"वर्नर हाइजनबर्ग": अवतरणों में अंतर

→‎प्रारम्भिक जीवन: वर्नर हाइजेनबर्ग का जन्म 5 दिसम्बर 1901 को वुर्ज़बर्ग (Würzburg) में हुआ था। वारेन ने अपनी पढ़ाई की शुरुआत वुर्ज़बर्ग के स्कूल मेक्सीमिलियन जिम्नेशियम (Maximilians Gymnasium, Munich) से की। जब वे पैदा हुए थे तब उनके पिता आगस्ट हाइजेनबर्ग (August Heisenberg) क्लासिकल लेंग्वेज के शिक्षक थे, जो आगे चलकर सन् 1909 में वे म्युनिक विश्वविद्यालय में ग्रीक भाषा के प्रोफेसर बने। कुछ महिनों के बाद वर्नर भी परिवार के साथ वुर्ज़बर्ग से म्यूनिक आ गये। सन् 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध छिड...
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→‎शोधकार्य: सन् 1922-23 के शीतकालीन अवकाश के दौरान हाइजेनबर्ग मैक्स बॉर्न, जेम्स फ्रेंक और डेविड हिलबर्ट के पास अपनी पीएचड़ी के लिये एक परियोजना पर कार्य करने के लिये गॉटिंगन गये। पी.एचडी. प्राप्त करने के बाद उन्हें गॉटिंगन विश्वविद्यालय में मैक्स बॉर्न के सहायक के रूप में कार्य करने का अवसर मिल गया। उन दिनों गॉटिंगन विश्वविद्यालय मैक्स बॉर्न के नैतृत्व में भौतिकी के बहुत बड़े केंद्र के रूप में विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखता था। मैक्स बॉर्न को उनके क्वांटम यांत्रिकी की सांख्यिकीय व्याख्य...
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सोमरफेल्ड अपने विद्यार्थियों से बहुत प्यार करते थे। उन्हें पता चल चुका था कि वर्नर हाइजेनबर्ग को ‘परमाणु के चितेरे’ नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नील्स बोहर के परमाणु भौतिकी के काम में बहुत रूचि है। इसीलिये एक बार जब गोटिंजन में ‘बोहर फेस्टिवल’ का आयोजन हुआ तो वे हाइजेनबर्ग को भी अपने साथ ले गये। इस फेस्टिवल में बोहर के व्याख्यानों की एक शृंखला आयोजित थी। यहीं वे पहली बार बोहर से मिले और उनके गहरे प्रभाव में आ गये।
 
=== कैरियरशोधकार्य ===
सन् 1922-23 के शीतकालीन अवकाश के दौरान हाइजेनबर्ग मैक्स बॉर्न, जेम्स फ्रेंक और डेविड हिलबर्ट के पास अपनी पीएचड़ी के लिये एक परियोजना पर कार्य करने के लिये गॉटिंगन गये। पी.एचडी. प्राप्त करने के बाद उन्हें गॉटिंगन विश्वविद्यालय में मैक्स बॉर्न के सहायक के रूप में कार्य करने का अवसर मिल गया। उन दिनों गॉटिंगन विश्वविद्यालय मैक्स बॉर्न के नैतृत्व में भौतिकी के बहुत बड़े केंद्र के रूप में विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखता था। मैक्स बॉर्न को उनके क्वांटम यांत्रिकी की सांख्यिकीय व्याख्या के लिये 1954 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।
 
इसके पश्चात 17 सितम्बर 1924 से 1 मई 1925 के बीच वे ‘रॉकफेलर ग्रांट’ प्राप्त कर कोपनहेगन विश्वविद्यालय में नील्स बोहर के साथ काम करने के लिये गये। उस समय क्वांटम दुनिया से उठ रही समस्याएं वैज्ञानिकों के सम्मुख चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रही थीं। बोहर इस क्षेत्र के अग्रणी वैज्ञानिक थे। उन्हें परमाणविक संरचना की खोज के लिये सन् 1922 का नोबेल पुरस्कार मिल चुका था। कोपनहेगन के चैतन्य और प्रेरक वातावरण से निकल कर जब वे लौटे तो क्वांटम जगत से उठ रही समस्याओं से निपटने के लिये उनके मस्तिष्क में सर्वथा नये विचार घुमड़ने लगे और उन्होंने सर्वथा नये तरीके से सोचना आरंभ किया।
 
वे बोहर मॉडल को लेकर सोचने लगे कि हम नहीं जानते कि इलेक्ट्रॉन परमाणु में कब, कहाँ हैं। हम अवशोषण या उत्सर्जन से इतना जान सकते हैं कि इलेक्ट्रॉन ने अवस्था परिवर्तन(State change) किया है। लेकिन इसने किस कक्षा से किस कक्षा में जाने के लिये किस रास्ते को तय किया है, यह कभी नहीं जाना जा सकता है। कक्षाओं के अस्तित्व को किसी भी तरीके से सत्यापित नहीं किया जा सकता है। अतः हम कैसे मान सकते हैं कि बोहर के ये आर्बिट वास्तविक आर्बिट हैं। अगर ये वास्तविक नहीं हैं तो फिर क्यों नहीं इनको छोड़कर आगे बढ़ने के लिये कोई अन्य वैकल्पिक रास्ता निकाला जाना चाहिये। वे सोचने लगे कि किसी भी सिद्धांत को ‘यथार्थ’ पर आधारित होना चाहिये न कि कल्पनाओं पर आधारित मॉडल्स पर। चूँकि हम संक्रमण (transition) के माध्यम से परमाणु को एक अवस्था से दूसरी में जाते हुए देखते हैं, अतः ‘संक्रमण’ को आधार बनाकर आगे बढ़ना उन्हें श्रेयस्कर लगा।
 
=== व्यक्तिगत जीवन ===