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यह उत्तर-औपनिवेशिक सिद्धांत के आधारभूत प्रतिपादनों में से एक है। भारत का अध्ययन करने वाले ज्ञान प्रकाश, निकोलस डिर्क और रोनाल्ड इण्डेन जैसे समाज वैज्ञानिकों, और हामिद दुबोशी, होमी भाभा और गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक जैसे साहित्यशास्त्रियों पर भीप्राच्यवाद की स्थापनाओं का प्रभाव पड़ा है।
 
== अवधारणात्मक इतिहास ==
शुरुआती दौर में प्राच्यवाद पश्चिमी दुनिया
के लेखकों, डिज़ाइनरों और कलाकारों द्वारा पूर्वी देशों की
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सईद ने [[अरब]] और इस्लामी सभ्यता केसंदर्भ में प्राच्यवाद का विश्लेषण करते हुए साम्राज्यवाद से प्राच्यवाद के गहरे संबंध और उसके राजनीतिक निहितार्थ को रेखांकित किया था। उनके द्वारा प्रवर्तित प्राच्यवाद की अवधारणा मानविकी के विभिन्न अनुशासनों- (इतिहास लेखन, संस्कृति-अध्ययन, साहित्य-सिद्धांत), आदि में
युरोकेंद्रीयता का प्रतिरोध रचने और पूर्वी सभ्यता व विचार की स्वायत्त दावेदारियों के लिए प्रयुक्त होती है।
 
== अवधारणात्मक इतिहास ==
 
== सन्दर्भ ==