"हाडी": अवतरणों में अंतर

छो सहिस
छो 1000 ईस्वी
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वर्तमान में इन्हें कई राज्यों में [[अनुसूचित जाति]] का दर्जा प्राप्त है जैसे [[उत्तर प्रदेश]] में "हरी" अथवा "हरि" के उपनाम लिखने वालों को<ref name="Shastri">{{cite book|author=Vijay Sonkar Shastri|title=Hindu Valmiki Jati|url=https://books.google.com/books?id=IEVqCwAAQBAJ&pg=PA70|isbn=978-93-5048-566-8|pages=70–}}</ref>; कुछ इलाकों में नाडिया और हाडी का उल्लेख एक साथ है<ref>{{cite journal |last1=Nayak |first1=Vijay |last2=Prasad |first2=Shailaja |title=On Levels of Living of Scheduled Castes and Scheduled Tribes |journal=Economic and Political Weekly |date=1984 |volume=19 |issue=30 |pages=1205–1213 |url=https://www.jstor.org/stable/4373471 |accessdate=20 नवम्बर 2018}}</ref>; बिहार झारखण्ड बंगाल में हाडी अथवा हरि<ref>[http://planningcommission.nic.in/reports/sereport/ser/ser_bihar2807.pdf Circular issued by the Government of Bihar (1999)], as cited by Deshkal Society.</ref> सहिस उपनाम लिखने वालों के रूप में।
 
भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति थी, लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या 14 फीसदी हो गई। आपने सोचा कि ये 13 प्रतिशत की बढोत्तरी मुगल शासन में कैसे हो गई। जो हिंदू डर और अत्याचार के मारे इस्लाम धर्म स्वीकार करते चले गए, उन्हीं के वंशज आज भारत में मुस्लिम आबादी हैं। जिन क्षत्रियों ने मरना स्वीकार कर लिया उन्हें काट डाला गया और उनके असहाय परिजनों को इस्लाम कबूल नहीं करने की सजा के तौर पर अपमानित करने के लिए गंदे कार्य में धकेल दिया गया। वही लोग भंगी, वैस, वैसवार, बीर गूजर (बग्गूजर), भदौरिया, बिसेन, सोब, बुन्देलिया, चन्देल, चौहान, नादों, यदुबंशी, कछवाहा, किनवार-ठाकुर, बैस, भोजपुरी राउत, गाजीपुरी राउत, गेहलौता, मेहतर, हलालखोर , हलाल, खरिया, चूहड़- गाजीपुरी राउत, दिनापुरी राउत, टांक, गेहलोत, चन्देल, टिपणी कहलाए। डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं, <nowiki>''</nowiki> ये अनुसूचित जातियां उन्हीं ब्राह्मण व क्षत्रियों के वंशज है, <nowiki>''</nowiki> प्रख्यात साहित्यकार अमृत लाल नागर ने अनेक वर्षों के शोध के बाद पाया कि जिन्हें "भंगी", "मेहतर" आदि कहा गया, वे ब्राहम्ण और क्षत्रिय थे। स्टेनले राइस ने अपने पुस्तक "हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स" में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय: वे जातियां भी हैं, जो मुगलों से हारीं तथा उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम करवाए थे। गाजीपुर के श्री देवदत्त शर्मा चतुर्वेदी ने सन् 1925 में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम 'पतित प्रभाकर' अर्थात मेहतर जाति का इतिहास था। इस छोटी-सी पुस्तक में "भंगी","मेहतर", "हलालखोर", "चूहड़" आदि नामों से जाने गए लोगों की किस्में दी गई हैं, इसमें एक खास बात यह हैं की किसी साहित्यकार ने इन जातियों के साथ हाड़ी ,डोम, चंडाल और बथिर का जिक्र नहीं किया , मतलब साफ़ है की भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति के लोग कोई और नहीं हाड़ी ,डोम, चंडाल और बथिर जाति के लोग ही थे,
 
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==इन्हें भी देखें==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/हाडी" से प्राप्त