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{{स्रोतहीन|date=मई 2017}}
'''विक्रम संवत''' [[हिन्दू पंचांग]] में समय गणना की प्रणाली का नाम है। यह संवत 57 ई.पू. आरम्भ होती है। इसका प्रणेता भारत के धर्मपाल भूमिवर्मा विक्रमादित्य को माना जाता है। इस तथ्य को गुजरात के खोजकर्ता पं.भगवानलाल इन्द्रजी ने भी सही ठहराया है। कोई कोई कहते हैं कि ये संवत् भारतवर्ष के सम्राट विक्रमादित्य ने शुरु किया था लेकिन समय के गणना में वो सही नहीं रहता। क्योंकि मगध के सम्राट [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने उज्जयनी और अयोध्या पर विजय प्राप्त किया और खुद को 'विक्रमादित्य' सम्राट की उपाधि दी। उससे पहले कहीं और कभी भी विक्रमादित्य का उल्लेख नहीं है। मालवा, राजपुताना और अन्य समिपवर्ति स्थानों में उपलब्ध अभिलेखों से यह पता चलता है कि इस संवत् का सबसे प्राचीन नाम कृत है। यह अभिलेख
 
 
बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब [[सूर्य]] व [[चंद्रमा]] की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस [[राशि]] में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। [[पूर्णिमा]] के दिन, चंद्रमा जिस [[नक्षत्र]] में होता है। उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन 3 घाटी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।