"मीरा बाई": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Meerabai 1.jpg|thumbnail|right|[[राजा रवि वर्मा]] द्वारा बनाया गया मीराबाई का चित्र]]
'''मीराबाई''' (
सन्दर्भ में, वागर्थ, (सम्पादक) एकांत श्रीवास्तव, जुलाई २०१२, कोलकाता</ref> मीरा बाई ने कृष्ण-भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है।
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[[चित्र:Temple of Mirabai in the fort.jpg|thumbnail|मीराबाई का मंदिर, [[चित्तौड़गढ़]] (१९९०)]]
[[मीराबाई]] का जन्म संवत् 1498 विक्रमी में मेड़ता में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। (कई किताबो में कुड़की बताया जाता है जो बिलकुल सही है ) ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं।मीरा का जन्म राठौर राजपूत परिवार में हुए व् उनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। उदयपुर के महाराणा
भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के [[महाराणा सांगा]] के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को [[विष]] देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह [[द्वारका]] और [[वृंदावन]]
[[द्वारिका|द्वारका]] में संवत 1546 वो भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गईं।
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