भीष्म के नाम से प्रसिद्ध देवव्रत पूर्व जन्म में एक वसु थे ।एक| एक बार कुछ वसु अपनी पत्नियों के साथ [[मेरु पर्वत]] पर भ्रमण करने गए ।| उस पर्वत पर महर्षि वशिष्ठ जी का आश्रम थे ।| उस समय महर्षि वशिष्ठ जी आपने आश्रम में नहीं थे लेकिन वहां उनकी प्रिय गायें [[कामधेनु]] की बछड़ी [[नन्दिनी (गाय)|नंदिनी गाये]] बंधी थी ।| उस [[गाय|गायें]] को देखकर द्यौ नाम के एक वसु की पत्नी उस गायें को लेने की जिद करने लगी ।| अपनी पत्नी की बात मानकर द्यौ वसु ने महर्षि वशिष्ठ जी के आश्रम से उस गायें को चुरा लिया ।| जब महर्षि वशिष्ठ जी वापिस आए तो उन्होंने [[दिव्य]][[दृष्टि]] से पूरी घटना को देख लिया ।|
[[महर्षि]] वशिष्ठ जी वसुओं के इस कार्य को देखकर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने वसुओं को श्राप दे दिया कि उन्हें मनुष्य रूप में [[पृथ्वी]] पर जन्म लेना पड़ेगा ।| इसके बाद सभी वसु वशिष्ठ जी से माफ़ी मांगने लगे ।| इस पर महर्षि वशिष्ठ जी ने बाकी वसुओं को माफ़ कर दिया और कहा की उन्हें जल्दी ही [[मनुष्य]][[जन्म]] से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन द्यौ नाम के वसु को लम्बे समय संसार में रहना होगा और दुःख भोगने पड़ेंगे।पड़ेंगे |