"शब-ए-क़द्र": अवतरणों में अंतर
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* इस्लाम में इस रात को रुतबा हासिल हुआ है क्योंकि इस में नुज़ूल क़ुरआन हुआ है, क़ुरआन-ए-मजीद किताबों में अज़मत-ओ-शरफ़ वाली किताब है और पैग़म्बर पर ये किताब नाज़िल हुई वो तमाम पैग़म्बरों पर अज़मत-ओ-शरफ़ रखते है। इस किताब को लाने वाले जिब्रील भी सब फ़रिश्तों पर अज़मत-ओ-शरफ़ अर्थात बड़ा सम्मान और रुतबा रखते हैं तो ये रात लैलतुल-क़द्र बन गई।<br>
* इस रात को की गई अल्लाह की इबादत को हज़ारों महीनों की इबादतों से बेहतर माना जाता है. इस रात की इबादत का सवाब (पुण्य) 83 साल 4 महीने की इबादत (उपासना) के बराबर है।<br>
====कौनसी रात है? शब-ए-क़द्र====
शब-ए-क़द्र हर साल ही किसी एक तय रात में नहीं होती बल्कि बदलती रहती है।<br>
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