दुनिया में कब किसी से संभलती है जिंदगी मुट्ठी की रेत जैसी फ़िसलती है जिंदगी ।।

लगता है बढ़ रही है, है ऐसा नहीं मग़र हर लम्हा ईक शमाँ सी पिघलती है जिंदगी।।

रोटी, मकान, कपड़ा और कुछ आन-बान हो इस भाग-दौड़ में ही निकलती है जिंदगी।।

रहती है हर घड़ी, ये मोहताज़ वक़्त की अपने हिसाब से कहां चलती है जिंदगी।।

चाहे नसीब इसको सिकंदर ही बना दे कितना ही ज़र मिले पर मचलती है जिंदगी।।

छू आए चाहे जा-कर ये ख़ुद आसमान को सोती है क़ब्र में या फ़िर जलती है जिंदगी।।

इक़बाल मेंहदी काज़मी


Iqbal mehdi kazmi

-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 16:06, 30 अप्रैल 2020 (UTC)उत्तर दें

मई 2020 संपादित करें

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August 2020 संपादित करें

  यह आपकी अंतिम चेतावनी है; अगली बार आपके द्वारा विकिपीडिया पर बर्बरता करने पर, आपको बिना किसी सूचना के संपादन करने से अवरोधित किया जा सकता है QueerEcofeminist "cite! even if you fight"!!! [they/them/their] 10:36, 16 अगस्त 2020 (UTC)उत्तर दें