"सरना धर्म": अवतरणों में अंतर

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चुंकि आदिवासी प्रकृति पूजक है, प्रकृति पूजक सरना धर्म को 'आदि धर्म' भी कहा जाता रहा है। सरना धर्म आदिवासियों में "[[हो भाषा|हो]]", "[[सांथाल जनजाति|संथाल]]", "[[मुण्डा]]", "[[उराँव]]" , "[[कुड़मी महतो]]" इत्यादि खास तौर पर इसको मानते हैं। जानकारी के अभाव में सरना धर्म को छोड़ कर बहुत से आदिवासी लोग [[ईसाई धर्म]] , [[हिन्दू धर्म]] और [[इस्लाम|इस्लाम धर्म]] अपना रहे हैं। जिससे <ref>[http://countrystudies.us/india/57.htm "The Green Revolution in India"]. ''U.S. Library of Congress (released in public domain)''. Library of Congress Country Studies. Retrieved 2007-10-06.</ref> जो कि आदिकाल से जिस परम्परा को मानते आ रहा है, उसे छोड़ने पर विवश हैं। सरना धर्म के अंदर अधिकतर परंपराएं प्रकृति पूजक मानी जाती है जिस प्रकार से सनातन धर्म में भी प्रकृति को पूजा जाता है, उसी प्रकार से सरना के अंदर भी आदिवासी लोग प्रकृति को पूजते हैं!
 
''' सरना धर्म '''
 
सरना धर्म क्‍या है ? यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है ? इसका आदर्श और दर्शन क्‍या है ? अक्‍सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्‍हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? लब्‍बोलुआब यह होता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्‍हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्‍य बिन्‍दुवार की जाए।
 
सच कहा जाए तो सरना एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्‍यवहार के साथ पारलौकिक आध्‍यमिकता या आध्‍यत्‍म भी जुडा हुआ है। आत्‍म और पर-आत्‍मा या परम-आत्‍म का आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्‍य गतिविधियों में गुंफित रहता है।
 
सरना अनुगामी प्राकृतिक का पूजन करता है। वह घर के चुल्‍हा, बैल, मुर्गी, पेड, खेत खलिहान, चॉंद और सूरज सहित सम्‍पूर्ण प्राकृतिक प्रतीकों का पूजन करता है। वह पेड काटने के पूर्व पेड से क्षमा याचना करता है। गाय बैल बकरियों को जीवन सहचार्य होने के लिए धन्‍यवाद देता है। पूरखों को निरंतर मार्ग दर्शन और आशीर्बाद देने के लिए भोजन करने, पानी पीने के पूर्व उनका हिस्‍सा भूमि पर गिरा कर देते हैं। धरती माता को प्रणाम करने के बाद ही खेतीबारी के कार्य शुरू करते हैं।
 
लेकिन यह पूजन कहीं भी रूढ नहीं है। कोई भी सरना लोक और परलोक के प्रतीकों में से किसी का भी पूजन कर सकता है और किसी का भी न करे तो भी वह सरना ही होता है। कोई किसी एक पेड की पूजा करता है तो जरूरी नहीं कि दूसरा भी उसी पेड की पूजा करे। दिलचस्‍प और ध्‍यान देने वाली बात तो यह है कि जो आज एक विशेष पेड की पूजा कर रहा है जरूरी नहीं कि वह कल भी उसी पेड की पूजा करे। यहॉं पेड किसी मंदिर, मस्जिद या चर्च की तरह रूढ नहीं है। वह तो विराट प्रकृति का सिर्फ एक प्रतीक है और हर पेड प्रकृति का जीवंत प्रतीक है, इसलिए किसी एक पेड को रूढ होकर पूजन करने का कोई मतलब नहीं। अमूर्त शक्ति की उपासना के लिए एक मूर्त प्रतीक की सिर्फ आवश्‍यकता-वस वह उस या इस पेड का पूजन करता है।
 
सरना धर्म किसी धार्मिक ग्रंथ और पोथी का मोहताज नहीं है। पोथी आधारित धर्म में अनुगामी नियमों के खूँटी से बॉधा गया होता है। जहॉं अनुगामी एक सीमित दायरे में आपने धर्म की प्रैक्टिस करता है। जहॉं वर्जनाऍं हैं, सीमा है, खास क्रिया क्रमों को करने के खास नियम और विधियॉं हैं, जिसका प्रशिक्षण खास तरीके से दिया जाता।
 
पोथीबद्ध धर्म के इत्‍तर सरना धार्मिकता के उच्‍च व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता की गारंटी देयता का धर्म है। जहॉं सब कुछ प्राकृतिक से प्रभावित है और सब कुछ प्रकृतिमय है। कोई नियम, वर्जनाऍं नहीं है। आप जैसे हैं वैसे ही बिना किसी कृत्रिमता के सरना हो सकते हैं और प्राकृतिक ढंग से इसे अपने जीवन में अभ्‍यास कर सकते हैं। जीवंत और प्राणमय प्रकृति, जो जीवन का अनिवार्य अंग है, आप उसके एक अंग है। आप चाहें तो इसे मान्‍यता दें या न दें। आप पर किसी तरह की बंदिश नहीं है।
 
आप प्रकृति के प्रति अपनी श्रद्धा की अभिव्‍यक्ति कहीं भी कर सकते हैं या कहीं भी न करें तो भी आपको कोई मजबूर नहीं करेगा, क्‍योंकि हर व्‍यक्ति की भक्ति की शक्ति या शक्ति की भक्ति के अपनी अवधारणाऍं हैं। एक समूह का अंग होकर भी आपके ”वैचारिक और मानसिक व्‍यक्तित्‍व” समूह से इतर हो सकता है। अपने वैयक्तिक आवधारणा बनाए रखने और उसे लोक व्‍यवहार में प्रयोग करने के लिए आप स्‍वतंत्र है। यही सरना धर्म की अपनी विशेषता और अनोखापन है।
 
यह किसी रूढ बनाए या ठहराए गए धार्मिक, सामाजिक या नैतिक नियमों से संचालित नहीं होता है। आप या तो सरना स्‍थल में पूजा कर सकते हैं या जिंदगी भर न करें। यह आपके व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता का भरपूर सम्‍मान करता है। आप चाहें तो अपने बच्‍चों को सरना स्‍थल में ले जाकर वहॉं प्रार्थना करना सिखाऍं या न सिखाऍं । कोई आप पर किसी तरह की मर्जी को लाद नहीं सकता है।
 
आप धार्मिक, सामाजिक और ऐच्छिक रूप से स्‍वतंत्र हैं। आपको पकड कर न कोई प्रार्थना रटने के लिए कहा जाता है न ही आपको किसी प्रकार से मजबूर किया जाता है कि आप धार्मिक स्‍थल जाऍं और वहॉं अपनी हाजिरी लगाऍं और कहे गए निर्देशों का पालन करें । सरना धर्म के कर्मकांड करने के लिए कहीं किसी को न प्रोत्‍साहन किया जाता है न ही इससे दूर रहने के लिए किसी का धार्मिक और सामाजिक रूप से तिरस्‍कार और बहिष्‍कार किया जाता है। सरना धर्म किसी को धार्मिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप से नियंत्रित नहीं करता है और न ही उन्‍हें अपने अधीन रखने के लिए किसी भी तरह के बंधन बना कर उन पर थोपता है।
 
सरना बनने या बने रहने के लिए कोई नियम या सीमा रेखा नहीं बनाया गया है। इसमें घुसने के लिए या बाहर निकले के लिए आपको किसी अंतरण अर्थात (धर्मांतरण) करने की जरूरत नहीं है । कोई किसी धार्मिक क्रिया कलाप न में शामिल न होते हुए भी सरना बन के रह सकता है उसके धार्मिक झुकाव या कर्मकांड में शामिल नहीं होने या दूर रहने के लिए कोई सवाल जवाब नहीं किया जाता है। सरना धर्म का कोई पंजी या रजिस्‍टर नहीं होता है। इसके अनुगामियों के बारे कहीं कोई लेखा जोखा नहीं रखा जाता है, न ही किसी धार्मिक नियमों से संबंधित जवाब के न देने पर नाम ही काटा जाता है।
 
सरना अनुगामी जन्‍म से मरण तक किसी तरह के किसी निर्देशन, संरक्षण, प्रवचन, मार्गदर्शन या नियंत्रण के अधीन नहीं होते हैं। उसे धार्मिक रूप से आग्रही या पक्का बनाने की कोई कोशिश नहीं की जाती है। वह धार्मिक रूप से न तो कट्टर होता है और न ही धार्मिक रूप से कट्टर बनाने के लिए उसका ब्रेनवाश किया जाता है। क्‍योंकि ब्रेनवाश करने, उसे धार्मिकता के अंध-कुँए में धकेलने के लिए कोई तामझाम या संगठन होता ही नहीं है। इसीलिए इसे प्राकृतिक धर्म भी कहा गया है। प्राकृतिक अर्थात् जो जैसा है वैसा ही स्‍वीकार्य है। इसे नियमों ओर कर्मकांडों के अधीन परिभाषित भी नहीं किया गया है। क्‍योंकि इसे परिभाषा से बांधा नहीं जा सकता है।
 
जन्‍म, विवाह मृत्‍यु सभी संस्‍कारों में उनकी निष्‍ठा का कोई परिचय न तो लिया जाता है न ही दिया जाता है। हर मामले में वे किसी आधुनिक देश में लागू किए सबसे आधुनिक संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार ही (समता-स्‍वतंत्रतापूर्ण जीवन जीने जैसे मूल अधिकार की तरह) सदियों से व्‍यक्तिगत और सामाजिक स्‍वतंत्रता का उपभोग करते आ रहा है। उसके लिए कोई पर्सनल कानून नहीं है। वह शादी भी अपनी मर्जी जिसमें सामाजिक मर्जी स्‍वयं सिद्ध रहता है, से करता है और तलाक भी अपनी मर्जी से करता है। लडकियॉं सामाजिक रूप से लडकों की तरह की स्‍वतंत्र होती है। धर्म उनके किसी सामाजिक कार्यों में कोई बंधन नहीं लगाता है।
 
सरना बनने के लिए किसी जाति में जन्‍म लेने की जरूरत नहीं है। वह उरॉंव, मुण्‍डा, हो, संताल, खडिया, महली या चिक-बडाइक कहीं के भी आदिवासी, मसलन, उडिसा, छत्‍तीसगढ, महाराष्‍ट्र, गुजरात या केरल के हो, जो किसी अन्‍य किताबों, ग्रंथों, पोथियों आधारित धर्म नहीं मानता है और जिसमें सदियों पुरानी जीवन यापन के अनुसार जिंदगी और सामाज चलाने की आदत रही है सरना या प्राकृतिक धर्म का अनुगामी कहा जा सकता है। क्‍योंकि उन्‍हें नियंत्रित करने वाले न तो कोई संगठन है, न समुदाय है न ही उन्‍हें मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से नियंत्रण में रखने वाला बहुत चालाकी से लिखी गई किताबें हैं। कोई भी आदमी सरना बन कर जीवन यापन कर सकता है क्‍योंकि उसे किसी धर्मांतरण के क्रिया कलापों से होकर गुजरने की जरूरत नहीं है।
 
सरना धर्म में सरना अनुगामी खुद ही अपने घर का पूजा पाठ या धार्मिक कर्मकांड करता है। लेकिन सार्वजनिक पूजापाठ जैसे सरना स्‍थल में पूजा करना, करम और सरहूल में पूजा करना, गॉंव देव का पूजा या बीमारी दूर करने के लिए गॉंव की सीमा पर किए जाने वाले डंगरी पूजा वगैरह पहान करता है। पहान का चुनाव विशेष प्रक्रिया जिसे थाली और लोटा चलाना कहा जाता के द्वारा किया जाता है। जिसमें चुने गए व्‍यक्ति को पहान की जिम्‍मेदारी दी जाती है। लेकिन अलग अलग जगहों में पृथक ढंग से भी पहान का चुनाव किया जाता है। चुने गए पहान पहनाई जमीन पर खेती बारी कर सकता है या उसे चारागाह बनाने के लिए छोड सकता है। उल्‍लेखनीय है कि सरना पहान सिर्फ पूजा पाठ करने के लिए पहान होता है। वह समाज को धर्म का सहारा लेकर नियंत्रित नहीं करता है। वह हमेशा पहान की भूमिका में नहीं रहता है। वह सिर्फ पूजा करते वक्‍त ही पहान होता है। पूजा की समाप्ति पर अन्‍य सामाजिक सदस्‍यों की तरह ही रहता है और सबसे व्‍यवहार करता है। वह पहान होने पर कोई विशिष्‍टता प्राप्‍त नागरिक नहीं होता है। अन्‍य धर्मो में पूजा करने वाला व्‍यक्ति न सिर्फ विशिष्‍ट होता है बल्कि वह हमेशा उसी भूमिका में समाज के सामने आता है और आम जनता को उसे विशिष्‍ट सम्‍मान अदा करना पडता है। सम्‍मान नहीं अदा नहीं करने पर धार्मिक रूप से ”उदण्‍ड” व्‍यक्ति को सजा दी जा सकती है, उसकी निंदा की जा सकती है। पहान धार्मिक कार्य के लिए कोई आर्थिक लाभ नहीं लेता है। वह किसी तरह का चंदा भी नहीं लेता है। वह अपनी जीविकोपार्जन स्‍वयं करता है और समाज पर आश्रित नहीं रहता है।
 
कई लोग अन्‍जाने में या शरातर-वश सरना धर्म को हिन्‍दू धर्म का एक भाग कहते हैं और सरना आदिवासियों को हिन्‍दू कहते हैं। लेकिन दोनों धर्मो में कई विश्‍वास या कर्मकांड एक सदृष्‍य होते हुए भी दोनों बिल्‍कुल ही जुदा हैं। यह ठीक है कि सदियों से सरना और हिन्‍दू धर्म सह-अस्तित्‍व में रहते आए हैं। इसलिए कई बातें एक सी दिखती है।
लेकिन आदिवासी सरना और हिन्‍दू धर्म के बीच 36 का आंकडा है। आदिवासी मूल्‍य, विश्‍वास, आध्‍याम हिन्‍दू धर्म से बिल्‍कुल जुदा है इसलिए किसी आदिवासी का हिन्‍दू होना मुमकिन नहीं है। हिन्‍दू धर्म कई किताबों पर आधारित है और उन किताबों के आधार पर चलाए गए विचारों से यह संचालित होता है। याद कीजिए इन किताबों का आदिवासी समाज के लिए कोई महत्‍व नहीं न ही प्रभाव है। इन किताबों के लिए आदिवासियों के मन में सम्‍मान भी नहीं है न ही हिकारत। इन किताबों में आत्‍म, पुर्नजन्‍म, सृष्टि और उसका अंत, चौरासी कोटी देवी देवता, ब्राह्मणवाद की जमींदारी और मालिकाना विचार आदि केन्‍द्र बिन्‍दु है। यह जातिवाद का जन्‍मदाता और पोषक है और सामांतवाद को यहॉं धार्मिक मान्‍यता प्राप्‍त है। यहीं हिन्‍दू धर्म सरना धर्म के उलट रूप में प्रकट होता है। ब्राहणवाद और जातिवाद से पीडित यह जबरदस्‍ती बहुसंख्‍यक, कर्मवीर और श्रमशील लोगों को नीच घोषित करता है और लौकिक और परलौकिक विषयों की ठेकेदारी ब्राह्मण और उनके मनोवैज्ञानिक उच्‍चता का बोध कराने के लिए बनाए गए नियमों को सर्वोच्‍चता प्रदान करता है। यह वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक रूप ये अत्‍यंत अन्‍यायकारी और घ़ृष्‍टतापूर्ण है। इंसानों को अन्‍यायपूर्ण रूप से धार्मिक भावनाओं के बल पर जानवरों की तरह गुलाम बनाने के हर औजार इन किताबों में मौजूद है।
 
ऐसा धार्मिक नियम, परंपरा और लोक व्‍यवहार सरना समाज में मौजूद नहीं है। सरना समाज में जातिवाद और सामांतवाद दोनों ही नहीं है। यहॉं सिर्फ समुदाय है, जो न तो किसी दूसरे समुदाय से उॅच्‍च है न नीच है। सरना धर्म के समता के मूल्‍य और सोच के बलवती होने के कारण किसी समुदाय का शोषण का कोई सोच और मॉडल न तो विकसित हुई है और न ही ऐसे किसी प्रयास के मान्‍यता मिली है।
कई लोग आदिवासियों के हनुमान और महादेव के पूजन को हिन्‍दू धर्म से जोडकर इसे हिन्‍दू सिद्ध करना चाहते हैं। लेकिन सरना वालों ने कहीं इसका मंदिर न तो खुद बनाए हैं न ही सामाजिक धर्म और पर्वों में इनके घरों में पूजा की जाती है। ऐतिहासिक रूप से अभी तक कुछ स्‍पष्‍ट नहीं हो पाया है लेकिन अनेक विद्वान हनुमान और महादेव को प्रागआदिवासी मानते हैं। हजारों सालों से एक ही धरती पर निरंतर साथ रहने के कारण दोनों के बीच कहीं अंतरण हुआ होगा। लेकिन आदिवासी हिन्‍दू नहीं है यह स्‍पष्‍ट है।
 
हाल ही में हिन्‍दुत्‍व, क्रिश्चिनि‍टी, इस्‍लाम से प्रभावित कुछ उत्‍साही जो अपने को सरना के रूप में परिचय देते हैं, लोगों ने सरना को परिभाषित करने, उसका कोई प्रतीक चिन्‍ह, तस्वीर, मूर्ति, मठ, पोथी आदि बनाने की कोशिश की है जिसे निहायत ही आईडेंटिटी क्राइसेस से जुझ रहें लोगों का प्रयास माना जा सकता है। इन चीजों के बनने का सरना धर्म के मूल्‍यों में हृास होगा और इसके अनुठापन खत्‍म होगा । सरना धर्म में विचार, चिंतन की स्‍वतंत्रता उपलब्‍ध है । वे भी स्‍वतंत्र हैं अपने धार्मिक चिंतन को एक रूप देने के लिए । लेकिन ऐसे परिवर्तन को सरना कहना, एक मजाक के सिवा कुछ नहीं है। सरना किसी मूर्ति, चिन्‍ह, तस्‍वीर या मठ का मोहताज नहीं है। फिर यह भी दूसरे धर्म की धार्मिक बुराईयों का शि‍कार हो जाएगा।
 
यदि सरना के दर्शन के शब्‍दों में कहा जाए तो यह सब चिन्‍ह आपनी आईडेंटिटी गढने, रचने और उसके द्वारा व्‍यैयक्तिक पहचान बनाने के कार्य हैं । जिसका इस्‍तेमाल, सामाजिक कम राजनैतिक, सांस्‍कृतिक और वैचारिक साम्राज्‍य गढने और वर्चस्‍व स्‍थापित करने के लिए एक हथियार के रूप में किया जाता रहा है। ऐसे चीजों का अपना एक बाजार होता है और उसके सैकडों लाभ मिलते हैं। लेकिन सरना दर्शन, सोच, विचार, विश्‍वास, मान्‍यता से बाजार का कोई संबंध नहीं है। मिट्टी के छोटे दीया, भांड, घडा आदि हजारों साल से स्‍थानीय लोगों के द्वारा ही निर्मित होता रहा है और इसका कोई स्‍थायी बाजार नहीं होता है।
 
कु्ल मिला कर यही कहा जा सकता है कि सरना एक अमूर्त शक्ति को मानता है और सीमित रूप से उसका आराधना करता है। लेकिन इस आराधना को वह सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप में नहीं बदलता है। वह आराधना करता है लेकिन उसके लिए किसी तरह के शोशेबाजी नहीं करता है। यदि वह करता है तो फिर वह कैसे सरना ???? लेकिन किसी मत को कोई मान सकता है और नहीं भी, क्‍योंकि व्‍यक्ति के पास अपना विवेक होता है और यह विवेक ही उसे अन्‍य प्राणी से अलग करता है, विवेकवान होने के कारण अपनी अच्‍छाईयों को पहचान सकता है। सब अच्‍छाईयॉं, कल्‍याणकारी पथ खोजने के लिए स्‍वतंत्र है। इंसान की इसी स्‍वतंत्रता की जय जयकार हर युग में हर तरफ हुई है
 
==संस्थान==