"अहिल्या": अवतरणों में अंतर

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| type = हिन्दू
'''अहल्या''' अथवा '''अहिल्या''' सनातन धर्म की कथाओं में वर्णित एक स्त्री पात्र हैं, जो [[महर्षि गौतम|गौतम ऋषि]] की पत्नी थीं। ब्राह्मणों और पुराणों में इनकी कथा छिटपुट रूप से कई जगह प्राप्त होती है और [[रामायण]] और बाद की रामकथाओं में विस्तार से इनकी कथा वर्णित है। कथाओं के अनुसार यह गौतम ऋषि की पत्नी और ब्रह्माजी की मानसपुत्री थी। [[ब्रह्मा]] ने अहल्या को सबसे सुंदर स्त्री बनाया। सभी [[देवता]] उनसे विवाह करना चाहते थे। ब्रह्मा ने एक शर्त रखी जो सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आएगा वही अहल्या का वरण करेगा। नारदजी ने ब्रह्माजी को बताया की अपने दैनिक पूजा क्रम में ऋषि गौतम ने गाय माता का परिक्रमा करते समय बछडे को जन्म दिया। वेदानुसार इस अवस्था में गाय की परिक्रमा करना त्रिलोक परिक्रमा समान होता है। इस तरह माता अहल्या की शादी [[अत्रि]] ऋषि के पुत्र ऋषि गौतम से हुआ।
| image = Ahalya.jpg
| caption = [[राजा रवि वर्मा]] (१८४८–१९०६) द्वारा निर्मित ''अहिल्या'' का चित्र।
| alt = लाल किनारों वाली श्वेत साड़ी पहने, पेड़ के सहारे खड़ी एक युवा गोरी महिला, उसने बायां हाथ इस तरह मोड़ रखा है कि वो बालों में है और दायां हाथ में फूलो की टोकरी ले रखी है।
| name = अहल्या
| affiliation = [[ऋषि]] (संत), ''पंचकन्या''
| devanagari = अहल्या
| sanskrit_transliteration = अहल्या
| abode = गौतम ऋषि का आश्रम
| consort = [[महर्षि गौतम|गौतम]]
| children = शतनन्दा
}}
'''अहल्या''' अथवा '''अहिल्या''' सनातन धर्म की कथाओं में वर्णित एक स्त्री पात्र हैं, जो [[महर्षि गौतम|गौतम ऋषि]] की पत्नी थीं। ब्राह्मणों और पुराणों में इनकी कथा छिटपुट रूप से कई जगह प्राप्त होती है और [[रामायण]] और बाद की रामकथाओं में विस्तार से इनकी कथा वर्णित है। कथाओं के अनुसार यह गौतम ऋषि की पत्नी और ब्रह्माजी की मानसपुत्री थी। [[ब्रह्मा]] ने अहल्या को सबसे सुंदर स्त्री बनाया। सभी [[देवता]] उनसे विवाह करना चाहते थे। ब्रह्मा ने एक शर्त रखी जो सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आएगा वही अहल्या का वरण करेगा। [[इन्द्र|इंद्र]] अपनी सभी चमत्कारी शक्ति द्वारा सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आये। लेकिन तभी [[नारद]] ने ब्रह्माजी को बताया की ऋषि [[गौतम]] ने इंद्र से पहले किया है। नारदजी ने ब्रह्माजी को बताया की अपने दैनिक पूजा क्रम में ऋषि गौतम ने गाय माता का परिक्रमा करते समय बछडे को जन्म दिया। वेदानुसार इस अवस्था में गाय की परिक्रमा करना त्रिलोक परिक्रमा समान होता है। इस तरह माता अहल्या की शादी [[अत्रि]] ऋषि के पुत्र ऋषि गौतम से हुआ।
 
इंद्र के गलती की वजह ऋषि गौतम ने माता अहिल्या शाप देकर पत्थर बना दिया। कालांतर में प्रभु श्रीराम के चरणस्पर्श द्वारा वे पुन: स्त्री बनी।
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ज्ञानमंडल, वाराणसी प्रकाशित आधुनिक कोश इसी अर्थ को लेकर लिखता है: ''"अहल्या- हल का अर्थ है कुरूप, अतः कुरूपता न होने के कारण ब्रह्मा ने इन्हें अहल्या नाम दिया।"''<ref>हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2, प्रकाशक- ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी-1, द्वितीय संस्करण 1986, पृष्ठ- 30 </ref><!-- वार्ता पन्ना देखें -->
 
चूँकि, कतिपय संस्कृत शब्दकोश ''अहल्या'' का अर्थ ''ऐसी भूमि जिसे जोता न गया हो'' लिखते हैं,{{r|Wilson p100|Apte p73}} बाद के लेखक इसे पुरुष समागम से जोड़कर देखते हुये, अहल्या को कुमारी अथवा अक्षता के रूप में निरूपित करते हैं। यह उस परम्परा के अनुकूल पड़ता है जिसमें यह माना गया है कि अहल्या एकानेक प्रकार से इन्द्र की लिप्सा से मुक्त और उनकी पहुँच से बाहर रही।{{sfn|Bhattacharya|March–April 2004|pp=4–7}}{{sfn|Doniger|1999|pp=89, 129}}{{sfn|Feller|2004|p=146}} हालाँकि, रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861–1941), "अहल्या" का अभिधात्मक अर्थ "जिसे जोता न जा सके" मानते हुए उसे प्रस्तरवत् निरूपित करते हैं जिसे राम के चरणस्पर्श ने ऊर्वर बना दिया।{{sfn|Datta|2001|p=56}} दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर भारती झावेरी<!-- DEPARTMENT OF MODERN INDIAN LANGUAGES AND LITERARY STUDIES --> भील जनजाति की मौखिक परम्परा में मौजूद रामायण के अनुसाररवीन्द्रनाथ क मत का समर्थन करती हैं और इसका अर्थ "जिसे जोता न गया हो ऐसी ज़मीन" के रूप में बताती हैं।{{sfn|Jhaveri|2001|pp=149–52}}
 
== अहिल्या की कथा ==