अबू बक्र

हज़रत अबू बक्र

हजरत अबु बक्र सिद्दीक़ रजी. का असली नाम अब्दुल्लाह इब्न अबू क़ुहाफ़ा (Abdullah ibn Abi Quhaafah अरबी عبد الله بن أبي قحافة), c. 573 ई – 23 अगस्त 634 ई, इनका मशहूर नाम अबू बक्र (أبو بكر) है।[1] हजरत अबुबक्र पैगंबर मुहम्मद साहब के ससुर और उनके प्रमुख साथियों में से थे। वह मुहम्मद साहब के बाद मुसल्मानों के पहले खलीफा चुने गये। सुन्नी मुसलमान इनको चार प्रमुख पवित्र खलीफाओं में अग्रणी मानतें हैं। ये पैगंबर मुहम्मद के प्रारंभिक अनुयायियों में से थे और इनकी पुत्री आयशा रजी. पैगंबर मुहम्मद साहब की चहेती पत्नी थी।

हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजी.
सिद्दीक ए अकबर'
Rashidun Caliph Abu Bakr as-Șiddīq (Abdullah ibn Abi Quhafa) - أبو بكر الصديق عبد الله بن عثمان التيمي القرشي أول الخلفاء الراشدين.svg
इस्लामी खलीफा
शासनावधि8 June 632 – 22 August 634
उत्तरवर्तीराशिदून ख़िलाफ़त के प्रथम खलीफ़ा
जन्म27 अक्टूबर 573
मक्का,अरब
निधन22 अगस्त 634 (उम्र 61)
मदीना,अरब
समाधि
जीवनसंगी
  • क़ुतयलह बिन अब्द-अल-उज़्ज़ा (तलाकशुदा)
  • उम्म रूमान
  • अस्मा बिन उमैस
  • हबीबा बिन ख़रिजा
संतानबेटे

बेटियां

  • आयशा
  • उम्म खुलसुम बिन अबू बक्र
  • असमा बिन अबू बक्र
घरानासिद्दीकी
पिताउस्मान अबू क़ुहाफ़ा
मातासलमा उम्म-उल-खै़र
धर्मइस्लाम

परिचयसंपादित करें

हजरत अबु बक्र सिद्दीक़ रजी. उस्मान अबू कहाफा के पुत्र थे। इनके उपनाम 'सिदीक' और 'अतीक' भी थे। प्रतिष्ठित सहाबा थे। उनका नाम कुरआन में प्रत्यक्ष रूप से नहीं आया लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से सूरा-9, अत-तौबा में 'दो में दूसरे' व्यक्ति अबू-बक्र सिद्दीक़ ही हैं। [2]

आजीवन पैग़म्बर के संगत में रहे[3], पैगंबर की वफ़ात (जून, ८, ६३२ ई.) के पश्चात् मदीना के लोगो ने एक सभा में लंबे विवाद के पश्चात क़ुरान की एक आयात को आधार बनाते हुए जो अबु बक्र की प्रशंसा में थी उनको पैगंबर का खलीफा (उत्तराधिकारी) स्वीकार किया।

पैगंबर साहब का विशाल होते ही मक्का, मदीना और ताइफ़ नामक तीन नगरों के अतिरिक्त अरब का बड़ा हिस्सा इस्लाम विमुख हो गया। लोग यह समझ रहे थे कि पैग़म्बर थे तो इस्लाम था, वह नहीं रहे तो इस्लाम की क्या ज़रुरत है। पैगंबर मुहम्मद साहब द्वारा लगाए गए करों गए और नियुक्त किए गए कर्मचारियों का लोगों ने बहिष्कार कर दिया। तीन अप्रामाणिक पुरुष पैगंबर तथा एक अप्रामाणिक स्त्री पैगंबर अपना पृथक् प्रचार करने लगे। अपने घनिष्ठतम मित्रों के परामर्श के विरुद्ध अबू बक्र ने विद्रोही आदिवासियों से समझौता नहीं किया। ११ सैनिक दस्तों की सहायता से उन्होंने समस्त अरब प्रदेश को एक वर्ष में नियंत्रित किया। मुसलमान न्यायपंडितों ने धर्मपरिवर्तन के अपराध के लिए मृत्युदंड निश्चित किया, किंतु अबू बक्र ने उन सब जातियों को क्षमा कर दिया जिन्होंने इस्लाम और उसकी केंद्रीय शक्ति को पुन: स्वीकार कर लिया।

पदारोहण के एक वर्ष के भीतर ही हजरत अबु बक्र सिद्दीक़ रजी. ने खालिद (पुत्र वलीद) को आज्ञा दी कि वह मुसन्ना नामक सेनापति के साथ १८,००० सैनिक लेकर इराक पर चढ़ाई करे। इस सेना ने ईरानी शक्ति को अनेक लड़ाइयों में नष्ट करके बाबुल तक, जो ईरानी साम्राज्य की राजधानी मदाइन के निकट था, अपना आधिपत्य स्थापित किया। इसके बाद खालिद ने अबू बक्र के आज्ञानुसार इराक से सीरिया की ओर कूच किया और वहाँ मरुस्थल को पार करके वह ३०,००० अरब सैनिकों से जा मिला और १,००,००० बिजंतीनी सेना को फिलस्तीन के अजन दैइन नामक स्थान पर परास्त किया (३१ जुलाई ६३४ ई.)। कुछ ही दिनों बाद अबू बक्र का देहांत हो गया (२३ अगस्त ६३४)।

शासनव्यवस्था में अबू बक्र ने पैगंबर द्वारा प्रतिपादित गरीबी और आसानी के सिद्धांतो का अनुकरण किया। उनका कोई सचिवालय और नाजकीय कोष नहीं था। कर प्राप्त होते ही व्यय कर दिया जाता था। वह ५,००० दिरहम सालाना स्वयं लिया करते थे, किंतु अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने इस धन को भी अपनी निजी संपत्ति बेचकर वापस कर दिया।

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

सन्दर्भसंपादित करें

  1. [1] Archived 2016-10-10 at the Wayback Machine, from islam4theworld
  2. प्रोफेसर जियाउर्रहमान आज़मी, कुरआन मजीद की इन्साइक्लोपीडिया (20 दिसम्बर 2021). "अबू-बक्र-सिद्दीक़". www.archive.org. पृष्ठ 91.
  3. ज़ियाउल्लाह, अताउर्रहमान. "अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के जीवन की कुछ झलकियाँ - हिन्दी - अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह". IslamHouse.com.

सन्दर्भ ग्रंथसंपादित करें

  • म्योर: कैलिफेट;
  • इब्ने अहसीर (हैदराबाद में मुद्रित)
  • इब्ने खलदून।

बाहरी कडियांसंपादित करें