"उधम सिंह": अवतरणों में अंतर

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{{ज्ञानसन्दूक व्यक्ति
|name= उधम सिंह
|name= शहीद उधमसिंह काम्बोज
|alias = राम मोहम्मद सिंह आजाद
|birth_date = 26 दिसम्बर 1899
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|movement=[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]
|organization=[[गदर पार्टी]], [[हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन]], [[भारतीय श्रमिक संघ]]
|religion=[[काम्बोज सिख]]
}}
[[चित्र:Udham Singh kamboj taken away from Taxon Hall.jpg|अंगूठाकार]]
'''सरदार उधमसिंहउधम काम्बोजसिंह''' (26 दिसम्बर 1899 – 31 जुलाई 1940) [[भारत]] के स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। उन्होंने [[जालियाँवाला बाग हत्याकांड|जलियांवाला बाग कांड]] का बदला लेने के लिए लंदन जाकर हत्याकांड के मुख्य दोषीसमय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे [[माइकल ओड्वायरओ' ड्वायर]] को गोलीयो[[लन्दन]] सेमें भुनकरजाकर बदलागोली लिया था।मारी।<ref name=f1>{{cite news|url=http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_5665684.html|title=जागरण}}{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }}</ref> कई इतिहासकारों का मानना है कि [[जलियाँवाला बागयह हत्याकाण्ड]] ओड्वायरओ' ड्वायर व अन्य ब्रिटिश अधिकारियों का एक सुनियोजित षड्यंत्र था, जो भारतपंजाब पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए पंजाबियों को डराने के उद्देश्य से किया गया था। यही नहीं, ओ' ड्वायर बाद में भी जनरल डायर के समर्थन से पीछे नहीं हटा था।<ref>Alfred Draper, ''The Massacre that Ended the Raj'', London, 1981.</ref><ref>''A Pre-Meditated Plan of Jallianwala Bagh Massacre and Oath of Revenge'', Udham Singh alias Ram Mohammad Singh Azaad, 2002&mdash; ''A Premeditated Plan'', Punjab University, Chandigarh, 1969, p. 24, Raja Ram.</ref><ref>''A Pre-Meditated Plan'', ibid. pp. 133, 144, 294; Punjab University Chandigarh, 1969, p. 24</ref>
 
मिलते जुलते नाम के कारण यह एक आम धारणा है कि उधम सिंह ने [[जालियाँवाला बाग हत्याकांड]] के उत्तरदायी जनरल डायर (पूरा नाम - [[रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर|रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर]], [[:en:Reginald Dyer|Reginald Edward Harry Dyer]]) को मारा था, लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि प्रशासक ओ' ड्वायर जहां उधम सिंह की गोली से मरा (सन् १९४०), वहीं गोलीबारी को अंजाम देने वाला जनरल डायर १९२७ में पक्षाघात तथा कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर मरा।
 
उत्तर भारतीय राज्य [[उत्तराखण्ड]] के एक ज़िले का नाम भी इनके नाम पर [[उधम सिंह नगर]] रखा गया है।
 
== जीवन वृत्त ==
शहीद उधम सिंह काम्बोज का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के [[संगरूर]] जिले के [[सुनाम]] गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह काम्बोज की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। उधमसिंहइतिहासकार काम्बोजमालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।{{cn|date=अप्रैल 2020}}
 
अनाथालय में उधमसिंह काम्बोज की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।
 
== माइकल ओ'ड्वायर की गोली मारकर हत्या ==
शहीद उधमसिंह काम्बोज १३ अप्रैल १९१९ को घटित [[जालियाँवाला बाग नरसंहार]] के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से [[जलियाँवाला बाग]] में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह काम्बोज तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधमसिंह काम्बोज उधम सिंह ने विभिन्न नामों से [[अफ्रीका]], [[नैरोबी]], [[ब्राजील]] और [[अमेरिका]] की यात्रा की। सन् 1934 में उधमसिंह काम्बोजउधम सिंह लंदन पहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।
 
उधमसिंहउधम काम्बोजसिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधमसिंह काम्बोजउधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुँच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।
 
बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधमसिंहउधम काम्बोजसिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में [[फांसी]] दे दी गई।
 
== सन्दर्भ ==