"महात्मा गांधी": अवतरणों में अंतर

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'''मोहनदास करमचन्द गांधी''' (जन्म:२ अक्टूबर १८६९; निधन:३० जनवरी १९४८) जिन्हें '''[https://www.thenibandh.com/2020/02/mahatma-gandhi-essay-in-hindi-mahatma.html महात्मा गांधी]''' के नाम से भी जाना जाता है, [[भारत]] एवं [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम|भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन]] के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे ''[[सत्याग्रह]]'' (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से [[अत्याचार]] के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण [[अहिंसा]] के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम|आजादी]] दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता '''महात्मा गांधी''' के नाम से जानती है। [[संस्कृत भाषा]] में महात्मा अथवा महान आत्मा एक [[सम्मान|सम्मान सूचक]] शब्द है। गांधी को [[महात्मा]] के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 मे महात्मा की उपाधि दी थी, तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने महात्मा की उपाधि प्रदान की थी 12अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे | <ref name="क्रान्त">{{cite book |last1=क्रान्त |first1= |authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास |url=http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |format= |accessdate= |edition=1 |series= |volume=1 |date= |year=2006 |month= |origyear= |publisher=प्रवीण प्रकाशन |location=नई दिल्ली |language=hi |isbn=81-7783-119-4 |oclc= |doi= |id= |page=107 |pages= |chapter= |chapterurl= |quote=एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915मे गाँधी को महात्मा की उपाधि दी थी |33=तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को सर्वप्रथम महात्मा की उपाधि दी |34=1915 के प्रारम्भ में जब पहला विश्वयुद्ध चल रहा था गान्धी अपनी पूरी भक्त मण्डली के साथ भारत में अवतरित हुए। उन्होंने आते ही यह घोषणा की कि वह राजनीति में भाग नहीं लेंगे, केवल समाज-सेवा का कार्य करेंगे। सौराष्ट्र की गोंडाल नामक रियासत में गान्धी के सम्मान में एक सार्वजनिक सभा की गयी जिसमें गोंडाल के दीवान रणछोड़दास पटवारी की अध्यक्षता में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने उन्हें 'महात्मा' की उपाधि से विभूषित किया। |ref= |bibcode= |laysummary= |laydate= |separator= |postscript= |lastauthoramp= |archive-url=https://web.archive.org/web/20131014175453/http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |archive-date=14 अक्तूबर 2013 |url-status=live }}</ref>। उन्हें ''बापू'' ([[गुजराती भाषा]] में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। एक मत के अनुसार गांधीजी को बापू सम्बोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति उनके साबरमती आश्रम के शिष्य थे [[सुभाष चन्द्र बोस]] ने ६ जुलाई १९४४ को [[रंगून]] रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें [[राष्ट्रपिता]] कहकर सम्बोधित करते हुए [[आज़ाद हिन्द फ़ौज|आज़ाद हिन्द फौज़]] के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं।<ref>{{cite book |last1=क्रान्त |first1=मदनलाल वर्मा |authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास |url=http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |format= |accessdate= |edition=1 |series= |volume=2 |date= |year=2006 |month= |origyear= |publisher=प्रवीण प्रकाशन |location=नई दिल्ली |language=hi |isbn=81-7783-120-8 |oclc= |doi= |id= |page=512 |pages= |chapter= |chapterurl= |quote=मैं जानता हूँ कि ब्रिटिश सरकार भारत की स्वाधीनता की माँग कभी स्वीकार नहीं करेगी। मैं इस बात का कायल हो चुका हूँ कि यदि हमें आज़ादी चाहिये तो हमें खून के दरिया से गुजरने को तैयार रहना चाहिये। अगर मुझे उम्मीद होती कि आज़ादी पाने का एक और सुनहरा मौका अपनी जिन्दगी में हमें मिलेगा तो मैं शायद घर छोड़ता ही नहीं। मैंने जो कुछ किया है अपने देश के लिये किया है। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने और भारत की स्वाधीनता के लक्ष्य के निकट पहुँचने के लिये किया है। भारत की स्वाधीनता की आखिरी लड़ाई शुरू हो चुकी है। आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिक भारत की भूमि पर सफलतापूर्वक लड़ रहे हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की स्वाधीनता के इस पावन युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभ कामनायें चाहते हैं। |ref= |bibcode= |laysummary= |laydate= |separator= |postscript= |lastauthoramp= |archive-url=https://web.archive.org/web/20131014175453/http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |archive-date=14 अक्तूबर 2013 |url-status=live }}</ref> प्रति वर्ष [[२ अक्टूबर]] को उनका जन्म दिन भारत में [[गांधी जयंती]] के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
 
'''Read Also :-''' '''[https://www.thenibandh.com/2020/02/mahatma-gandhi-essay-in-hindi-mahatma.html महात्मा गांधी पर 100 शब्दों में निबंध]'''
 
सबसे पहले गान्धी जी ने प्रवासी वकील के रूप में [[दक्षिण अफ़्रीका|दक्षिण अफ्रीका]] में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई।<ref>{{Cite web|url=https://theprint.in/opinion/ramachandra-guha-is-wrong-a-middle-aged-gandhi-was-racist-and-no-mahatma/168222/|title=Ramachandra Guha is wrong. Gandhi went from a racist young man to a racist middle-aged man|access-date=24 दिसंबर 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20181225031058/https://theprint.in/opinion/ramachandra-guha-is-wrong-a-middle-aged-gandhi-was-racist-and-no-mahatma/168222/|archive-date=25 दिसंबर 2018|url-status=live}}</ref> उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये [[दलित|अस्पृश्‍यता]] के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला [[स्वराज]] की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में [[नमक सत्याग्रह]] और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो [[भारत छोड़ो आन्दोलन]] से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा।
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=== द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आन्दोलन ===
[[द्वितीय विश्वयुद्ध|द्वितीय विश्व युद्ध]] १९३९ में जब छिड़ने [[नाजी जर्मनी]] आक्रमण [[पोलैंड]].आरम्भ में गांधी जी ने अंग्रेजों के प्रयासों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने का पक्ष लिया किंतु दूसरे कांग्रेस के नेताओं ने युद्ध में जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना इसमें एकतरफा शामिल किए जाने का विरोध किया। कांग्रेस के सभी चयनित सदस्यों ने सामूहिक तौर<ref>आर०गांधी, ''पटेल : एक जीवन'', पीपी२८३-८६</ref> पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लंबी चर्चा के बाद, गांधी ने घोषणा की कि जब स्वयं भारत को आजादी से इंकार किया गया हो तब लोकतांत्रिक आजादी के लिए बाहर से लड़ने पर भारत किसी भी युद्ध के लिए पार्टी नहीं बनेगी। जैसे जैसे युद्ध बढता गया गांधी जी ने आजादी के लिए अपनी मांग को अंग्रेजों को ''[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]'' नामक विधेयक देकर तीव्र कर दिया। यह गांधी तथा कांग्रेस पार्टी का सर्वाधिक स्पष्ट विद्रोह था जो भारत देश<ref>आर० गांधी, ''पटेल : एक जीवन'', पी.३०९</ref> से अंग्रेजों को खदेड़ने पर लक्षित था।
 
'''इन्हे भी पढ़े :-''' [https://www.thenibandh.com/2020/06/Causes-and-Consequences-of-Second-World-war.html द्वितीय विश्व युद्ध का कारण और परिणाम]
 
गांधी जी के दूसरे नम्बर पर बैठे जवाहरलाल नेहरू की पार्टी के कुछ सदस्यों तथा कुछ अन्य राजनैतिक भारतीय दलों ने आलोचना की जो अंग्रेजों के पक्ष तथा विपक्ष दोनों में ही विश्‍वास रखते थे। कुछ का मानना था कि अपने जीवन काल में अथवा मौत के संघर्ष में अंग्रेजों का विरोध करना एक नश्वर कार्य है जबकि कुछ मानते थे कि गांधी जी पर्याप्त कोशिश नहीं कर रहे हैं।'' भारत छोड़ो ''इस संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई।<ref>आरगांधी, ''पटेल : एक जीवन'', पी.३१८ .</ref> पुलिस की गोलियों से हजारों की संख्‍या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों गिरफ्तार कर लिए गए। गांधी और उनके समर्थकों ने स्पष्ट कर दिया कि वह युद्ध के प्रयासों का समर्थन तब तक नहीं देंगे तब तक भारत को तत्‍काल आजादी न दे दी जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बार भी यह आन्दोलन बन्द नहीं होगा यदि हिंसा के व्यक्तिगत कृत्यों को मूर्त रूप दिया जाता है। उन्होंने कहा कि उनके चारों ओर अराजकता का आदेश असली अराजकता से भी बुरा है। उन्होंने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को [[अहिंसा]] के साथ ''करो या मरो '' (अंग्रेजी में डू ऑर डाय) के द्वारा अन्तिम स्वतन्त्रता के लिए अनुशासन बनाए रखने को कहा।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
{{Commonscat|Mohandas K. Gandhi}}
{{Wikisource|Category:मोहनदास करमचन्द गांधी}}[https://www.knowledgekidaa.com/2020/05/Mahatma-gandhi-se-sambhandhit-puche-jaane-vaale-prashan-download-pdf.html महात्मा गाँधी से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्न]{{Wikiquote|मोहनदास करमचंद गांधी}}
{{Wikiquote|मोहनदास करमचंद गांधी}}
*[https://www.gandhiheritageportal.org/hi महात्मा गांधी विरासत पोर्टल]
*[https://getinfoallabout.blogspot.com/2019/11/mahatma-gandhi.html गांधीजी के ऊपर निबंध कम तथा पर्याप्त शब्द में।]