"अयोध्या प्रसाद खत्री": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Ayodhyaprasad_khattri.jpg|thumb|right|200px|अयोध्या प्रसाद खत्री]]
'''अयोध्या प्रसाद खत्री''' ([[१८५७]]-[[४ जनवरी]] [[१९०५]]) का नाम [[खड़ी बोली]] हिन्दी के प्रारम्भिक समर्थकों और पुरस्कर्ताओं में
[[भारतेंदु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] युग से [[हिन्दी]]-[[साहित्य]] में आधुनिकता की शुरूआत हुई। इसी दौर में बड़े पैमाने पर [[भाषा]] और विषय-वस्तु में बदलाव आया। इतिहास के उस कालखंड में, जिसे हम भारतेंदु युग के नाम से जानते हैं, [[खड़ीबोली]] हिन्दी गद्य की भाषा बन गई लेकिन [[पद्य]] की भाषा के रूप में [[ब्रजभाषा]] का बोलबाला कायम रहा। अयोध्या प्रसाद खत्री ने [[गद्य]] और पद्य की भाषा के अलगाव को गलत मानते हुए इसकी एकरूपता पर जोर दिया। पहली बार इन्होंने साहित्य जगत का ध्यान इस मुद्दे की तरफ खींचा, साथ ही इसे आंदोलन का रूप दिया। हिंदी पुनर्जागरण का काल में स्रष्टा के रूप में जहाँ एक ओर भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसा प्रतिभा-पुरुष खडा था तो दूसरी ओर द्रष्टा के रूप में अयोध्याप्रसाद खत्री जैसा अद्वितीय युगांतरकारी व्यक्तित्व था।<ref>{{cite web |url= http://janvikalp.blogspot.com/2007/07/blog-post_14.html|title=हिन्दीवीर अयोध्याप्रसाद खत्री |accessmonthday=[[८ जुलाई]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएमएल|publisher=मधुमती|language=}}</ref> इसी क्रम में खत्री जी ने 'खड़ी-बोली का पद्य` दो खंडों में छपवाया। इस किताब के जरिए एक साहित्यिक आंदोलन की शुरूआत हुई। हिन्दी कविता की भाषा क्या हो, ब्रजभाषा अथवा [[खड़ीबोली]] हिन्दी?<ref>{{cite web |url= http://www.lakesparadise.com/madhumati/show_artical.php?id=378|title=बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री और खड़ी बोली का आंदोलन |accessmonthday=[[४ दिसंबर]]|accessyear=[[२००७]]|format= एचटीएमएल|publisher=जनविकल्प|language=}}</ref>
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