नज़्म का प्रारूप
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क्यूं मुझको बोलते हो बहुत ही ख़राब हूँ ।
मेरा बयान सुन लो कि, मैं ही शराब हूँ ।।
 
रुसवाइयां हो मेरी अग़र लड़खड़ाओ तुम ।
औऱ मेरे नाम से ही शराबी कहलाओ तुम।
इंसाफ है क्या कोई ज़रा ये बताओ तुम ।
तेरी हर एक ख़ता का क्या मैं जवाब हूँ ।
मेरा बयान सुन लो कि मैं ही शराब हूँ ।।
 
दुनिया गवाह है कि ,ख़तावार नही हूँ।
बोतल में कैद हूँ पर गुनहगार नहीं हूँ ।।
मैं तो किसी के लब का तलबगार नहीं हूँ
शीशे के अंदर बन्द मैं चढ़ता शबाब हूँ ।
मेरा बयान सुन लो कि मैं ही शराब हूँ ।।
 
जो चाहे आज़माए मैं होती खफ़ा नहीं ।
मेरा कमाल क्या है ये किसको पता नहीं ।
ख़ून-ऐ-ज़िगर जलाए तो मेरी ख़ता नहीं ।।
सब खूब जानते है बहुत कड़वा आब हूँ ।
मेरा बयान सुन लो कि मैं ही शराब हूँ ।।
 
मुझकों गले लगाने का तुझ पर सुरूर था ।
आता था मेरे पास तू कब मुझसे दूर था ।
जो मौत तक तू आया क्या मेरा क़ुसूर था
ख़ुद तेरा ही किया हुआ मैं इंतिख़ाब हूँ ।
मेरा बयान सुन लो कि मैं ही शराब हूँ ।।
 
कोई ख़ता नहीं थी मग़र रात दिन जली ।
होती रही बदनाम मैं यूँ ही गली-गली ।
ग़ालिब के लब लगीं तो,अशआर में ढली।।
सब ने जिसे पढ़ा है मैं वो -क़िताब हूँ ।।
मेरा बयान सुन लो कि मैं ही शराब हूँ ।।
 
जिसके क़रीब जाने से पहले ही रुकी हूँ ।
उस हौसले के आगे हमेशा मैं झुकी हूँ।
"मेंहदी"के लब को आजतक मैं छू न सकी हूँ।
ग़ैरत भरी है उसमें और मैं बे-हिज़ाब हूँ ।
मेरा बयान सुन लो कि मैं ही शराब हूँ ।।
 
इक़बाल मेंहदी काज़मी
 
(इक़बाल मेंहदी काज़मी की नज़्म )
 
बदन की खुश्बू मेरे यार की वो लाई है।
लबो को छू कर हवा मेरे पास आई है।।
 
मिला ये आज पैग़ाम ऐ यार है मुझकों ।
वो ये कहती है बहुत तुमसे प्यार है मुझकों ।।
तेरे बिना न,ज़रा भी क़रार है मुझकों ।
ये अपनी दास्तां ख़ुद उसने ही सुनाई है ।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।
 
तेरे बिना तो मेरे दिन नहीं गुज़रते हैं ।
ये गेसु अब न सजते हैं न संवरते हैं ।।
तेरी याद में तिल-तिल हम यूँ ही मरते हैं ।।
तेरे बिना नहीं जीने की कसम खाई है।।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।
 
हवा के साथ ग़र मैं भी उड़ के आ जाती ।
मेरे महबूब तेरी बाहों में समा जाती ।।
तमाम उम्र कभी लौट कर फ़िर ना जाती
मग़र लिखी अभी किस्मत में ही जुदाई है
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।
 
तेरी यादों के साये मुझकों नज़र आते हैं।
ये सितारे भी मुझें अब नही लुभाते हैं ।
मुझें तन्हाई में अंधेरे बहुत डराते हैं ।
हर-एक रात इस तरह ही बिताई है ।।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।
 
अब दुनिया से नहीं कोई सरोकार मुझे।
इस मुहब्बत ने भी कर दिया लाचार मुझे।
बस मरने से है इसलिए इन्कार मुझे ।
तेरी खुशबू मेरी साँसों में जो समाई है ।।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।
 
पलट कर जाना तो पैग़ाम ये हवा देना ।
उसी के साथ ज़माने को भी बता देना ।
हर एक को ही ये एहसास भी करा देना ।
तेरी चाहत कभी तेरी नहीं- पराई है ।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है ।।
 
उससे"मेंहदी"ने कहां,यहीं होता है सिला।
जब मुहब्बत है तो जुदाई का, कैसा ग़िला ।।
मजनूं लैला को न शीरी को फरहाद मिला ।
सब की किश्ती इस इश्क़ ने डुबाई है ।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है ।।
 
इक़बाल मेंहदी काज़मी
(मेंहदी-बलरामपुरी)
533 गोविंदबाग निकट पानी टंकी
बलरामपुर
"https://hi.wikipedia.org/wiki/नज़्म" से प्राप्त