"छायावाद": अवतरणों में अंतर

छोNo edit summary
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
छो Shastripawan (वार्ता) के 2 संपादन वापस करके रोहित साव27के अंतिम अवतरण को स्थापित किया (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 16:
कवि के केवल सूक्ष्म भावात्मक दर्शन का ही नहीं, 'छाया' से उसके सूक्ष्म कलाभिव्यजंन का भी परिचय मिलता है। उसकी काव्यकला में वाच्यार्थ की अपेक्षा लाक्षणिकता और ध्वन्यात्मकता है। अनुभूति की निगूढ़ता के कारण अस्फुटता भी है। शैली में राग की नवोद्बुद्धता अथवा नवीन व्यंजकता है।
 
द्विवेदी युग में कविता का ढाँचा पद्य का था। वस्तुत: गद्य का प्रबंध ही उसमें पद्य हो गया था, भाषा भी गद्यवत् हो गई थी। छायावाद ने पद्य का ढाँचा तोड़कर खड़ी बोली को काव्यात्मक बना दिया। पद्य में स्थूल इतिवृत्त था, छायावाद के काव्य में भावात्मक अतंर्वृत्त था, छायावाद के काव्य में भावात्मक अंतर्वृत्त आ गया। भाव के अनुरूप ही छायावाद की भाषा और छंद भी रागात्मक और रसात्मक हो गया। ब्रजभाषा के बाद छायावाद द्वारा गीतकाव्य का पुनरुत्थान हुआ। [https://www.hindigrema.com/2020/05/history-of-hindi-literature-modern-chayavad.html छायावाद युग के प्रतिनिधि कवि] हैं- प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी, रामकुमार। पूर्वानुगामी सहयोगी हैं- माखनलाल और 'नवीन'।
 
गीतकाव्य के बाद छायावाद में भी महाकाव्य का निर्माण हुआ। तुलसीदास जैसे 'स्वांत:' को लेकर लोकसंग्रह के पथ पर अग्रसर हुए थे वैसे ही छायावाद के कवि भी 'स्वात्म' को लेकर एकांत के स्वगत जगत् से सार्वजनिक जगत् में अग्रसर हुए। [[जयशंकर प्रसाद|प्रसाद]] की '[[कामायनी]]' और [[सुमित्रानन्दन पंत|पंत]] का 'लोकायतन' इसका प्रमाण है। 'कामायनी' सिंधु में विंदु (एकांत अंतर्जगत्) की ओर है, 'लोकायतन' विंदु में सिंधु (सार्वजनिक जगत्) की ओर।
पंक्ति 133:
*[http://vle.du.ac.in/mod/book/print.php?id=12151 उत्तर छायावाद : परिवेश और प्रवृत्तियाँ]
*[http://vle.du.ac.in/mod/book/print.php?id=11848 स्वछंदतावाद तथा छायावाद]
*[https://www.hindigrema.com/2020/05/history-of-hindi-literature-modern-chayavad.html छायावाद]
 
{{छायावादी कवि}}