पुष्यमित्र शुंग
यह लेख मुख्य रूप से अथवा पूर्णतया एक ही स्रोत पर निर्भर करता है। कृपया इस लेख में उचित संदर्भ डालकर इसे बेहतर बनाने में मदद करें। (अप्रैल 2020) |
पुष्यमित्र शुंग (185 – 149 ई॰पू॰) प्राचीन भारत के शुंग राजवंश के एक राजा थे। वह शुंग साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम राजा थे। इससे पहले वह मौर्य साम्राज्य में सेनापति थे। 185 ईसापूर्व में पुष्यमित्र ने अन्तिम मौर्य सम्राट राजा बृहद्रथ का संहार कर स्वयं को राजा उद्घोषित किया। उसके बाद उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया और उत्तर भारत का अधिकतर हिस्सा अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। शुंग राज्य के शिलालेख पंजाब के जालन्धर में मिले हैं और दिव्यावदान के अनुसार यह राज्य सांग्ला (वर्तमान सियालकोट) तक विस्तृत था।
पुष्यमित्र शुंग | |
---|---|
![]() | |
शुंग साम्राज्य | |
शासनावधि | ल. 185 |
पूर्ववर्ती | बृहद्रथ मौर्य |
उत्तरवर्ती | अग्निमित्र |
संतान | अग्निमित्र |
राजवंश | शुंग साम्राज्य |
धर्म | हिंदू |
पुराणों में पुष्यमित्र शुंग का एक महान राजा के रूप में वर्णन मिलता है।
महाभाष्य में पतंजलि और पाणिनि की अष्टाध्यायी के अनुसार पुष्यमित्र शुंग का गोत्र भारद्वाज ब्राह्मण कहा जाता है। इस समस्या के समाधान के रूप में जे॰सी॰ घोष ने उन्हेंद्वैयमुष्यायन बताया जिसे ब्राह्मणों की एक द्वैत गोत्र माना जाता है। उनके अनुसार द्वैयमुष्यायन अथवा दैत गोत्र, दो अलग-अलग गोत्रों के मिश्रण से बनी ब्राह्मण गोत्र होती है अर्थात पिता और मात्रा की गोत्र (यहाँ भारद्वाज और कश्यप)। ऐसे ब्राह्मण अपनी पहचान के रूप में दोनों गोत्र रख सकते हैं।[1] परन्तु उज्जैन नगर में अत्रियों की शाखों का निकाय होने के कारण इन्हें अत्रि गौत्रीय भी माना जाता है।
पुष्यमित्र का शासन प्रबन्धसंपादित करें
साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। पुष्यमित्र प्राचीन मौर्य साम्राज्य के मध्यवर्ती भाग को सुरक्षित रख सकने में सफल रहा। पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक विस्तृत था। दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालन्धर और स्यालकोट पर भी उसका अधिकार था। साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजकुमार या राजकुल के लोगो को राज्यपाल नियुक्त करने की परम्परा चलती रही। पुष्यमित्र ने अपने पुत्रों को साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सह-शासक नियुक्त कर रखा था। उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का राज्यपाल था। राजकुमार जी सेना के संचालक भी थे। इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी।
इस काल तक आते-आते मौर्यकालीन केन्द्रीय नियन्त्रण में शिथिलता आ गयी थी तथा सामंतीकरण की प्रवृत्ति सक्रिय होने लगी थी।
पुष्यमित्र के बाद ही वर्ण व्यवस्था को बढ़ावा मिला जो अंग्रेजो के आने के बाद कानून के सहारे खत्म करने का प्रयास किया गया।।
बाहरी कड़ियाँसंपादित करें
- पुष्यमित्र
- Koenraad Elst, Why Pushyamitra was more "secular" than Ashoka Article on the alleged Hindu persecution of Buddhism by Pushyamitra
- ↑ घोष, जे॰सी॰,"The Dynastic-Name of the Kings of the Pushyamitra Family," J.B.O.R.S, Vol. XXXIII, 1937, पृष्ठ 359-360