अग्निमित्र (149-141 ईपू) शुंग वंश के द्वितीय सम्राट थे जो १४९ ईसापूर्व सिंहासन पर बैठे। मालविकाग्निमित्रम् में कालिदास ने इसको अपने नाटक का पात्र बनाया है, जिससे प्रतीत होता है कि कालिदास का काल इसके ही काल के समीप रहा होगा।[1]

अग्निमित्र
राजवंश
भरहुत स्तूप से प्राप्त एक प्रतिमा
शासनावधि149-101 ईसा पूर्व
पूर्ववर्तीपुष्यमित्र शुंग
उत्तरवर्तीवसुज्येष्ठ
संतान
पितापुष्यमित्र शुंग
मातादेवमला

अग्निमित्र के विषय में जो कुछ ऐतिहासिक तथ्य सामने आये हैं, उनका आधार पुराण तथा कालिदास की प्रसिद्ध रचना ‘मालविकाग्निमित्र’ और उत्तरी पंचाल (रुहेलखंड) तथा उत्तर कौशल आदि से प्राप्त मुद्राएँ हैं। इनसे प्रतीत होता है कि कालिदास का काल अग्निमित्र के ही काल के समीप रहा होगा। ‘मालविकाग्निमित्र’ से पता चलता है कि, विदर्भ की राजकुमारी ‘मालविका’ से अग्निमित्र ने विवाह किया था। यह उसकी तीसरी पत्नी थी। उसकी पहली दो पत्नियाँ ‘धारिणी’ और ‘इरावती’ थीं। इस नाटक से यवन शासकों के साथ एक युद्ध का भी पता चलता है, जिसका नायकत्व अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने किया था।

शुंग साम्राज्य अपने चरम पर
100 ईशा पूर्व , यवन आक्रमण के कारण पतित होता शुंग साम्राज्य

पुराणों में अग्निमित्र का राज्यकाल आठ वर्ष दिया हुआ है। वह साहित्यप्रेमी एवं कलाविलासी था। अग्निमित्र ने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया था और इसमें सन्देह नहीं कि उसने अपने समय में अधिक से अधिक ललित कलाओं को प्रश्रय दिया। जिन मुद्राओं में अग्निमित्र का उल्लेख हुआ है, वे प्रारम्भ में केवल उत्तरी पंचाल में पाई गई थीं। इससे रैप्सन और कनिंघम आदि विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला था कि, वे मुद्राएँ शुंग कालीन किसी सामन्त नरेश की होंगी, परन्तु उत्तर कौशल में भी पर्याप्त मात्रा में इन मुद्राओं की प्राप्ति ने यह सिद्ध कर दिया है कि, ये मुद्राएँ वस्तुतः अग्निमित्र की ही हैं।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. राधेश्याम चौरसिया. History of Ancient India: Earliest Times to 1000 A. D [प्राचीन भारत का इतिहास: प्राचीन काल से १००० ई॰ तक] (अंग्रेज़ी में). अटलांटिक पब्लिशर्स. पृ॰ १३१. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788126900275.

इन्हें भी देखें संपादित करें