"उदयसिंह द्वितीय": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 15:
| dynasty =सिसौदिया राजवंश
| father = [[राणा सांगा]]
| mother = [[रानी कर्णवती|रानी कर्णावती]]
| birth_date = {{birth date|1522|8|4|df=y}}
| birth_place = [[चित्तौड़गढ़ दुर्ग]], [[राजस्थान]], [[भारत]]
पंक्ति 23:
{{मेवाड़ी राणा}}
 
'''उदयसिंह द्वितीय''' (जन्म ०४ अगस्त १५२२ ~ २८ फरवरी १५७२ ,[[चित्तौड़गढ़ दुर्ग]], [[राजस्थान]], [[भारत]]) एक [[मेवाड़]] के [[महाराणा]] थे और [[उदयपुर]] शहर के स्थापक थे जो वर्तमान में [[राजस्थान]] राज्य है। ये [[मेवाड़]] साम्राज्य के ५३वें शासक थे उदयसिंह [[मेवाड़]] के शासक [[राणा सांगा]] (संग्राम सिंह) के चौथे पुत्र थे<ref name="tod">Tod, James (1829, reprint 2002). ''Annals & Antiquities of Rajasthan'', Vol.I, Rupa, New Delhi, ISBN 81-7167-366-X, p.240-52</ref> जबकि इनकी माता का नाम [[बूँदी जिला|बूंदी]] की रानी, [[रानी कर्णवती|रानी कर्णावती]] था।
अकबर की सेना ने जब चित्तोड़ पर आक्रमण किया तो,उदयसिंह चित्तोड़ की रक्षा का भार सेनापति जयमल राठौड़ व वीर फत्ता सिसोदिया के उपर छोड़ कुछ कारणवश जंगलों में चले गए,ओर अकबर की सेना करीब 8 महिनों तक किले में प्रवेश करने में असफल रहे,1568 में जयमल राठौड़ को रात में किले की मरम्मत करते समय संग्राम नामक बंदूक से गोली लगने से घायल हो गए,ये दिन में युद्ध करतें व रातों-रात किले के की दिवारो को युद्ध से टूट जाने पर दुरस्त कर दते थे। जब इन्हें लगा अब हमें अन्तिम लड़ाई लड़नी है या तो जीत या हार,तो जयमल व फत्ता के नेतृत्व में राजपूतों ने केसरिया किया तथा फत्ता की पत्नी फूलकंवर के नेतृत्व में चित्तोड़ की महिलाओं ने जोहर किया,यह मेवाड़ का तृतीय वर्ष अन्तिम साका था,इस युद्ध में जयमल राठौड़ घायल हो गए फिर भी वह अपने भतिजे वीर कल्ला जी राठौड़ के कंधे पर सवार होकर अंतिम समय तक लड़ते रहे,वीर कल्ला जी को चार हाथो वाला देवता की उपाधि मिली,इस युद्ध में अकबर सेनापति जयमल राठौड़ व वीर फत्ता सिसोदिया की वीरता से खुश होकर आगरा किले के बाहर गजारूढ मुर्ति बनवाने का आदेश देते हैं, जिन्होने राजा की अनुपस्थिति में राष्ट्र की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान किया।
 
==व्यक्तिगत जीवन==
उदयसिंह का जन्म [[चित्तौड़गढ़]] में अगस्त १५२२ में हुआ था और इनका निधन १५७२ में हुआ था ,अपने पिता [[राणा सांगा|महाराणा सांगा]] के निधन के बाद [[रतन सिंह द्वितीय]] को नया शासक नियुक्त किया गया रत्न सिंह ने १५३१ में शासन किया था।<ref>Mahajan V.D. (1991, reprint 2007) ''History of Medieval India'', Part II, S. Chand, New Delhi, ISBN 81-219-0364-5, p.11</ref>[[राणा विक्रमादित्य सिंह]] के शासनकाल के दौरान [[तुर्की]] के सुल्तान गुजरात के बहादुर शाह ने [[चित्तौड़गढ़]] पर १५३४ में हमला कर दिया था इस कारण '''[https://www.rajgk.in/2020/02/maharana-udai-singh-history-in-hindi.html उदयसिंह]''' को [[बूँदी जिला|बूंदी]] भेज दिया था ताकि उदयसिंह सुरक्षित रह सके।<ref name="tod"/> १५३७ में [[पन्ना धाय|बनवीर]] ने [[राणा विक्रमादित्य सिंह|विक्रमादित्य]] का गला घोंटकर हत्या कर दी थी और उसके बाद उन्होंने उदयसिंह को भी मारने का प्रयास किया लेकिन उदयसिंह की धाय (nurse) [[पन्ना धाय]] ने उदयसिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था इस कारण उदयसिंह ज़िंदा रह सके थे ,[[पन्ना धाय]] ने यह जानकारी किसी को नहीं दी थी कि बनवीर ने जिसको मारा है वो उदयसिंह नहीं बल्कि उनका पुत्र चन्दन था। इसके बाद [[पन्ना धाय]] [[बूँदी जिला|बूंदी]] में रहने लगी। लेकिन उदयसिंह को आने जाने और मिलने की अनुमति नहीं दी।और उदयसिंह को खुफिया तरीक से [[कुम्भलगढ़ दुर्ग|कुम्भलगढ़]] में २ सालों तक रहना पड़ा था।
 
इसके बाद १५४० में [[कुम्भलगढ़ दुर्ग|कुम्भलगढ़]] में उदयसिंह का राजतिलक किया गया और मेवाड़ का राणा बनाया गया। उदयसिंह के सबसे बड़े पुत्र का नाम [[महाराणा प्रताप]] था जबकि पहली पत्नी का नाम [[महारानी जयवंताबाई]] था।<ref name="tod1">Tod, James (1829, reprint 2002). ''Annals & Antiquities of Rajas'than'', Vol.I, Rupa, New Delhi, ISBN 81-7167-366-X, p.252-64</ref> कुछ किवदन्तियों के अनुसार उदयसिंह की कुल २२ पत्नियां और ५६ पुत्र और २२ पुत्रियां थी। उदयसिंह की दूसरी पत्नी का नाम सज्जा बाई सोलंकी था जिन्होंने [[शक्ति सिंह]] और विक्रम सिंह को जन्म दिया था जबकि [[जगमाल सिंह]] ,चांदकंवर और मांकनवर को जन्म धीरबाई भटियानी ने दिया था ,ये उदयसिंह की सबसे पसंदीदा पत्नी थी। इनके अलावा इनकी चौथी पत्नी रानी वीरबाई झाला थी जिन्होंने जेठ सिंह को जन्म दिया था।
 
==कार्य==