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===द्वादश सर्ग===
तारकासुर के आतंक से भयाकुल देवता इन्द्र के साथ कैलाश पर्वत पर पहुँचते हैं। नन्दी सोने का डंडा लिये पहरा दे रहा था। इन्द्रादि देवताओं ने अपने गणों के साथ बैठे हुए भगवान शिव को देखा। शिव अपने गणों के साथ कुमार कार्तिकेय की शस्त्र विद्या का अभ्यास देख रहे थे। नन्दी ने इन्द्रादि देवताओं के आगमन की सूचना भगवान शिव को दी। शिव ने मुरझाये कमलमुख वाले देवताओं से पूँछा, कि आप लोग स्वर्ग छोड़कर इस प्रकार म्लान मुख एवं कान्तिहीन क्यों हैं? क्या आपके कष्टों का हेतु दैत्य तारक है? इस प्रकार महादेव द्वारा आश्वासन मिलने पर इन्द्र ने विनम्र भाव से कहा - ब्रह्मा से वरदान प्राप्त तारकासुर ने हम लोगों को स्वर्ग से निकाल दिया है। अब आप अपने इस अजेय पुत्र को हम देवताओं का सेनापति बनने की आज्ञा दे दीजिए, जिससे हम लोगों की प्राण रक्षा हो सके। इन्द्रादि देवताओं की प्रार्थना पर महादेव ने अपने पुत्र कुमार कार्तिकेय से कहा, हे पुत्र! तुम देवताओं के सेनापति बनकर तारकासुर का बधूबद्ध करो।
 
===त्र्योदश सर्ग===