"अनुयोग (जैन धर्म)": अवतरणों में अंतर

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[[जैन धर्म]] में शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं। [[आगम (जैन)|जैनागम]] चार भागों में विभक्त है, जिन्हें चार '''अनुयोग''' कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग। इन चारों में क्रम से कथाएँ व पुराण, कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग, जीव का आचार-विचार और चेतनाचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्त्वों का निर्देश है। इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं।
 
*'''प्रथमानुयोग''' : इसमें संयोगाधीन कथन की मुख्यता होती है। इसमें ६३ [[शलाकापुरुष|शलाका पुरूषों]] का चरित्र, उनकी जीवनी तथा महापुरुषों की कथाएं होती हैं इसको पढ़ने से समता आती है