पुष्यमित्र शुंग

शुंग वंश का संस्थापक

पुष्यमित्र शुंग (१८५ – १४९ ई॰पू॰) प्राचीन भारत के शुंग राजवंश के एक राजा थे।[1] वे शुंग साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम राजा थे। इससे पहले वे मौर्य साम्राज्य में सेनापति थे। १८५ ईसापूर्व में पुष्यमित्र ने अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का वध कर स्वयं को राजा उद्घोषित किया।[2] उसके बाद बौद्ध उनके दुश्मन बन गए पुष्यमित्र शुंग ने । शुंग राज्य के शिलालेख पंजाब के जालन्धर में मिले हैं [3]और दिव्यावदान के अनुसार यह राज्य सांग्ला (वर्तमान सियालकोट) तक विस्तृत था। कलिंग का राजा खारवेल था।हाथीगुम्फा अभिलेख से ज्ञात होता है की खारवेल ने मगध पर आक्रमण कर पुष्यमित्र शुंग को पराजित किया था।[4]

पुष्यमित्र शुंग
भरहुत स्तूप से प्राप्त उद्भृति पर एक मनुष्य, शुंग काल, द्वितीय शताब्दी ईसापूर्व
शुंग साम्राज्य
शासनावधिल. 185
पूर्ववर्तीबृहद्रथ मौर्य
उत्तरवर्तीअग्निमित्र
जीवनसंगीदेवमला
संतानअग्निमित्र
राजवंशशुंग साम्राज्य
पितापुष्यधर्मा
धर्मवैदिक (विवादित)
जनेऊ रहित पुष्यमित्र शुंग की मूर्ति

महाभाष्य में पतंजलि और पाणिनि की अष्टाध्यायी में पुष्यमित्र शुंग के वर्ण का वर्णन नहीं किया गया है । [5] उज्जैन नगर में अत्रियों की शाखों का निकाय होने के कारण इन्हें अत्रि गौत्रीय भी माना जाता है। हालांकि इनके ब्राम्हण होने पर विवाद है क्योंकि भारत में आजतक ब्राह्मणों का कोई शुंग वंश नहीं पाया गया[6] हैं। चीन में शुंग वंश का जिक्र है[7] जो आज भी है इसलिए कुछ भारतीय विद्वान उन्हें चीन का भी मानते हैं।

शुंग साम्राज्य अपने चरम पर
100 ईशा पूर्व , यवन आक्रमण के कारण पतित होता शुंग साम्राज्य

पुष्यमित्र शुंग का कुल

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कुछ इतिहासकार पुष्यमित्र शुंग के ब्राह्मण होने का दावा करते हैं[8] किंतु अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है।

शास्त्र आधारित समीक्षा

पतंजलि ने महाभाष्य में बताया है कि - " इह पुष्यमित्रं याजयामः "[9] अर्थात् यहाँ हम पुष्यमित्र के लिये यज्ञ करते हैं। जबकी यहां पर उसके ब्राह्मण होने कोई उल्लेख नहीं है।दूसरी जगह कालिदास के मालविकाग्निमित्रम[10] [11]में कहते है विदिशा पर अग्निमित्र ने साशन किया जबकी यहां भी इनके ब्राह्मण होने का कोई जिक्र नहीं है।[12][13]

  • प्रखांड ब्राह्मण विद्वान बाणभट्ट[14] पुष्यमित्र शुंग को आर्य नहीं बताता है -

सेनानीरनार्यो मौयं वृहद्रथं पिपेष पुष्पमित्रः स्वामिनम्[15]

(हर्षचरित्रम्:षष्ठ उच्छ्वासः पृष्ठ ३४५)

हिन्दी अनुवाद- अनार्य सेनापति पुष्यमित्र ने सेना को देखने के बहाने अपने स्वामी मौर्य राजा बृहद्रथ को समाप्त कर डाला ।

  • बौद्ध ग्रंथ 'दिव्यावदान'[16] के अशोकवर्धन में वर्णन मिलता है कि पुष्यमित्र शुंग की वंशवाली की सुरवात मौर्य वंश के पांचवे सम्राट सम्पत्ति से होती है। सम्पत्ति के पुत्र बृहस्पति हुए, बृहस्पति से वृषसेन, वृषसेन से पुष्यधर्मा और पुष्यधर्मा से पुष्यमित्र और फिर आगे लिखा है कि वो पुष्यमित्र अशोक का वंशज राजा बनता है और यही मौर्यवंशी होने के कारण ही ये मौर्य सम्राट बृहद्दत्त का सेनापति था। हालांकि यही ग्रंथ आगे जानकारी देता है कि इन्होंने अपने परिवार के राजा को मार दिया राजा बनने के लिए।

संपदिनो बृहस्पति पुत्रो बृहस्पतेऽर्वृषसेनो वृषसेनस्य पुष्यधर्मा पुष्यधर्मणः पुष्यमित्रः ... देवस्य च वंशाद् अशोको नाम्ना राजा बभूवेति[17][18]

हिन्दी अनुवाद- सम्पादि (सम्पत्ति) के पुत्र बृहस्पति हुवे, बृहस्पति से वृषसेन हुवे, वृषसेन से पुष्यधर्मा और पुष्यधर्मा से पुष्यमित्र हुवे। यह देव स्वरूप पुरुष देवानाम्प्रिय अशोक के वंशज राजा बनते हैं ।

शुंग अभिलेख

  • अयोध्या(अवध)से प्राप्त धन देव के अभिलेख से है जिसमें लिखते है कि -

१-कोसलाधिपेन द्विरश्वमेधयाजिनः सेनापते:पुष्यमित्रस्य षष्ठेन कौशिकीपुत्रेण धन .....

२-धर्मराज्ञा पितु फल्गुदेवस्य केतनं करितं(तम)।।[19][20][21]

हिन्दी अनुवाद- कौशल के राजा अश्वमेध सेनापति पुष्यमित्र के छ्ठी पीढ़ी में उत्पन्न कौशिकीपुत्र धन देश ने अपने पिता फल्गुदेव के केतन का निर्माण करवाया।

  • कुछ अन्य पुरातात्विक अभिलेखों के आधार पर जिसमें मध्य प्रदेश के भरहूत स्तूप से प्राप्त शुंग नरेशों के अभिलेख भी है [22]-

१-सुगनं रजे रज्जो गागीपुतस विसदेवस २-पौतेण गोतिपुतस आगरजुस पुतेण ३-वाछिपुतेन धनभूतिन करितं तोरनां ४-सिला कं मं तो च उपणं

हिन्दी अनुवाद-शुंगो के राज में गार्गीपुत्र राजा विश्वदेव के पौत्र गोप्तिपुत्र आगरजु के पुत्र वात्सिपुत्र धनभूति दर्शाया भरहूत स्तूप के तोरणद्वार का निर्माण कराया गया।

  • अभिलेख संख्या-३२६[23]

१-वसुमिताय भि-

२-छुनिय दानं

३-उजेनिकय

हिन्दी अनुवाद -यह उज्जैन के एक बौद्ध भिक्षु वसुमित्र को समर्पित है|

  • शिनकोट (बजौर) प्रस्त अस्थि मंजूषा अभिलेख

विषय : यवन राजा मिनेन्द्र के अधीन शुंग सामन्त वियकमित्र के वंशज विजयमित्र द्वारा बुद्ध के अस्थि अवशेष की प्रतिष्ठा :[24][page needed]

१.. मिनेन्द्र | महरजस कटियस दिवस ..... प्र[ण ] (स) मे( द ).... २..[प्रति] [थवि]त ३ प्रण समे[द] [शरिर ] [ भगव] [ तो ] शक मनिस ४ वियकमित्र अप्रचरजस ५ विजय [ मित्रेण !...पते प्रदिथविदे ६. इमे शरिर पलुग भुद्रओ न सकरे अत्रित स शरिअत्रि कलदरेन शो न पिंडोयकेयि पित्रि ग्रिणयत्रि ७ तस ये पत्रे अपोमुअ वषये पंचमये वेश्रखस मसस दिवस पंचविश्रये इयो प्रत्रियवित्रे विजयमित्रेन अप्रचरेजन भग्रवतु शकिमुणिस समस[ ] बुधस शरिर ८ विश्पिलेन अणकतेन लिखित्रे

हिन्दी अनुवाद - शासनकाल में मिनेन्द्र महाराज के कार्तिक मास के 14वें दिन शरीर अवशेष प्रतिष्ठापित ..भगवान् शाक्यमुनि का यह प्राण समेत अवशेष ..वीर्यकमित्र के अधीन सामन्त राजा विजयमित्र द्वारा पात्र प्रतिष्ठापित हुआ यह शरीर जीर्णभूत सत्कारों से आवृत नहीं किया गया। वह दीर्घकाल से शीर्ण हुआ, कोई श्रद्धालु पितरों को पिण्डोदक नहीं दिया। उसका यह पात्र पञ्चमवर्ष में वैशाख मास के पच्चीसवें दिन यहाँ प्रतिष्ठापित किया गया अधीन सामन्त राजा विजयमित्र द्वारा- सम्यक सम्बुद्ध भगवान् शाक्य मुनि का शरीर ।

उत्पत्ति

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दिव्यावदान के अनुसार नरेशों की सूची निम्नलिखित है [25]:

1. कुणाल

2. सम्प्रति (कुणाल का पुत्र)

3. बृहस्पति (संपदि का पुत्र)

4. वृषसेन (बृहस्पति का पुत्र)

5. पुष्यधर्मन् (वृषसेन का पुत्र)

6. पुष्यमित्र (पुष्यधर्मन् का पुत्र)

पुष्यमित्र का शासन प्रबन्ध

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साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी।[26] पुष्यमित्र प्राचीन मौर्य साम्राज्य के मध्यवर्ती भाग को सुरक्षित रख सकने में सफल रहा। पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार तक तथा पश्‍चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक विस्तृत था। दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालन्धर और स्यालकोट पर भी उसका अधिकार था। साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजकुमार या राजकुल के लोगो को राज्यपाल नियुक्‍त करने की परम्परा चलती रही।[27] पुष्यमित्र ने अपने पुत्रों को साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सह-शासक नियुक्‍त कर रखा था।[28] उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का राज्यपाल था। राजकुमार जी सेना के संचालक भी थे। इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी।

इस काल तक आते-आते मौर्यकालीन केन्द्रीय नियन्त्रण में शिथिलता आ गयी थी तथा सामंतीकरण की प्रवृत्ति सक्रिय होने लगी थी। पुष्यमित्र सुंग को मिनांडर ने पराजित किया था |[29]

विवाह और बच्चे

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पुष्यमित्र शुंग ने राजकुमारी देवमला से विवाह किया था। उनको अग्निमित्र नामक का पुत्र रानी देवमला के कोख से जन्मा हुआ।[30]

  1. "शुंग.वंश Study Material". uppsctarget.com. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  2. "शुंग वंश का इतिहास, शासक और महत्वपूर्ण तथ्य". SamanyaGyan (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  3. Admin. "पुष्यमित्र ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी) | Pushyamitra Shung Important GK Fact in Hindi". GK in Hindi | MP GK | GK Quiz| MPPSC | CTET | Online Gk | Hindi Grammar. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  4. "पुष्यमित्र शुंग की उपलब्धियां, शासनकाल, पुष्यमित्र की विजयें". www.nayadost.in. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  5. "पतंजलि (महाभाष्यकार) - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर". bharatdiscovery.org. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  6. "अध्याय - 15 ब्राह्मण राज्य (शुंग, कण्व और सातवाहन)". भारत का इतिहास – भारत का इतिहास – विश्व सभ्यता का गौरव! (अंग्रेज़ी में). 2020-05-12. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  7. "Sung Dynasty | Encyclopedia.com". www.encyclopedia.com. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  8. "पुष्यमित्र शुंग के जीवन चरित का वर्णन कीजिए - www.historyworld.in" (अंग्रेज़ी में). 2023-04-16. मूल से 26 जुलाई 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
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  10. "Indian Administrative Service - IAS Exam". Prepp (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  11. त्यागी, भुवेंद्र (2023-02-12). "मालविकाग्निमित्रम् कालिदास: मालविका पर फिदा हुए अग्निमित्र, फिर आया भूचाल". Navbharat Gold. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  12. "Pushyamitra shunga".
  13. "मालविकाग्निमित्र (कालिदास) हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Maalvikagnimitra (Kalidas) Hindi Book PDF". मूल से 26 जुलाई 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  14. "बाणभट्ट की रचनाएँ|बाणभट्ट का कृतित्व |हर्षचरित उच्छवास| Banbhatt Ki Rachnayen". अभिगमन तिथि 2023-07-26.
  15. Pant, Mohandev. Harshacaritam (5-8 Ucchwas) Bhag 2 (संस्कृत में). Motilal Banarsidass Publishe. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-2616-8.
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  19. Rao, Rajwant Rao Pradeep Kumar (2009). Prācīna bhāratīya mudrāyeṃ. Motilal Banarsidass Publishe. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-2373-0.
  20. Singh, Mahavir (2003). India and Tajikistan: Revitalising a Traditional Relationship. Maulana Abul Kalam Azad Institute of Asian Studies, Kolkata. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7975-064-3.
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  22. Digital Library Of India (1970). Boudh Dharam Ke Vikas Ka Itihas (1976) Ac 5471.
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बाहरी कड़ियाँ

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