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{{गुर्जर प्रतिहार राजवंश}}
 
'''महेन्द्रपाल प्रथम''' (885-910 ई०), [[मिहिर भोज]] का पुत्र और गुर्जर-प्रतिहार वंश का सातवाँ शासक था। उसकी माँ का नाम चन्द्रभट्टारिकादेवी था। महेन्द्रपाल प्रथम का उल्लेख [[काठियावाड़]], [[पंजाब]] और [[मध्य प्रदेश]] के विभिन्न शिलालेख में महिंद्रापाल, महेन्द्रयुधा, महिशपालदेव नाम से किया गया है। और राजशेखर के नाटक में निर्भयराजा और निर्भयानरेंद्र नाम से भी उल्लेख किया गया है।<ref>{{cite book|title=History of Kanauj: To the Moslem Conquest|author=Rama Shankar Tripathi|publisher=Motilal Banarsidass Publ.|year=1989|ISBN=978-81-208-0404-3|page=248|url=https://books.google.com/books?id=2Tnh2QjGhMQC&pg=PA248&dq|access-date=12 जनवरी 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20170826121030/https://books.google.com/books?id=2Tnh2QjGhMQC&pg=PA248&dq|archive-date=26 अगस्त 2017|url-status=live}}</ref><ref>{{cite book|title=History of Ancient India: Earliest Times to 1000 A. D.|author=Radhey Shyam Chaurasia|publisher=Atlantic Publishers & Distributors|year=2002|page=208|ISBN=978-81-269-0027-5|url=https://books.google.com/books?id=cWmsQQ2smXIC&pg=PA208&dq}}</ref>
 
== राज-काल ==
रामगया, गदाधर मंदिर [[गया]] के सामने से, गया जिले के दक्षिणी भाग में गुनेरिया से, बिहार के [[हजारीबाग जिला|हजारीबाग जिले]] के इटखोरी से और बंगाल के राजशाही जिले में पहारपुर के उत्तरी भाग से मिले शिलालेख में महेन्द्रपाल प्रथम के शासनकाल का वर्णन मिलता है। [[मगध महाजनपद|मगध]] का अधिक से अधिक भाग, यहाँ तक कि उत्तरी [[बंगाल]] तक का क्षेत्र महेन्द्रपाल प्रथम के शासनकाल में गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य का हिस्सा था।<ref name="Sen">Sen, S.N., 2013, A Textbook of Medieval Indian History, Delhi: Primus Books, {{ISBN|9789380607344}}</ref><sup>:21</sup>
 
उत्तर में उसका अधिकार क्षेत्र, हिमालय की तराई तक था। [[ग्वालियर]] भी उसके नियंत्रण में था, जैसा कि सियादोनी शिलालेख में 903 और 907 ई० में उसके शासन का उल्लेख है। इस प्रकार, न केवल उसने अपने पिता मिहिर भोज द्वारा बनाए साम्राज्य को बचाये रखा बल्कि [[पाल वंश]] को हरा कर बंगाल कुछ हिस्से को को भी अपने साम्राज्य में जोड़ लिया।<ref>{{Cite book|last=Rama Shankar Tripathi|author=Rama Shankar Tripathi|year=1989|title=History of Kanauj: To the Moslem Conquest|url=https://books.google.com/books?id=2Tnh2QjGhMQC&pg=PA248&dq|pages=248–254|publisher=Motilal Banarsidass Publ.|isbn=978-81-208-0404-3|ISBN=978-81-208-0404-3|access-date=12 जनवरी 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20170826121030/https://books.google.com/books?id=2Tnh2QjGhMQC&pg=PA248&dq|archive-date=26 अगस्त 2017|url-status=live}}</ref>
 
दिनाजपुर में महेन्द्रपाल का एक शिलालेख स्तंभ पाया गया है। इसके अलावा श्रीमति नदी के किनारे पर उसका बसाया एक समृद्ध गांव प्रतिराजपुर के अवशेष भी पाये गये है।<ref>The Archaeological report of dinajpur.</ref>