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==परिचय==
[[पेरिस शांति सम्मेलन]] में अनेकानेक संधियों एवं समझौतों का मसौदामसविदा तैयार किया गया और उन पर हस्ताक्षर किये गये, लेकिन इन सभी संधियों में जर्मनी के साथ जो वर्साय की संधि हुई वह अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है और सभी संधि में प्रमुख है। चार महीने के परिश्रम के बाद संधि का मसविदा तैयार हुआ। 230 पृष्ठों में अंकित यह संधि 15 भागों में विभक्त थी और उसमें 440 धाराएँ थीं। 6 मई, 1919 को यह सम्मेलन के सम्मुख पेश हुई और स्वीकृत हो गयी। 30 अप्रैल को ही विदेश-मंत्री [[काउन्ट फॉन ब्रौकडौफ रान्टाजु]] के नेतृत्व में जर्मन प्रतिनिधि-मण्डल वर्साय पहुंचा। प्रतिनिधियों को ट्रयनन पैलेस होटल में ठहराया गया। मित्रराष्ट्रों के अफसर उनकी सुरक्षा की देखभाल कर रहे थे। होटल को काँटेदार तारों से घेर दिया गया था और जर्मन प्रतिनिधियों को मनाही कर दी गयी थी कि वे मित्रराष्ट्रों के किसी प्रतिनिधि या किसी पत्रकार से किसी प्रकार का सम्पर्क रखें। 7 मई को [[क्लिमेशों]] ने अन्य प्रतिनिधि-मण्डलों के समक्ष, ट्रयनन होटल में, जर्मन प्रतिनिधि मण्डल के सम्मुख संधि का मसविदा प्रस्तुत किया। इस मसविदे पर विचार-विमर्श करने के लिए उन्हें केवल दो सप्ताह का समय दिया गया।
 
जर्मनी को किसी भी तरह संधि पर हस्ताक्षर करना ही था। जर्मन राजनीतिज्ञों ने गंभीरता के साथ संधि के मसविदे पर विचार किया और 26 दिनों के बाद अपनी तरफ से साठ हजार शब्दों का एक विरोधी प्रस्ताव प्रस्तुत किया। जर्मनी ने इस बात की शिकायत की थी कि उसने जिन शर्तों पर आत्मसमर्पण किया था, प्रस्तावित संधि में उन सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। उनका कहना था कि जर्मनी की नयी सरकार पूर्ण रूप से प्रजातांत्रिक है और [[राष्ट्र संघ|राष्ट्रसंघ]] की सदस्यता के लिए इच्छुक है। निरस्त्रीकरण की शर्त केवल जर्मनी पर ही नहीं, अपितु समस्त राज्यों पर लागू की जानी चाहिए। विश्वयुद्ध के लिए एकमात्र जर्मनी को जिम्मेदार ठहराना गलत है। जर्मन प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि संधि की सभी शर्तों को मानना असंभव है। एक बड़े राष्ट्र को कुचलकर तथा उसे गुलाम बनाकर स्थायी शांति स्थापित नहीं की जा सकती।
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== वर्साय की संधि एवं द्वितीय विश्वयुद्ध/ ==
विश्व इतिहास के जिन एक संधियों और उसके प्रभावों की सर्वाधिक चर्चा हुई है, उनमें वर्साय की संधि का विशिष्ट स्थान है। उस संधि के कठोर प्रावधानों और उसके स्वरूप के संदर्भ में आलोचकों ने इसे द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण के रूप में परिभाषित किया है। उनके अनुसार वार्साय की संधि शांति की व्यवस्था न होकर असंतोष की जनक थी। संधि के ठीक 20 वर्ष 2 महीने 4 दिन पश्चात् यह संसार द्वितीय विश्वयुद्ध के चपेट में आ गया। गोलू
 
संधि होने के बाद से ही उसकी व्यवस्थाओं को जर्मनी द्वारा भंग किया जाता रहा। साथ ही संधि प्रावधानों में संशोधन भी किए जाते रहे। इन संधि प्रावधानों के उल्लंघनों एवं संशोधनों ने संसार को द्वितीय विश्व युद्ध की ओर ढकेल दिया। संधि प्रावधानों का उल्लंघन एवं संशोधन इसलिए किया गया कि यह अत्यधिक कठोर एवं अपमानजनक थी। ऐसी कठोर एवं अपमानजनक संधि की शर्तों को कोई भी स्वाभिमानी राष्ट्र एक लंबे समय तक बर्दाश्त् नहीं कर सकता था। अतः यह स्पष्ट था कि जर्मनी भविष्य में उपर्युक्त अवसर मिलते ही वर्साय संधि द्वारा थोपी गई व्यवस्था से मुक्त होने तथा अपमान के कलंक धोने का प्रयास करेगा। जर्मनी की कैथोलिक सेंटर पार्टी के एजर्बर्गर का विराम संधि के समय वक्तव्य था कि "जर्मन जाति कष्ट सहेगी परंतु मरेगी नहीं।" स्वभाविक रूप से जर्मनी ने इस अपमानजनक शर्तों को धोने का सफल प्रयास किया। परिणामस्वरूप कुछ ही वर्षों में यूरोप का राजनीतिक वातावरण अत्यंत अशांत हो गया और विश्व को प्रथम महायुद्ध से भी अधिक भयंकर और प्रलयंकारी युद्ध देखना पड़ा। फ्रांस के मार्शल फॉच के अनुसार भी "यह संधि शांति नहीं है, केवल 20 वर्षों का युद्धविराम है।" स्पष्ट है कि इसी संधि में द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज विद्यमान थे।
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[[श्रेणी:द्वितीय विश्वयुद्ध]]
[(बर्लिन कांग्रेस:1878)]