"जाति": अवतरणों में अंतर

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=== जातियों की अनर्हताएँ तथा विशेषाधिकार ===
भारत की जाति व्यवस्था नृवंशविज्ञान का एक उदाहरण है|इसकी उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी||इस में मध्ययुगीन,और आधुनिक भारत के विभिन्न शासक अभिजात वर्गों द्वारा परिवर्तन किया गया था (ffggखासकरखासकर मुगल साम्राज्य और ब्रिटिश राज।)
 
इसमें दो अलग-अलग अवधारणाएं शामिल हैं , वर्ण (व्यवसाय पर आधारित सैद्धांतिक वर्गीकरण) और जाति (उपमहाद्वीप में प्रचलित हजारों अंतर्विवाही समूहों को संदर्भित करता है) |एक जाति को एक गोत्रा ​​के आधार पर विजातीय विवाह करने समूहों में विभाजित किया जा सकता है।जाति व्यवस्था का आधुनिक रुप , मुगल साम्राज्य के पतन और ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य के उदय के दौरान उत्पन्न हुआ था|मुगल साम्राज्य के पतन के फलस्वरुप एक (उत्पन्न सत्ता शून्य मे) ऎसे वर्ग का उदय हुआ जो सत्ता के निकट था| इस वर्ग ने जाति को पुर्ण रूप मे स्थापित किया| मुगल युग के पतन के दौरान राजाओं, सत्ता से जुड़े शक्तिशाली वर्ग का उदय देखा गया था| इस वर्ग  ने जातिहीन सामाजिक समूहों को कई अलग-अलग जाति समुदायों में  बदल दिया। भारतीय जातिव्यवस्था में कुछ जातियाँ उच्च, पवित्र, शुद्ध और सुविधाप्राप्त हैं और कुछ निकृष्ट, अशुद्ध, अस्पृश्य और असुविधाप्राप्त हैं। क्षत्रिय पूज्य एवं ब्राह्मण पवित्र हैं और उन्हें अनेक धार्मिक, सामाजिक तथा नगारिक विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इनके विपरीत अस्पृश्य जातियाँ हैं। धार्मिक दृष्टि से ये जातियाँ शास्त्रों के पठनपाठन तथा श्रवण के अधिकार से वंचित हैं। इनका उपनयन संस्कार नहीं होता। इनके धार्मिक कृत्यों में पौरोहित्य नहीं करता। देवालयों में इनका प्रवेश निषिद्ध है। ये अशुद्ध और अशुद्धिकारक हैं। आर्थिक और व्यावसायिक क्षेत्र में गंदे और निकृष्ट समझे जानेवाले कार्य इनके सुपुर्द हैं जिनसे आय प्राय: अत्यल्प होती है। इनकी बस्तियाँ गाँव से कुछ हटकर होती हैं। ये अनेक सामाजिक और नागरिक अनर्हताओं के भागीदार हैं। नाई और धोबी की शारीरिक सेवाएँ इन्हें उपलब्ध नहीं हैं। ये सार्वजनिक तालाबों, धर्मशालाओं और शिक्षासंस्थाओं का उपयोग नहीं कर सकते। अंत्यजों की दशा उत्तर की अपेक्षा दक्षिण भारत में अधिकहीन है। 18 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक महाराष्ट्र में महार जाति के लोगों को दिन में दस बजे के बाद और 4 बजे के पहले ही गाँव और नगर में घुसने की आज्ञा थी। उस समय भी उन्हें गले में हाँडी और पीछे झाड़ू बाँधकर चलना होता था। दक्षिण भारत में पूर्वी और पश्चिमी घाट के शाणान और इड़वा कुछ काल पूर्व तक दुतल्ला मकान नहीं बनवा सकते थे। वे जूता, छाता और सोने के आभूषणों का उपयोग नहीं कर सकते थे। 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक तियाँ और अन्य अछूत जाति की नारियाँ शरीर का ऊर्ध्व भाग ढककर नहीं चल सकती थीं। नाई, कुम्हार, तेली जैसी जातियाँ भी वैदिक संस्कारों और शास्त्रीय ज्ञान के अधिकार से वंचित रही हैं। इसके विपरीत क्षत्रियों एवं ब्राह्मणों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। मनुस्मृति के अनुसार क्षत्रियों द्वारा ब्राह्मणों को मृत्युदंड से मुक्ति दी गयी थी। हिंदू राजाओं के शासनकाल में ब्राह्मणों को दंड तथा करसंबंधी अनेक रियायतें प्राप्त थीं। धार्मिक कर्मकांडों में पौरोहित्य का अधिकार क्षत्रिय एवं ब्राह्मण को है। क्षत्रिय भी विशेष सम्मान के अधिकारी हैं। शासन करना उनका अधिकार है। छुआछूत का दायरा बहुत व्यापक है। अछूत जातियाँ भी एक दूसरे से छूत मानती हैं। मालाबार में पुलियन जाति के किसी व्यक्ति को यदि कोई परहिया छू ले तो पुलियन पाँच बार स्नान करके और अपनी एक अँगुली के रक्त निकाल देने के बाद शुद्धिलाभ करता है। श्री ई. थर्स्टन के अनुसार यदि नायादि जाति का व्यक्ति एक सौ हाथ की दूरी पर आ जाए तो सभी अपवित्र हो जाते हौं। उन्हीं के अनुसार यदि ब्राह्मण किसी परहिया अथवा होलिया के घर या मुहल्ले में भी चला जाए तो उससे उनका घर और बस्ती अपवित्र हो जाती है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जाति" से प्राप्त