ कर कई विषयों पर खुल कर बातें की. बहुत कम लोग इस पर बातें करने की हिम्मत रखते हैं. मुझे ऐसा लगता है कि आज भी इसकी ज़रूरत है."
 
आर डी कर्वे और डॉक्टर बी आर आंबेडकर 1934 की वो लड़ाई अदालत में हार गये. अश्लीलता के लिए कर्वे पर एक बार फिर 200 रुपये का जुर्माना लगाया गया. लेकिन ऐसी लड़ाईयां वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करती हैं और उनका प्रभाव परिणाम से परे है.
 
==धर्म परिवर्तन की घोषणा==
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===अनुच्छेद 370 का विरोध===
आम्बेडकर ने भारत के संविधान के [[अनुच्छेद ३७०|अनुच्छेद 370]] का विरोध किया, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया, और जिसे उनकी इच्छाओं के खिलाफ संविधान में शामिल किया गया था। [[बलराज माधोक]] ने कहा था कि, आम्बेडकरअम्बेडकर ने कश्मीरी नेता [[शेख अब्दुल्ला]] को स्पष्ट रूप से बताया था: "आप चाहते हैं कि भारत को आपकी सीमाओं की रक्षा करनी चाहिए, उसे आपके क्षेत्र में सड़कों का निर्माण करना चाहिए, उसे आपको अनाज की आपूर्ति करनी चाहिए, और कश्मीर को भारत के समान दर्जा देना चाहिए। लेकिन भारत सरकार के पास केवल सीमित शक्तियां होनी चाहिए और भारतीय लोगों को कश्मीर में कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए, मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती बात होंगी, यह मैं कभी नहीं करूंगा।करेगा। " फिर अब्दुल्ला ने नेहरू से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें [[गोपाल स्वामी अयंगार]] को निर्देशित किया, जिन्होंने बदले में [[वल्लभभाई पटेल]] से संपर्क किया और कहा कि नेहरू ने स्के का वादा किया था। अब्दुल्ला विशेष स्थिति। पटेल द्वाराको अनुच्छेद पारित किया गया, जबकि नेहरू एक विदेश दौरे पर थे। जिस दिन लेख चर्चा के लिए आया था, आम्बेडकर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन अन्य लेखों पर भाग लिया। सभी तर्क कृष्णा स्वामी अयंगार द्वारा किए गए थे।<ref name=Jamanadas>{{cite web |last=amanadas |first=Dr. K. |title=Kashmir Problem From Ambedkarite Perspective |url=http://www.ambedkar.org/jamanadas/KashmirProblem1.htm |publisher=ambedkar.org |accessdate=17 September 2013 |deadurl=no |archiveurl=https://web.archive.org/web/20131004225153/http://www.ambedkar.org/jamanadas/KashmirProblem1.htm |archivedate=4 October 2013 |df=dmy-all }}</ref><ref>{{cite book|last=Sehgal|first=Narender|title=Converted Kashmir: Memorial of Mistakes|year=1994|publisher=Utpal Publications|location=Delhi|url=http://www.kashmir-information.com/ConvertedKashmir/Chapter26.html|accessdate=17 September 2013|chapter=Chapter 26: Article 370|deadurl=yes|archiveurl=https://web.archive.org/web/20130905070936/http://www.kashmir-information.com/ConvertedKashmir/Chapter26.html|archivedate=5 September 2013|df=dmy-all}}</ref><ref>{{cite web|last=Tilak |title=Why Ambedkar refused to draft Article 370 |url=http://india.indymedia.org/en/2003/08/6710.shtml |archive-url=https://web.archive.org/web/20040207095529/http://www.india.indymedia.org/en/2003/08/6710.shtml |dead-url=yes |archive-date=7 February 2004 |publisher=Indymedia India |accessdate=17 September 2013 }}</ref>
 
=== समान नागरिक संहिता ===
{{main|समान नागरिक संहिता}}
 
{{quote box
| quoted = true
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| quote = मैं व्यक्तिगत रूप से समझ नहीं पा रहा हूं कि क्यों धर्म को इस विशाल, व्यापक क्षेत्राधिकार के रूप में दी जानी चाहिए ताकि पूरे जीवन को कवर किया जा सके और उस क्षेत्र पर अतिक्रमण से विधायिका को रोक सके। सब के बाद, हम क्या कर रहे हैं के लिए इस स्वतंत्रता? हमारे सामाजिक व्यवस्था में सुधार करने के लिए हमें यह स्वतंत्रता हो रही है, जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरा है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करते हैं।<ref name="UCC1">{{cite web|title=Ambedkar with UCC|url=http://www.outlookindia.com/website/story/ambedkar-and-the-uniform-civil-code/221068|publisher=Outlook India|accessdate=14 August 2013}}</ref>}}
 
{{main|समान नागरिक संहिता}}
आम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। आम्बेडकर का भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती।<ref>{{cite web|url=http://timesofindia.indiatimes.com/india/one-nation-one-code-how-ambedkar-and-others-pushed-for-a-uniform-code-before-partition/articleshow/60370522.cms|title=One nation one code: How Ambedkar and others pushed for a uniform code before Partition}}</ref> संविधान सभा में बहस के दौरान, आम्बेडकर ने एक समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश करके भारतीय समाज में सुधार करने की अपनी इच्छा प्रकट कि।<ref>{{cite web|url=http://www.outlookindia.com/website/story/ambedkar-and-the-uniform-civil-code/221068|title=Ambedkar And The Uniform Civil Code|deadurl=no|archiveurl=https://web.archive.org/web/20160414123716/http://www.outlookindia.com/website/story/ambedkar-and-the-uniform-civil-code/221068|archivedate=14 April 2016|df=dmy-all}}</ref><ref>{{cite web|url=http://www.thehindu.com/news/national/ambedkar-favoured-common-civil-code/article7934565.ece|title=Ambedkar favoured common civil code|deadurl=no|archiveurl=https://web.archive.org/web/20161128184514/http://www.thehindu.com/news/national/ambedkar-favoured-common-civil-code/article7934565.ece|archivedate=28 November 2016|df=dmy-all}}</ref> 1951 मे संसद में अपने [[हिन्दू कोड बिल]] (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कहीं गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी।<ref>{{cite book |last1=Chandrababu |first1=B. S |last2=Thilagavathi |first2=L |title=Woman, Her History and Her Struggle for Emancipation |year=2009 |publisher=Bharathi Puthakalayam |location=Chennai |isbn=8189909975 |pages=297–298 }}</ref> हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद एवं वल्लभभाई पटेल समेत संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके खिलाफ़ थी। आम्बेडकर ने 1952 में बॉम्बे (उत्तर मध्य) निर्वाचन क्षेत्र में लोक सभा का चुनाव एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे लड़ा पर वह हार गये। इस चुनाव में आम्बेडकर को 123,576 वोट तथा नारायण सडोबा काजोलकर को 138,137 वोटों का मतदान किया गया था।<ref>{{cite book |editor1-first=Vasudha |editor1-last=Dalmia |editor2-first=Rashmi |editor2-last=Sadana |title=The Cambridge Companion to Modern Indian Culture |edition=illustrated |series=Cambridge Companions to Culture |year=2012 |publisher=Cambridge University Press |isbn=0521516250 |page=93 |chapter=The Politics of Caste Identity}}</ref><ref>{{cite book | title=India After Gandhi: The History of the World's Largest Democracy| edition=| first= Ramachandra |last= Guha| year=2008| pages=156| publisher=| isbn=978-0-06-095858-9}}</ref><ref>{{cite web|title=Statistical Report On General Elections, 1951 to The First Lok Sabha: List of Successful Candidates |url=http://eci.nic.in/eci_main/StatisticalReports/LS_1951/VOL_1_51_LS.PDF |pages=83, 12 |publisher=[[Election Commission of India]] |accessdate=24 June 2014 |deadurl=yes |archiveurl=https://web.archive.org/web/20141008191615/http://eci.nic.in/eci_main/StatisticalReports/LS_1951/VOL_1_51_LS.PDF |archivedate=8 October 2014 |df=dmy }}</ref> मार्च 1952 में उन्हें संसद के ऊपरी सदन यानि राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया और इसके बाद उनकी मृत्यु तक वो इस सदन के सदस्य रहे।<ref>{{cite web |first= Rajya |last= Sabha |title= Alphabetical List of All Members of Rajya Sabha Since 1952 |website= Rajya Sabha Secretariat |url=http://164.100.47.5/Newmembers/alphabeticallist_all_terms.aspx |quote= Serial Number 69 in the list |deadurl=no |archiveurl=https://web.archive.org/web/20100109030114/http://164.100.47.5/Newmembers/alphabeticallist_all_terms.aspx |archivedate= 9 January 2010 |df= dmy-all }}</ref>