"वार्ता:पुष्यमित्र शुंग": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 30:
 
यदि हम पुष्यमित्र शुंग को लोकप्रिय दयालु राजा मान भी लें तो उसके द्वारा लोक हित में किया गया कोई भी कार्य क्यों हमारे समक्ष नहीं दिखता. इससे ये स्पष्ट की पुष्यमित्र शुंग एक धोकेबाज़ राजद्रोही था जिसने सत्ता के लालच में आके मौर्य सम्राट ब्रह्द्रथ की हत्या कर दी और अपने धर्म अर्थात ब्राह्मण धर्म की स्थापना करने का प्रयास किया और खुले आम बौद्ध अनुयायियों को मौत के घाट उतारा जिसके भय की वजह से आम जनता ने उसकी दासता स्वीकार कर ली. यदि पुष्यमित्र जैसा हत्यारा अच्छा राजा था तो उसके शासन काल में कौन सी कला का उद्भव हुआ या किस साहित्य का विकास हुआ? पुष्यमित्र सिर्फ एक अत्याचारी राजा था जिसने भारत की अखंडता को तहस नहस किया. कई ब्राम्हण वादी लोग ऐसे धोकेबाज़ हत्यारे का भी महिमा मंडन करने में नहीं थकते क्योकि पुष्यमित्र ने ब्राम्हणों की कमाई का जरिया बनाया और उनको ही सर्वश्रेष्ठ घोषित किया. पुष्यमित्र ने आम जनता के शिक्षा और स्वतंत्रता के अधिकार छीन लिए ताकि उन्हें अधिक समय तक गुलाम रखा जा सके. पुष्यमित्र जैसे हत्यारे शासक की जितनी निंदा की जाय कम है.
 
इतिहास की चर्चा में व्यक्ति को पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए। किसी भी प्राचीन राजा या शासक को महान अथवा अयोग्य घोषित करने से पूर्व उसके द्वारा किये गये कार्यों का औचित्य तथा उन कार्यों के परिणामों पर गंभीरता से निष्पक्षता पूर्वक विचार किया जाना चाहिए।
पुश्यमित्र शुंग का ब्राहमण होना विवादित है। "शुंग" शब्द कहीं से भी तत्सम तद्भव या देशज प्रतीत नहीं होता। इस शब्द का सही विश्लेषण भाषा वैज्ञानिक हीं बता पायेंगे। पुष्यमित्र शुंग का चरित्र भी उन दिनों के भारतीय ब्राहमणों के चरित्र से मेल नहीं खाता। उन दिनों शिक्षा का स्तर बहुत उँचा था। तथा भारत में चाणक्य जैसे विद्वान एवं महान ब्राहमण हुआ करते थे।
सम्राट बृहद्रथ मात्र दो वर्ष पूर्व हीं मगध के सिंहासन पर बैठे थे। पुश्यमित्र ने महान अशोक के महान कार्यों का विध्वंस किया। चौरासी हजार बौद्ध धर्म ज्ञान केन्द्रों को उजाड़ा। तथा एक भिक्षु के सर के बदले उस समय के १०० स्वर्ण मुद्राएँ देने का घोषणा कर दिया। पुष्यमित्र शुंग को यह अनुमान नहीं रहा होगा कि जिस बौद्ध धर्म का नामों निशान वह मिटाना चाहता है। एक दिन वही बौद्ध विचारधारा दुनिया में भारत की पहचान बनेगा। वर्तमान भारत की पीढी बुद्ध एवं बौद्ध विचारधारा पर गर्व करती है। दुनिया को अपनी शांति का संदेश देते हुए आज भारत सरकार का शीर्ष नेतृत्व बड़े गर्व से यह घोषणा करती है कि " हमें युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए।
 
राजा बनने के बाद उसने सिर्फ स्वार्थ हित को महत्व दिया। अश्वमेघ यज्ञ में राजा का निजी स्वार्थ दंभ एवं यश लिप्सा होती है। राज्य की सीमा बढती है मगर नागरिकों का कोई हित नहीं होता। तथ्य है कि शुंग राज्य की सीमा बढने के बजाय उल्टे सिकुड़ गई। शुंग ने राज्य एवं नागरिक हित में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया। सनातन वैदिक धर्म का मूल स्वरुप बिगाड़ा।
पुष्यमित्र के राजा बनने के बाद न सिर्फ मौर्य वंश समाप्त हो गया बल्कि मगध साम्राज्य का भी अंत हो गया। राज्य सिमटकर छोटा हो गया "मगध साम्राज्य" नाम भी समाप्त हो गया
पाटलिपुत्र नाम मात्र की राजधानी रह गई। सत्ता का केन्द्र विदिशा स्थानांतरित हो गया था। इतने छोटे से लेख में किसी इतिहासिक राजा के चरित्र के बारे में कोई निर्णय दे देना एक अधुरा एवं अनुचित कार्य होगा। इस लिए राजा शुंग की कथित महानता को न तो सिरे से नकारा जा सकता है और न हीं उसे एक घाती चरित्र घोषित किया जा सकता है। इतिहास के सभी तथ्यो, साक्ष्यों, घटनाओं परिस्थितियों उनके कार्यों तथा कार्य के परिणामों के संपूर्ण अध्ययन किये बगैर कोई भी निर्णय जल्दीबाजी होगा तथा न्याय नहीं होगा
इस तरह पुश्यमित्र शुंग एक विवादित चरित्र है जिसकी पुरी ऐतिहासिक समीक्षा अभी शेष है। जो इतिहास के विद्वानों को तय करना है।
[[सदस्य:Rajnandan|Rajnandan]] ([[सदस्य वार्ता:Rajnandan|वार्ता]]) 05:08, 20 जून 2020 (UTC)
पृष्ठ "पुष्यमित्र शुंग" पर वापस जाएँ।