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== परिचय ==
अबू बक्र उस्मान के पुत्र थे। इनके उपनाम 'सिक' और 'अतीक' भी थे। पैगंबर की मृत्यु (जून, ८, ६३२ ई.) के पश्चात् मदीना के आदिवासियोंमुसलमानो ने एक सभा में लंबे विवाद के पश्चात् अबू बक्र को पैगंबर का खलीफा (उत्तराधिकारी) स्वीकार किया।
 
पैगंबर की मृत्यु होते ही [[मक्का]], [[मदीना]] और [[ताइफ़]] नामक तीन नगरों के अतिरिक्त अरब का बड़ा हिस्सा [[इस्लाम]] विमुख हो गया। कुछ जाहिल लोग यह समझ रहे थे कि पैग़म्बर थे तो इस्लाम था, वह नहीं रहे तो इस्लाम की क्या ज़रुरत है। पैगंबर द्वारा लगाए गए करों और नियुक्त किए गए कर्मचारियों का लोगों ने बहिष्कार कर दिया। तीन अप्रामाणिक पुरुष पैगंबर तथा एक अप्रामाणिक स्त्री पैगंबर अपना पृथक् प्रचार करने लगे। अपने घनिष्ठतम मित्रों के परामर्श के विरुद्ध अबू बक्र ने विद्रोही आदिवासियों से समझौता नहीं किया। ११ सैनिक दस्तों की सहायता से उन्होंने समस्त अरब प्रदेश को एक वर्ष में पुरी तरह नियंत्रित किया।कर लिया। मुसलमान न्यायपंडितों ने धर्मपरिवर्तन के अपराध के लिए मृत्युदंड निश्चित किया, किंतु अबू बक्र ने उन सब जातियों को क्षमा कर दिया जिन्होंने इस्लाम और उसकी केंद्रीय शक्ति को पुन: स्वीकार कर लिया।
 
पदारोहण के एक वर्ष के भीतर ही [[अबू बक्र सिद्दीक]] ने खालिद (पुत्र वलीद) को आज्ञा दी कि वह [[मुसन्ना]] नामक सेनापति के साथ १८,००० सैनिक लेकर [[इराक]] पर चढ़ाई करे। इस सेना ने ईरानी शक्ति को अनेक लड़ाइयों में नष्ट करके [[बाबुल]] तक, जो ईरानी साम्राज्य की राजधानी [[मदाइन]] के निकट था, अपना आधिपत्य स्थापित किया। इसके बाद [[खालिद बिन वलिद]] ने [[अबू बक्र सिद्दीक]] के आज्ञानुसार [[इराक]] से [[सीरिया]] की ओर कूच किया और वहाँ [[मरुस्थल]] को पार करके वह ३०,००० अरब सैनिकों से जा मिला और १,००,००० बिजंतीनी सेना को [[फिलस्तीन]] के अजन दैइन नामक स्थान पर परास्त किया (३१ जुलाई ६३४ ई.)। कुछ ही दिनों बाद [[अबू बक्र सिद्दीक]] का देहांत हो गया (२३ अगस्त ६३४)।
 
शासनव्यवस्था में [[अबू बक्र सिद्दीक]] ने पैगंबर द्वारा प्रतिपादित गरीबी और आसानी के सिद्धांतो का अनुकरण किया। उनका कोई सचिवालय और नाजकीय कोष नहीं था। कर प्राप्त होते ही व्यय कर दिया जाता था। वह ५,००० दिरहम सालाना स्वयं लिया करते थे, किंतु अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने इस धन को भी अपनी निजी संपत्ति बेचकर वापस कर दिया।
 
{{राशिदून खलीफ़ा}}