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ऊदल ने अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु [[पृथ्वीराज चौहान]] से युद्ध करते हुए ऊदल वीरगति प्राप्त हुए
आल्हा को अपने छोटे भाई की वीरगति की खबर सुनकर अपना अपना आपा खो बैठे और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर मौत बनकर टूट पड़े आल्हा के सामने जो आया मारा गया 1 घंटे के घनघोर युद्ध की के बाद पृथ्वीराज और आल्हा आमने-सामने थे
दोनों में भीषण युद्ध हुआ पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह घायल हुए आल्हा के गुरु गोरखनाथ के कहने पर परमवीर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दिया और नाथ पंथ स्वीकार कर लिया
आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दिया और बुंदेलखंड के महा योद्धा आल्हा ने नाथ पंथ स्वीकार कर लिया
 
आल्हा चंदेल राजा परमर्दिदेव (परमल के रूप में भी जाना जाता है) के एकभतीजे एवं उनकी सेना के महान सेनापति थे, जिन्होंने 1182 ई० में पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई लड़ी, जो आल्हा-खांडबॉल में अमर हो गए।
गढ़ महोबा इनकी राजधानी थी, जिसकी शोभा कहना या लिखना संभव नही है , इतनी वैभवपूर्ण थी !
महावीर आल्हा और ऊदल ने अपने पराक्रम से चहुं ओर चंदेल साम्राज्य का विस्तार किया एवं सुरक्षित रखा !
 
लेकिन इनके पिता की एक ही भूल भारी पड़ी जो चंदेल राजपूत होकर अहीरों की बिटिया देवल और बिरमा से विवाह किया , जिस कारण अन्य राजपूत शासकों ने इन्हें वह सम्मान कभी न दिया जिसके ये हकदार थे लेकिन क्षत्रिय रक्त तो असर दिखाता ही सो उन्होंने अपने विवाह संबंधों के लिए 52 गढ़ों में युद्ध के बिगुल बजा दिए अंततः सभी को इनकी वीरता का लोहा स्वीकार करना पड़ा !
 
==अल्हाडिट की उत्पत्ति==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/आल्हा" से प्राप्त