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====सन्दर्भ
==सन्दर्भ==
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अलबेरुनी ने ही अपनी किताब मै हाडी जाति के मूल (ओरिजिन ) को भी दर्शया हैं उनके अनुसार भारत मे वर्ण व्यवस्ता को चार मुख्य वर्ण और एक अवर्ण की बात की सत्यता का प्रमाण दिया हैं अल्बुरेनी ने अपनी पुस्तक किताबे ऐ हिन्द , तहकीक ऐ हिन्द ( अलबेरुनी का भारत , हिंदी रूपांतरित ) मे हाडी जाति के उत्पति का जिक्र किया हैं , उनका मानना है की भारत मे जब जातिया नहीं वर्ण थी उस वक़्त सामाजिक विवाह पद्धिति कुछ इस प्रकार थी ,
ब्राह्मण पुरुष किसी भी ( ब्राह्मण , क्षत्रिय , वेश्य या शुद्र )स्त्री से विवाह संबंद्ध बना सकता था , क्षत्रिया पुरुष किसी भी ( क्षत्रिय , वेश्य या शुद्र ) स्त्री से विवाह संबंद्ध बना सकता था , जबकि ब्राह्मण स्त्री से नहीं ,वही वेश्य पुरुष किसी भी वेश्य या शुद्र स्त्री से विवाह संबंद्ध बना सकता था जबकि ब्राह्मण, क्षत्रिय स्त्री से नहीं ,और शुद्र पुरुष सिर्फ शुद्र स्त्री से विवाह संबंद्ध बना सकता था जबकि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वेश्य स्त्री से नहीं। कोई भी इस निति नियमो को नहीं तोड़ सकता था , जो लोग इन सामाजिक नियमो का उलंघन करता था उन्हें सामाजिक वहिस्कर करना होता था , और वो गाव , नगर व कस्बे से निष्कासित कर दिए जाते थे और उनलोगों से कोई संबंद्ध नहीं रखता था जिसे विजात संतान की संज्ञा दी जाती थी और इस बात को भी प्रमाण करता है की उस वक़्त बच्चे की जन्म जाति का वर्ण माँ की वर्ण से पहचानी जाती थी , जिसका कईएक उदाहरण धर्म ग्रन्थ मे पाई गयी है ,
हाडी जाति के उत्पति पर अलबुरनी ने लिखा है ब्रह्मण स्त्री और शुद्र पुरुष के व्यभिचार से विजात संतान हाडी जाति हुवे , जिनको सामाजिक वहिस्कर कर घ्रणित कार्यो को करने के लिए मजबूर किया गया , जबकि उस समय के नियमो से हाडी जाति भी एक ब्रह्मण कुल के होने चाहिय । क्युकी उनकी माता ब्रह्मण स्त्री थी , और वर्ण की पहचान माता की वर्ण से हुवा करता था .
उपरोक्त बाते डोम चांडाल और बथिर पर भी लागु होता हैं , लेकिन हाडी को इस समूह मे श्रेष्ठ मन गया है क्युकी हाडी ज्यादा घ्रणित कार्यो को नही करते थे .
 
==बाहरी कड़ियाँ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/हाडी" से प्राप्त