"पंचायतीराज में महिला सहभागिता": अवतरणों में अंतर

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== संवैधानिक प्रावधान ==
भारतीय संविधान के 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम, अप्रेल 1993 ने पंचायत के विभिन्न स्तरों पर पंचायत सदस्य और उनके प्रमुख दोनों पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थानों के आरक्षण का प्रावधान किया । जिसमें देश के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में सन्तुलन आये। इस संशोधन के माध्यम से संविधान में एक नया खण्ड (9) और उसके अन्तर्गत 16 अनुच्छेद जोडे गए। अनुच्छेद 243 (5) (3) के अन्तर्गत महिलाओं की सदस्यता और अनुच्छेद 243 (द) (4) में उनके लिए पदों पर आरक्षण का प्रावधान है। अनुच्छेद 243 (घ) में यह उपबन्ध है कि सभी स्तर की पंचायत में रहने वाली अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण होगा। प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले कुल स्थानों में से एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे। राज्य विधि द्वारा ग्राम और अन्य स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष के पदों के लिए आरक्षण कर सकेगा तथा राज्य किसी भी स्तर की पंचायत में नागरिकों के पिछड़े वर्गों के पक्ष में स्थानों या पदों का आरक्षण कर सकेगा। वर्तमान में बिहार के बाद मध्यप्रदेष तथा अन्य राज्यों में पंचायत में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाकर 50% कर दिया गया है।
== सीमाएं ==
 
आरक्षण के कारण सैद्धान्तिक रुप से शक्ति महिलाओं के हाथों में आ गई है। परन्तु यह भी कि आज पुरुष ही सत्ता पर वास्तविक नियन्त्रण रखे हुए है। अज्ञानता एवं अनुभवहीनता, पुरुषों पर निर्भरता महिलाओं के लिए आरक्षण को अर्थहीन बना देती है। अतः यह आवश्यक है कि महिलाओं में जागरुकता लाई जाये उनको राजनीतिक जानकारी से अवगत करवाया जाएं जहां तक सम्भव हो उन्हे नई भूमिका को निभाने के लिए शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाए।
वर्तमान में बिहार के बाद मध्यप्रदेष में पंचायत में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाकर 50% कर दिया गया हैै और यह सब इसलिए भी हुआ है कि महिलाआंे की शक्ति को अब पहचान मिल चुकी है।
 
 
लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने भी ग्राम स्तर पर प्रत्यक्ष लोकतंत्र का समर्थन किया था। उन्होनों कहा कि ’’मेरे लिए ग्राम लोकतन्त्र की प्रतीक हैं। हमें गांव से दिल्ली के लिए प्रतिनिध्यात्मक सरकार की आवश्यकता नहीं है। कम से कम एक स्थान पर तो प्रत्यक्ष सरकार, प्रत्यक्ष लोकतन्त्र होना चाहिए। पंचायत और ग्राम सभा के बीच वही सम्बन्ध होना चाहिए जो मंत्रिमण्डल और विधान सभा के बीच होता है।’’ यह प्रतिनिध्यात्मक लोकतन्त्र से प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की ओर ऐतिहासिक कदम है। ग्राम सभाओं के सबलीकरण के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय,भारत सरकार ने महिलाओं को सक्रिय भागीदारी का अवसर दिये जाने पर अधिकाधिक बल दिया। गंाधीजी के ग्रामीण-गणतन्त्रों का संरचनात्मक ढांचे में ग्राम गणतन्त्रों को सागरीय वृत्ताकार ढांचे के रुप में स्थापित करना चाहते थे। इसमें गांधीजी के अनुसार ’’सबसे पहला और सबसे आखिरी दोनों बराबर होंगे या यों कहिए कि न कोई पहला होगा और न कोई आखिरी।’’73 वें संविधान संशोधन के माध्यम से नवीन पंचायती राज व्यवस्था का श्रीगणेश भारत में हुआ।
 
इस व्यवस्था के लागू होंने के उपरांत अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछडे वर्ग एवं महिलाओं को प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ है। पंचायतों के उद्देश्य से इस संस्था को अधिकारों, शक्तियों एवं कर्तव्यों से नवाजा गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के सन्दर्भ में यह तथ्य स्वीकार्य है कि स्वतन्त्रता के 53 वर्षों के पश्चात भी विभिन्न प्रयासों के फलस्वरुप मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में सरकारें विफल रही। इसी कारण लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण एवं पंचायती राज संस्थाओं के सशक्तिकरण का महत्व उजागर हुआ।
 
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जिन पर पंचायती राज को सफल बनाने के लिए ध्यान देना आवश्यक है। सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि महिलाओं और कमजोर वर्गों सहित समाज के वास्तविक सशक्तिकरण को सम्भव बनाया जाए। मात्र कानून निर्माण से ही या आरक्षण की सुरक्षा प्रदान करने से ही शक्ति जनता के हाथों में और खासतौर पर महिलाओं और कमजोर वर्ग के लोगो के हाथों में नहीं पहुँच जाती। सशक्तिकरण के लिए संसाधनों पर नियन्त्रण आवश्यक है। स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण जनता के हाथों में हो। जनता एवं जनप्रतिनिधियों व पंचायत पदाधिकारियों को उनके अधिकारों, शक्तियों व कर्त्तव्यों की जानकारी देनी होगी तथा अपना दायित्व निभाना सीखना होगा। महिलाओं व पिछड़े वर्गों के संदर्भ में यह तथ्य और भी तहत्वपूर्ण है क्योकिं सामाजिक व्यवस्था में आज भी महिलाएं पुरुषों पर ही आश्रित है। आरक्षण के कारण सैद्धान्तिक रुप से शक्ति महिलाओं और कमजोर वर्गों के हाथों में आ गई है। परन्तु यह भी कि आज पुरुष ही सत्ता पर वास्तविक नियन्त्रण रखे हुए है। अज्ञानता एवं अनुभवहीनता, पुरुषों पर निर्भरता महिलाओं के लिए आरक्षण को अर्थहीन बना देती है। अतः यह आवश्यक है कि महिलाओं में जागरुकता लाई जाये उनको राजनीतिक जानकारी से अवगत करवाया जाएं जहां तक सम्भव हो उन्हे नई भूमिका को निभाने के लिए शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाए।
 
पंचायतों में कार्यरत महिलाओं को समय-समय पर नए कार्यक्रमों की जानकारी दी जाये तथा वर्तमान में चालू कार्यक्रमों में उन्हें कितने संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे है इसकी जानकारी भी दी जाए तभी वे ग्राम के लिए प्रभावशाली योजनाएं बना सकेंगी व विभिन्न कार्यक्रमों के लक्ष्य तक पहुंच पाएगी। इसके अतिरिक्त ग्राम पंचायतों की कार्यप्रणाली उनकी भूमिका पर समय-समय पर मीडिया, पत्र-पत्रिकाओं द्वारा जानकारी उपलब्ध कराई जाए व रेडियो, व टी.वी. प्रसारणों में वार्ताओं व विशेष रुप से ग्राम पंचायतों को ध्यान में रखकर सूचनाओं का प्रसारण किया जाना चाहिए। जब तक महिलाओं में आत्मविश्वास स्वनिर्णय क्षमता व स्वावलम्बन की भावना जाग्रत नहीं होंगी, महिलाएं जागरुक नहीं होंगी, तथा राष्ट्र की विकासधारा में अपनी सक्रिय भूमिका तथा भागीदारी नहीं निभाएंगी तब तक राष्ट्र का सर्वागींण विकास सम्भव नहीं है।