"प्रेमचंद": अवतरणों में अंतर
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== साहित्यिक जीवन ==
प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था<ref>{{cite book |last=बाहरी |first=डॉ॰ हरदेव |title= साहित्य कोश, भाग-2,|year=१९८६|publisher=ज्ञानमंडल लिमिटेड |location=वाराणसी|id= |page=३५७ |access-date=}}</ref> पर उनकी पहली हिन्दी कहानी [https://www.thekahaniyahindi.com/2020/03/munshi-premchand-ki-kahaniya.html सरस्वती पत्रिका] के दिसम्बर अंक में १९१५ में सौत<ref>{{cite web |url=me.php?bookid=551|title=प्रेमचंद संचयन|access-date=26 जून 2008|format=पीएचपी|publisher= भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref><ref>{{cite web |url= http://wikisource.org/wiki/सौत|title=सौत|access-date=26 जून 2008|format=|publisher= विकिस्रोत|language=}}</ref> नाम से प्रकाशित हुई और १९३६ में अंतिम कहानी [[कफन (कथासंग्रह)|कफन]]<ref>{{cite web |url= http://wikisource.org/wiki/कफ़न|title=कफ़न|access-date=26 जून 2008|format=|publisher= विकिस्रोत|language=}}</ref> नाम से प्रकाशित हुई। <ref>{{cite book |last=सिंह |first=डॉ॰बच्चन |title= प्रतिनिधि कहानियाँ|year=1972|publisher=अनुराग प्रकाशन, विशालाक्षी, चौक |location=वाराणसी|id= |page=9 |access-date= }}</ref>
प्रेमचंद के लेख 'पहली रचना' के अनुसार उनकी पहली रचना अपने मामा पर लिखा व्यंग्य थी, जो अब अनुपलब्ध है। उनका पहला उपलब्ध लेखन उनका उर्दू उपन्यास 'असरारे मआबिद'<ref>यह उपन्यास उर्दू साप्ताहिक 'आवाजे खल्क' में 8 अक्टूबर 1903 से 1 फ़रवरी 1905 तक धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ। इसमें लेखक का नाम छपा था- मुंशी धनपतराय उर्फ नवाबराय इलाहाबादी। बाद में स्वयं प्रेमचंद ने इसका हिन्दी तर्जुमा 'देवस्थान रहस्य' नाम से किया, जो उनके पुत्र अमृतराय द्वारा उनके आरंभिक उपन्यासों के संकलन 'मंगलाचारण' में संकलित है।</ref> है। प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास 'हमखुर्मा व हमसवाब' जिसका हिंदी रूपांतरण 'प्रेमा' नाम से १९०७ में प्रकाशित हुआ। इसके बाद प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह ''[[सोज़े-वतन]]'' नाम से आया जो १९०८ में प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेज़ी सरकार ने रोक लगा दी और इसके लेखक को भविष्य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर लिखना पड़ा। 'प्रेमचंद' नाम से उनकी पहली कहानी ''बड़े घर की बेटी'' ज़माना पत्रिका के दिसम्बर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ [https://www.thekahaniyahindi.com/2020/03/munshi-premchand-ki-kahaniya.html मानसरोवर] नाम से ८ खंडों में प्रकाशित हुईं।
१९२१ में उन्होंने |