"गुप्त राजवंश": अवतरणों में अंतर

xxx
छो सौरभ तिवारी 05 के अवतरण 4645216पर वापस ले जाया गया : बेनामी उपयोगकर्ता 2405:205:2426:b023:4891:f598:c89:7996 द्वारा उत्पात को वापस लिया ओर सौरभ तिवारी के स्मरण के पुनसि (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 5:
|region = दक्षिणी एशिया
|era = प्राचीन भारत
|year_start = 3rd century CE275
|year_end = 543455 CE
|status = साम्राज्य
<!-- पूर्ववर्ती एवं अनुगामी -->
Line 47 ⟶ 48:
 
==गुप्त वंश की उत्पत्ति==
गुप्त वंश धारण है जो कि वैश्य समाज में पाया जाता है इसके लिए “अन्धकारयुगीन भारत” पृ० 252 पर लेखक काशीप्रसाद जायसवाल ने लिखा है कि : “गुप्त लोग वैश्य थे<ref>[[अन्धकारयुगीन भारत]] पृष्ठ 252|Url https://books.google.co.in/books?id=8p0tAAAAMAAJ&dq=kashi+prasad+jayaswal+jat&focus=searchwithinvolume&q=Gupta+jat</ref><ref>Url https://books.google.co.in/books?id=yg9uAAAAMAAJ&q=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F&dq=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwju7vKfgKfkAhXV73MBHU_4BwcQ6AEIOTAD</ref> जो पंजाब से चलकर आए थे। आजकल के कक्कड़-कक्करान जाट उसी मूल समाज के प्रतिनिधि हैं जिस समाज में गुप्त लोग थे। कारसकरों में भी गुप्त लोग जिस विशिष्ट गुप्त विभाग या गोत्र के थे, उनका नाम धारण या धारी या धारीवाल था। इसके लिए एपीग्राफिका इण्डीका, खण्ड 15, पृ० 41-42 पर लिखा है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती जिसका विवाह वाकाटकवंशज रुद्रसेन द्वितीय से हुआ तब प्रभावती गुप्ता ने अपने पिता का गोत्र शिलालेख पर धारण ही लिखा है।<ref>Gupta-rajavamsa tatha usaka yuga Author-Udai Narain Roy - 1977|url https://books.google.co.in/books?id=CAsKAQAAIAAJ&q=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F&dq=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwju7vKfgKfkAhXV73MBHU_4BwcQ6AEITTAG</ref>
गुप्त वंश धारण गोत्र का है जो कि वैश्य अग्रवाल समाज में समाज में पाया जाता है चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त ने पूना अभिलेख में अपने वंश को स्पष्टतः धारण गोत्रीय बताया हैं. अग्रवालो के १८ गोत्र में से एक गोत्र धारण हैं. गुप्त वैश्यों की उपाधि हैं. आज भी धार्मिक कर्म व संकल्प करते हुए वैश्य पुरोहित नाम व गोत्र के साथ गुप्त उपनाम का उल्लेख करते है. गुप्त शासको के नाम श्री, चन्द्र, समुद्र, स्कन्द आदि थे. जबकि गुप्त उनका उपनाम था. जो की उनके वर्ण व जाति को उद्घोषित करता हैं. गुप्त उपनाम केवल और केवल वैश्य समुदाय के व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त होता हैं.इतिहास में व पुरानो में गुप्त सम्राटो को वैश्य बताया गया है. बोद्ध धर्मग्रन्थ आर्यमंजुश्री कल्प में गुप्त वंश को वैश्य बताया गया है. इतिहासकार अल्तेकर, आयंगर, रोमिल्ला थापर, रामचरण शर्मा आदि ने गुप्त वंश को वैश्य बताया है.गुप्त सम्राटो ने यज्ञोपवित धारण किया था. व अश्वमेध यज्ञ कराये थे. केवल द्विज ही यह कार्या कर सकते थे. अग्रवाल द्विज जाति है. और प्राचीन क्षत्रिय जाति है. जिसने बाद में वैश्य कर्म अपनाया. गुप्त वंश के शासक अग्रवाल थे. प्रख्यात इतिहासकार राहुल संस्क्रतायन ने भी गुप्त वंश को अग्रवाल वैश्य बताया हैं. अग्रवालो की कुलदेवी माता लक्ष्मी है. गुप्त सम्राटो की कुलदेवी भी माता लक्ष्मी है. अग्रवाल मुख्यतः वैष्णव होते है. और शद्ध शाकाहारी भी. गुप्त वंश के शासक भी वैष्णव और शाकाहारी थे. गुप्त वंश के समय में भारत सोने की चिड़िया कहलाया था. एक विशुद्ध वैश्य शासक ही व्यापार को बढ़ावा दे सकता है. कुछ बाहर से आयी हुई जातिया, जो की पहले शक और हुन थी. वह गुप्त वंश का अपना बताने पर तुली हुई है.
 
इस बात का समर्थन कौमुदी महोत्सव नाटक और चन्द्रव्याकरण से भी होता है।”
स्कन्दगुप्त के द्वारा हूणों की पराजय का "अजयज्जर्टो हूणान" चन्द्रगोमिन् की व्याकरण से स्पष्ट गुप्तवंश का जाट होना सिद्ध करता है।<ref>चंद्रगोमनी व्याकरण</ref>
डा० जायसवाल की इस बात को दशरथ शर्मा तथा दूसरों ने भी प्रमाणित माना है।
डा० जायसवाल के इस मत कि गुप्त लोग जाट थे के पक्ष में लेख्य प्रमाण हैं जो कि ‘आर्य मंजूसरी मूला कल्पा’ नामक भारत का इतिहास, जो संस्कृत एवं तिब्बती भाषा में आठवीं शताब्दी ई० से पहले लिखा गया, उस पुस्तक के श्लोक 759 में लिखा है कि “एक महान् सम्राट् जो मथुरा जाट परिवार का था और जिसकी माता एक वैशाली कन्या थी, वह मगध देश का सम्राट् बना।<ref>[[Imperial History of India]], P. 72</ref><ref>pratiyogita darpan|Url https://books.google.co.in/books?id=RegDAAAAMBAJ&pg=PT70&dq=kashi+prasad+jayaswal+jat+gupta&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwi018bT_abkAhUyjOYKHdv6BLcQ6AEILjAB#v=onepage&q=kashi%20prasad%20jayaswal%20jat%20gupta&f</ref>
यह हवाला समुद्रगुप्त का है जिसकी माता एक वैशाली राज्य की राजकुमारी थी।
उस सम्राट् समुद्रगुप्त ने अपने सिक्कों पर “लिच्छवि दौहित्र” बड़े गर्व से प्रकाशित करवाया था।
चन्द्रगुप्त प्रथम मथुरा का जाट था जिसका विवाह लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी से हुआ था। उस सम्राट् के सिक्कों पर उन दोनों की मूर्तियां थीं।
 
== साम्राज्य की स्थापना: श्रीगुप्त ==
Line 224 ⟶ 233:
* नरसिंहगुप्त 'बालादित्य' 495-530
 
==सन्दर्भ==
==इन्हें भी देखें==
{{टिप्पणीसूची}}
 
==इन्हें भी देखें==
*[[गुप्ताब्द]]
*[[समुद्रगुप्त]]
*[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://www.gsjunction.com/गुप्त-साम्राज्य-का-उदय-प्/ गुप्तकाल महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर]
 
{{Commonscat|Gupta Empire|गुप्त राजवंश}}
 
[[श्रेणी:राजवंश]]