"जतरा भगत": अवतरणों में अंतर

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'''जतरा भगत''' उर्फ जतरा उरांव का जन्म सितंबर 1888 में [[झारखण्ड|झारखंड]] के [[गुमला]] जिला के बिशनुपुर थाना के चिंगरी नवाटोली गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम कोदल उरांव और माँ का नाम लिबरी था। 1912-14 में उन्होंने ब्रिटिश राज और जमींदारों के खिलाफ अहिंसक असहयोग का आंदोलन छेड़ा और लगान, सरकारी टैक्स आदि भरने तथा ‘कुली’ के रूप में मजदूरी करने से मना कर दिया। यह 1900 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए ‘उलगुलान’ से प्रेरित औपनिवेशिक और सामंत विरोधी धार्मिक सुधारवादी आंदोलन था। आदिवासी लेखकों का दावा है कि अहिंसक सत्याग्रह की व्यवहारिक समझ गांधी ने झारखंड के [https://www.jharkhandjobportal.com/2020/07/tana-bhagat-andolan.html टाना भगत आंदोलन] से ही ली थी। 1940 के दशक में टाना भगत आंदोलनकारियों का बड़ा हिस्सा गांधी के सत्याग्रह से जुड़कर राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुआ। आज भी टाना भगत आदिवासियों की दिनचर्या राष्ट्रीय ध्वज के नमन<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.com/hindi/regionalnews/story/2006/08/060814_independence_tana.shtml |title=BBCHindi.com |publisher=Bbc.com |date= |accessdate=2016-06-30 |archive-url=https://web.archive.org/web/20160825214817/http://www.bbc.com/hindi/regionalnews/story/2006/08/060814_independence_tana.shtml |archive-date=25 अगस्त 2016 |url-status=live }}</ref> से होती है।
 
== [https://www.jharkhandjobportal.com/2020/07/tana-bhagat-andolan.html टाना भगत] आंदोलन के कारण ==
टाना भगत अंग्रेजों के बेरहम और दयनीय रवैये से असंतुष्ट थीं, इसके अलावा पुलिस और ज़मींदार भी उनके प्रति दमनकारी थे। इन स्थितियों ने उरांवों के बीच एक विद्रोही रवैया पैदा किया।
 
आंदोलन के अनुयायी जतरा भगत और सिबू भगत '''धार्मिक रूप''' से प्रभावित थे। जतरा भगत ने कृषि संबंधी मुद्दों को सामने लाया और अंग्रेजी हुकूमत को किराया न देने का अभियान चलाया।
 
जतरा भगत की मृत्यु के बाद देवमनियां भगत, सिबू भगत, बलराम भगत और भीखू भगत ने आंदोलन का कमान संभाला। इन्होने आंदोलन को विकसित करने के लिए इसे मसीहाई स्वरुप प्रदान किया।
 
== टाना भगत आंदोलन का प्रसार ==
टाना भगतों ने मसीहा के रूप में '''"जर्मन कैसर बाबा"''' को स्वीकार किया क्यूंकि ये लोग प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की अंग्रेजों की विरुद्ध सफलता से प्रेरित थे। टाना भगत आंदोलन शुरू में एक धार्मिक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ लेकिन बाद में एक '''राजनीतिक आंदोलन''' में बदल गया। '''"इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य छोटा नागपुर क्षेत्रों में स्वायत्तता स्थापित करना था।"'''
 
== टाना भगत और गाँधी ==
वर्ष 1919 में सिबू भगत और इनके साथी को गिरफ्तार कर लिया गया और इस कारण यह आंदोलन कमजोर पड़ने लगा। आंदोलन का कमान '''जीतू भगत''' और '''तुरिया भगत''' ने संभाला पर काम नहीं बना।
 
आंदोलन में जान फुकने के लिए टाना भगतों ने इस आंदोलन को '''''भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन''''' के साथ जोड़ दिया। टाना भगत यह मानने लगे की '''"''गाँधी जतरा भगत का पुनर्जन्म'' "''' है और 1921 की असहयोग आंदोलन में '''सिद्धू भगत''' अपने साथियों के साथ कूद पड़े। <blockquote>टाना भगतों से प्रभवित हो कर गाँधी ने कहा था '''" टाना भगत उनके सर्वाधिक प्रिय अनुयायी हैं।"''' </blockquote>टाना भगतों ने क्रमशः 1922 और 1923 में कांग्रेस के '''गया अधिवेशन''' और '''नागपुर अधिवेशन''' में भी भाग लिया। 1940 के '''रामगढ अधिवेशन''' में टाना भगतों ने गाँधी को '''400 रुपये''' की एक थैली भेट की थी।
 
टाना भगतों ने क्रांतिकारी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी। वे  सत्याग्रह आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी सक्रिय थे।
 
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान, सैकड़ों टाना भगतों को ब्रिटिश सरकार द्वारा कैद कर प्रताड़ित किया गया था। टाना भगत आंदोलन को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का "'''शुद्ध आदिवासी रूप'''" भी कहा गया था।
 
==सन्दर्भ==
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[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]]
 
 
[https://www.jharkhandjobportal.com/2020/07/tana-bhagat-andolan.html टाना भगत आंदोलन]
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