"अशोक के अभिलेख": अवतरणों में अंतर

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== अशोक के शिलालेख ==
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अशोक के १४ शिलालेख विभिन्‍न लेखों का समूह है जो आठ भिन्‍न-भिन्‍न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं-
 
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;अशोक के शिलालेख और उसके विषय
* शिलालेख -1. इसमें पशु बलि की निंदा की गई।
* शिलालेख-2. समाज कल्याण, मनुष्य व पशु चिकित्सा।
* शिलालेख-3. अशोक के तीसरे शिलालेख से ज्ञात होता है कि उसके राज्य में प्रादेशिक, राजूक , युक्तों को हर 5 वें वर्ष धर्म प्रचार हेतु भेजा जाता था जिसे अनुसन्धान कहा जाता था। इसमें बचत, धार्मिक नियम और अल्प व्यय को धम्म का अंग बताया है।
* शिलालेख-4. भेरिघोष की जगह धम्म घोष की धोषणा।
* शिलालेख-5. धर्म महामत्रों की नियुक्ति (13 वें वर्ष )
* शिलालेख-6. आत्म नियंत्रण की शिक्षा।
* शिलालेख-7.व 8. अशोक द्वारा तीर्थ यात्राओ का वर्णन।
* शिलालेख-9. सच्ची भेंट व सच्चे शिष्टाचार का वर्णन।
* शिलालेख-10. राजा व उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें।
* शिलालेख-11. धम्म की व्याख्या। धर्म के वरदान को सर्वोत्तम बताया।
* शिलालेख-12. स्त्री महामत्रों की नियुक्ति व सभी प्रकार के विचारो के सम्मान की बात कही। धार्मिक सहिष्णुता की निति।
* शिलालेख-13. कलिंग युद्ध, अशोक का हृदय परिवर्तन, पड़ोसी राजाओं का वर्णन।
* शिलालेख-14. धार्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दी।
 
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== अशोक के लघु शिलालेख ==
 
* प्रथम शिलालेख : किसी भी पशु  वध न किया जाए तथा राजकीय एवँ "मनोरंजन तथा उत्सव" न किये जाने का आदेश दिया गया है ।
*द्वितीय शिलालेख : मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय खुलवाना और उनमें औषधि की व्यवस्था करना। मनुष्यों एवँ पशुओं के के कल्याण के लिए मार्गों पर छायादार वृक्ष लगवाने तथा पानी की व्यवस्था के लिए कुँए खुदवाए।
*तृतीय शिलालेख : राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिए गए हैं कि प्रति पाँच वर्षों के बाद धर्म प्रचार के लिए दौरे पर जायें।
*चतुर्थ शिलालेख : राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिए गए हैं कि व्यवहार के सनातन नियमों यथा - नैतिकता एवं दया -  का सर्वत्र प्रचार प्रसार किया जाए ।
*पञ्चम शिलालेख : इसमें धर्ममहामात्रों की नियुक्ति तथा धर्म और  नैतिकता के प्रचार प्रसार के आदेश का वर्णन है ।
*षष्ट शिलालेख : राजकीय पदाधिकारियों को स्पष्ट आदेश देता है कि सर्वलोकहित से सम्बंधित कुछ भी प्रशासनिक सुझाव मुझे किसी भी समय या स्थान पर दें ।
*सप्तम शिलालेख : सभी जाति, सम्प्रदाय के व्यक्ति सब स्थानों पर रह सकें क्योंकि वे सभी आत्म-संयम एवं ह्रदय की पवित्रता चाहते हैं ।
*अष्टम शिलालेख : राज्यभिषेक के दसवें वर्ष अशोक ने सम्बोधि (बोधगया) की यात्रा कर धर्म यात्राओं का प्रारम्भ किया। ब्राम्हणों एवं श्रमण के प्रति उचित वर्ताव करने का उपदेश दिया गया है ।  
*नवम शिलालेख : दास तथा सेवकों के प्रति शिष्टाचार का अनुपालन करें, जानवरों के प्रति उदारता, ब्राह्मण एवं श्रमण के प्रति उचित वर्ताव करने का आदेश दिया गया है ।
*दशम शिलालेख : घोषणा की जाए की यश और कीर्ति के लिए नैतिकता होनी चाहिए ।
*चतुर्दश शिलालेख : धर्म प्रचानार्थ अशोक अपने विशाल साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर शिलाओं के उपर धम्म लिपिबद्ध कराया जिसमें धर्म प्रशासन संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं का विवरण है ।
 
== अशोक के लघु शिलालेख ==
 
अशोक के लघु शिलालेख चौदह शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं है जिसे लघु शिलालेख कहा जाता है। ये निम्नांकित स्थानों से प्राप्त हुए हैं-