"इज़राइल का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Israel-flag01c.jpg|right|thumb|300px|इजराइल का ध्वज]]
[[इज़राइल]] संसार के [[यहूदी]] धर्मावलंबियों के प्राचीन राष्ट्र का नया रूप है। इज़रायल का नया राष्ट्र 14 मई सन् 1948 को अस्तित्व में आया। इज़रायल राष्ट्र, प्राचीन [[फ़िलिस्तीनी राज्यक्षेत्र|फ़िलिस्तीन]] अथवा पैलेस्टाइन का ही बृहत् भाग है।
 
== आदि काल ==
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याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा अथवा जूदा था। यहूदा के नाम पर ही उसके वंशज यहूदी (जूदा-ज्यूज़) कहलाए और उनका धर्म यहूदी धर्म (जुदाइज्म) कहलाया। प्रारंभ की शताब्दियों में याकूब के दूसरे बेटों की संतानें इज़रायल या "बनी इज़रायल" के नाम से प्रसिद्ध रही। फ़िलिस्तीन और [[अरब]] के उत्तर में याकूब की इन संततियों की "इज़रयल" और "जूदा" नाम की एक दूसरी से मिली हुई किंतु अलग-अलग दो छोटी-छोटी सल्तनतें थीं। दोनों में शताब्दियों तक गहरी शत्रुता रही। अंत में दोनों मिलकर एक हो गईं। इस सम्मिलन के परिणामस्वरूप देश का नाम इज़रायल पड़ा और जाति का यहूदी।
 
यहूदियों के प्रारंभिक इतिहास का पता अधिकतर उनके धर्मग्रंथें से मिलता है जिनमें मुख्य [[बाइबिल]] का वह पूर्वार्ध है जिसे "[[पुराना नियम|पुराना अहदनामा]]" (ओल्ड टेस्टामेंट) कहते हैं। पुराने अहदनामे में तीन ग्रंथ शामिल हैं। सबसे प्रारंभ में "तौरेत" (इबरानी थोरा) है। तौरेत का शब्दिक अर्थ वही है जो "धर्म" शब्द का है, अर्थात् धारण करने या बाँधनेवाला। दूसरा ग्रंथ "यहूदी पैगंबरों का जीवनचरित" और तीसरा "पवित्र लेख" है। इन तीनों ग्रंथों का संग्रह "पुराना अहदनामा" है। पुराने अहदनामें में 39 खंड या पुस्तकें हैं। इसका रचनाकाल ई.पू. 444 से लेकर ई.पू. 100 के बीच है। पुराने अहदनामे में सृष्टि की रचना, मनुष्य का जन्म, यहूदी जाति का इतिहास, सदाचार के उच्च नियम, धार्मिक कर्मकांड, पौराणिक कथाएँ और यह्वे के प्रति प्रार्थनाएँ शामिल हैं।
 
=== अब्राहम और मूसा ===
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[[अब्राहम]] और [[मूसा]] के बाद इज़रायल में जो दो नाम सबसे अधिक आदरणीय माने जाते हैं वे दाऊद (ईसाइयत में David) और उसके बेटे सुलेमान (ईसाइयत में Solomons) के हैं। सुलेमान के समय दूसरे देशों के साथ इज़रायल के व्यापार में खूब उन्नति हुई। सुलेमान ने समुद्रगामी जहाजों का एक बहुत बड़ा बेड़ा तैयार कराया और दूर-दूर के देशों के साथ तिजारत शुरु की। अरब, एशिया कोचक, अफ्रीका, यूरोप के कुछ देशों तथा भारत के साथ इज़रायल की तिजारत होती थी। सोना, चाँदी, हाथीदाँत और मोर भारत से ही इज़रायल आते थे। सुलेमान उदार विचारों का था। सुलेमान के ही समय इबरानी यहूदियों की राष्ट्रभाषा बनी। 37 वर्ष के योग्य शासन के बाद सन् 937 ई.पू. में सुलेमान की मृत्यु हुई।
[[चित्र:Kingdoms of Israel and Judah map 830.svg|right|thumb|300px|८३० ईसा पूर्व में इजराइल और जूदा (यहूदा) राज्य]]
[[सुलैमान|सुलेमान]] की मृत्यु से यहूदी एकता को बहुत बड़ा धक्का लगा। सुलेमान के मरते ही इज़रायली और जूदा (यहूदा) दोनों फिर अलग-अलग स्वाधीन रियासतें बन गईं। सुलेमान की मृत्यु के बाद 50 वर्ष तक इज़रायल और जूदा के आपसी झगड़े चलते रहे। इसके बाद लगभग 884 ई.पू. में [[उमरी]] नामक एक राजा इज़रायल की गद्दी पर बैठा। उसने फिर दोनों शाखों में प्रेमसंबंध स्थापित किया। किंतु उमरी की मृत्यु के बाद यहूदियों की ये दोनों शाखें सर्वनाशी युद्ध में उलझ गईं।
 
यहूदियों की इस स्थिति को देखकर असुरिया के राजा शुलमानु अशरिद पंचम ने सन् 722 ई.पू. में इज़रायल की राजधानी समरिया पर चढ़ाई की और उसपर अपना अधिकार कर लिया। अशरिद ने 27,290 प्रमुख इज़रायली सरदारों को कैद करके और उन्हें गुलाम बनाकर असुरिया भेज दिया और इज़रायल का शासनप्रबंध असूरी अफसरों को सपुर्द कर दिया। सन् 610 ई.पू. में असुरिया पर जब खल्दियों ने आधिपत्य कर लिया तब इज़रायल भी खल्दी सत्ता के अधीन हो गया।
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{{मुख्य|क्रूसेड}}
 
इसके पश्चात् सन् 1147 ई. से लेकर सन् 1204 तक ईसाइयों ने धर्मयुद्धों (क्रूसेडों) द्वारा इज़रायल पर कब्जा करना चाहा किंतु उन्हें सफलता नहीं मिली। सन् 1212 ई. में ईसाई महंतों ने 50 हजार किशोरवयस्क बालक और बालिकाओं की एक सेना तैयार करके '''पाँचवें धर्मयुद्ध''' की घोषणा की। इनमें से अधिकांश बच्चे [[भूमध्य सागर|भूमध्यसागर]] में डूबकर समाप्त हो गए। इसके बाद इस पवित्र भूमि पर आधिपत्य करने के लिए ईसाइयों ने चार असफल धर्मयुद्ध और किए।
 
13वीं और 14वीं शताब्दी में [[हुलाकू]] और उसके बाद [[तैमूरलंग|तैमूर लंग]] ने [[यरुशलम|जेरूसलम]] पर आक्रमण करके उसे नेस्तनाबूद कर दिया। इसके पश्चात् 19वीं शताब्दी तक इज़रायल पर कभी [[मिस्र|मिस्री]] आधिपत्य रहा और कभी तुर्क। सन् 1914 में जिस समय [[प्रथमपहला विश्व विश्वयुद्धयुद्ध|पहला विश्वयुद्ध]] हुआ, इज़रायल [[तुर्की]] के कब्जे में था।
 
== ब्रिटेन के अधीनता एवं नये राष्ट्र का उदय ==
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इज़रायल में जनतंत्री शासन है। वहाँ एकसंसदीय पार्लामेंट है जिसे "सेनेट" कहते हैं। इसमें 120 सदस्य सानुपातिक प्रतिनिधान की चुनाव प्रणाली द्वारा प्रति चार वर्षों के लिए चुने जाते हैं। इज़रायल का नया जनतंत्र एक ओर आधुनिक वैज्ञानिक साधनों के द्वारा देश को उन्नत बनाने में लगा हुआ है तो दूसरी ओर पुरानी परंपराओं को भी उसने पुनर्जीवन दिया है, जिनमें से एक है [[शनिवार]] को सारे कामकाज बंद कर देना। इस प्राचीन नियम के अनुसार आधुनिक इज़रायल में शनिवार के पवित्र "[[सैबथ]]" के दिन रेलगाड़ियाँ तक बंद रहती हैं।
 
यहूदियों ने ही पश्चिमी धर्मों में [[नबी|नबियों]] और [[पैगम्बरनबी|पैगंबरों]] तथा इलहामी शासनों का आरंभ और प्रचार किया। उनके नबियों ने, विशेषकर छठी सदी ई.पू. के नबियों ने जिस साहस और निर्भीकता से श्रीमानों और असूरी सम्राटों को धिक्कारा है और जो [[बाइबिल]] की पुरानी पोथी में आज भी सुरक्षित है, उसका संसार के इतिहास में सानी नहीं। उन्होंने ही नेबुखदनेज्ज़ार की अपनी बाबुली कैद में बाइबिल के पुराने पाँच खंड (पेंतुतुख) प्रस्तुत किए। इसी से बाबुल के संबध से ही संभवत: बाइबिल का यह नाम पड़ा।
 
== स्वतंत्रता ==
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सन्‌ 1948 ई. से पहले फिलिस्तीन [[ब्रिटेन]] के औपनिवेशिक प्रशासन के अंतर्गत एक अधिष्ठित (मैनडेटेड) क्षेत्र था। यहूदी लोग एक लंबे अरसे से फिलिस्तीन क्षेत्र में अपने एक निजी राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे। इसी उद्देश्य को लेकर संसार के विभिन्न भागों से आकर यहूदी फिलिस्तीनी इलाके में बसने लगे। अरब राष्ट्र भी इस स्थिति के प्रति सतर्क थे। फलत: 1947 ई. में अरबों और यहूदियों के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया। '''14 मई 1948''' ई. को अधिवेश (मैनडेट) समाप्त कर दिया गया और इज़रायल नामक एक नए देश अथवा राष्ट्र का उदय हुआ। युद्ध जनवरी, 1949 ई. तक जारी रहा। न तो किसी प्रकार की शांतिसंधि हुई, न ही किसी अरब राष्ट्र ने इज़रायल से राजनयिक संबंध स्थापित किए।
 
'''सन्‌ 1957''' में इज़रायल ने पुन: [[ब्रिटेन]] तथा [[फ़्रान्स|फ्रांस]] से मिलकर स्वेज की लड़ाई में गाजा क्षेत्र में अधिकार कर लिया, परंतु [[संयुक्त राष्ट्रसंघराष्ट्र]]संघ के आज्ञानुसार उसे इस भाग को अंतत: छोड़ना पड़ा। प्रथम युद्ध एक प्रकार से समाप्त हो गया, लेकिन अप्रत्यक्ष तनातनी बनी रही।
 
'''1967 ई.''' में स्थिति बहुत खराब हो गई और इज़रायल-सीरिया-सीमाक्षेत्र में हुई झड़पों के बाद मिस्र ने इज़रायल की सीमा पर अपनी सेना बड़ी संख्या में तैनात कर दी। राष्ट्रसंघीय पर्यवेक्षक दल को निष्कासित कर दिया गया और [[लाल सागर|रक्त सागर]] में इज़रायल की जहाजरानी पर [[मिस्र]] द्वारा रोक लगा दी गई। 5-6 जून की रात्रि को इज़रायल ने मिस्र पर जमीनी और हवाई आक्रमण शुरू कर दिए। [[जॉर्डन|जार्डन]] भी इज़रायल के विरुद्ध युद्ध में सम्मिलित हो गया और [[सीरिया]] की सीमाओं पर भी लड़ाई जारी हो गई। 11 जून को राष्ट्रसंघ द्वारा की गई युद्धविराम की अपील लगभग सभी युद्धरत राष्ट्रों ने स्वीकार कर ली। लेकिन इस समय तक इज़रायल [[गाज़ा पट्टी]], [[स्वेज़ नहर]] के तट तक सिनाई प्रायद्वीप के भूभाग, जार्डन घाटी तक जार्डन के भूभाग, [[यरुशलम|जेरूसलम]] तथा [[गैलिली सागर]] के पूर्व में स्थित सीरिया के [[गालन]] नामक पर्वतीय भाग (जिसमें क्यूनेत्रा नामक नहर भी है) पर अधिकार कर चुका था। जेरूसलम को तत्काल इज़रायल का अभिन्न अंग घोषित कर दिया गया, लेकिन शेष विजित इलाके को 'अधिकृत क्षेत्र' के रूप में ही रखा गया।
[[चित्र:Golda Meir 03265u.jpg|t|thumb|200px|गोलडा मेयर]]
'''फरवरी, 1969 ई.''' में [[लेवी एश्कोल]] की मृत्यु हो जाने पर श्रीमती [[गोलडा मायर]] इज़रायल की प्रधानमंत्री नियुक्त हुईं और अक्टूबर, 1969 ई. के चुनाव में उन्हें पुन: प्रधानमंत्री चुन लिया गया। युद्ध-विराम-रेखा पर और विशेष रूप से अधिकृत स्वेज़ क्षेत्र में इज़रायलियों तथा अरब राष्ट्रों एवं फिलिस्तीनी गुरिल्ला संगठन के बीच छोटी-मोटी झड़पें चलती रहीं जिनका अंत अगस्त, 1970 ई. में हुए युद्धविराम समझौते के बाद ही हुआ।
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* [[फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन]] (PLO)
* [[अरब-इजराइल युद्ध (१९४८)]]
* [[छः दिन का युद्ध|छः दिवसीय युद्ध]]
* [[यहोवा]]