"मोहम्मद ग़ोरी": अवतरणों में अंतर

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== जीवनी ==
[[ग़ोरी राजवंश]] की नीव अला-उद-दीन जहानसोज़ ने रखी और सन् ११६१ में उसके देहांत के बाद उसका पुत्र सैफ़-उद-दीन ग़ोरी सिंहासन पर बैठा। अपने मरने से पहले अला-उद-दीन जहानसोज़ ने अपने दो भतीजों - शहाब-उद-दीन (जो आमतौर पर [[मुहम्मद ग़ोरी]] कहलाता है) और ग़ियास-उद-दीन जो जाति से गुज्जर थे- को क़ैद कर रखा था लेकिन सैफ़-उद-दीन ने उन्हें रिहा कर दिया।<ref name="ref11varad">[http://books.google.com/books?id=y4dCAAAAIAAJ The history of India: the Hindu and Mahometan periods], Mountstuart Elphinstone, pp. 358-359, J. Murray, 1889, ''... the first act of that son, Seif ud din, was to release his cousins and restore them to their governments ...''</ref> उस समय ग़ोरी वंश [[ग़ज़नवी राजवंश|ग़ज़नवियों]] और [[सलजूक़ साम्राज्य|सलजूक़ों]] की अधीनता से निकलने के प्रयास में था। उन्होंने ग़ज़नवियों को तो ११४८-११४९ में ही ख़त्म कर दिया था लेकिन सलजूक़ों का तब भी ज़ोर था और उन्होंने कुछ काल के लिए [[ग़ोर प्रान्त]] पर सीधा क़ब्ज़ा कर लिए था, हालांकि उसके बाद उसे ग़ोरियों को वापस कर दिया था।
 
सलजूक़ों ने जब इस क्षेत्र पर नियंत्रण किया था जो उन्होंने सैफ़-उद-दीन की पत्नी के ज़ेवर भी ले लिए थे। गद्दी ग्रहण करने के बाद एक दिन सैफ़-उद-दीन ने किसी स्थानीय सरदार को यह ज़ेवर पहने देख लिया और तैश में आकर उसे मार डाला। जब मृतक के भाई को कुछ महीनो बाद मौक़ा मिला तो उसने सैफ़-उद-दीन को बदले में भाला मरकर मार डाला। इस तरह सैफ़-उद-दीन का शासनकाल केवल एक वर्ष के आसपास ही रहा।<ref name="ref11varad"/> ग़ियास-उद-दीन नया शासक बना और उसके छोटे भाई शहाब-उद-दीन ने उसका राज्य विस्तार करने में उसकी बहुत वफ़ादारी से मदद करी। शहाब-उद-दीन (उर्फ़ मुहम्मद ग़ोरी) ने पहले ग़ज़ना पर क़ब्ज़ा किया, फिर ११७५ में [[मुल्तान]] और [[ऊच]] पर और फिर ११८६ में [[लाहौर]] पर। जब उसका भाई १२०२ में मरा तो शहाब-उद-दीन मुहम्मद ग़ोरी सुलतान बन गया।