"विकिपीडिया:चौपाल": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: Manual revert
पंक्ति 770:
 
{{ध्यान दें|नेहरू स्टेडियम (इंदौर)}} [[सदस्य:Navinsingh133|Navinsingh133]] ([[सदस्य वार्ता:Navinsingh133|वार्ता]]) 20:10, 27 अगस्त 2020 (UTC)
 
{{infobox caste
| caste_name = आँजणा
| caste_name_in_local = चौधरी, कलबी, पटेल
| image =[[File:Jay arbuda.jpg|thumb|આંજણા ની કુળદેવી]]
| caption =
| identity = आँजणा कणबी/कलबी, चौधरी, पटेल, देसाई, वगैरह
| kula_devi = श्री माँ अर्बुदा, [[माउन्ट आबु]]
| religion = हिंदू
| country = [[भारत]]
| populated_states = [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[मध्यप्रदेश]], [[उत्तरप्रदेश]], [[बिहार]] और [[बंगाल]]
| profession = कृषि और पशुपालन
}}
 
 
==इतिहास==
 
सहस्त्रार्जुन के पुत्र जमदग्नि ऋषि के आश्रम में गए, ऋषि को टुकड़ों में काटकर उनकी हत्या कर दी। तभी परशुराम यात्रा कर के वापस आश्रम में आये तो माता रेणुका ने रोने लगी और सभी जानकारी बताई। तब परशुराम का रोम-रोम क्रोधित हो गया और उनके हाथ में फर्शी (कुल्हाड़ी) लिया और क्षत्रियों को हरा दिया और ब्राह्मणों को दान में उनके राज्य दे दिए। इस तरह, राम से लेकर कृष्ण तक 21 (इक्कीस) बार पृथ्वी को नक्षत्रिय किया गया।
 
जब मां अर्बुदा (कात्यायनी) की शरण में सहस्त्र अर्जुन के छह पुत्र गए तो परशुराम उनकी तलाश में आबू आए, तो मां अर्बुदा ने कहा, “इन्होंने मेरे समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है, इसलिए उन्हें जीवन दान दें। अब से ये लोग क्षत्रियत्व का त्याग कर देंगे और कृषि काम करेंगे। "मा अर्बुदा ने उनको बचाया तो उन्होंने मैया के पैर पकड़ लिए और आशीर्वाद मांगा। और कहा की," अब से, आप हमारे कुल देवी हैं, तो हमें मार्गदर्शन दें " जीवित रहने वाले छह (6) बेटों में से, दो बेटे आबू पर रहे और खेती शुरू की। और चार बेटे उत्तर प्रदेश चले गए और खेती शुरू कर दी। जैसे-जैसे उनकी आबादी बढ़ती गई, वे उत्तर प्रदेश और हरियाणा में फैल गए।
 
टोडरमल ने राजस्थान के इतिहास के बारे में लिखा तब हो सकता है जाट किसान थे, लेकिन वे चंद्रवंश के क्षत्रिय हैं। जो कश्यप गोत्र के हैं। जाट आबू पर खेती करने के लगे और उन्होंने मा अर्बुदा को कुलदेवी के मान के आत्मसमर्पण कर दिया था, इसलिए जाट आँजणा चौधरियों की कुलदेवी हैं।
 
 
ऐतिहासिक रूप से, सोलंकी राजा भीमदेव की बेटी अंजना बाई, जो कि पाटन के सिंहासन पर थीं, उन्होंने माउंट आबू में अंजान किले का निर्माण किया इसलियें वहाँ रहने वाले लोगों को अंजना कहा जाता है। सोलंकी एक चंद्रवंशी क्षत्रिय थे। अतः इस मत के अनुसार भी अंजन क्षत्रिय हैं।
 
 
बॉम्बे प्रेसीडेंसी पार्ट -12 (बार) (खानदेश) के गजेटियर में अंजना पाटीदारों के लिए निम्नलिखित लिखा है। खानदेश जिले में दो प्रकार के गुर्जर हैं, रेव और डोर। और रेव गुज्जर भीनमाल से निकल के मालवा होके खानदेश की और चले गए। गजेटियर में उनकी कई शाखाओं के नाम हैं। इसकी प्रमुख शाखाएँ हैं जैसे अंजना, आँजणा, आभय, पटलिया आदि। इन शाखाओं में से, अंजना या अंजना नाम की शाखा स्पष्ट रूप से सूचित की गई है।
 
जब विदेशियों ने 953 ईस्वीं (नौ सौ तिरपन) में भीनमाल पर आक्रमण किया तो कुछ गुर्जर भीनमाल छोड़कर अन्यत्र चले गए। इनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र शामिल थे। इस बार आँजणा पाटीदार भीनमाल से लगभग 2,000 (दो हजार) बैलगाड़ी जोड़ के भीनमाल से पलायन कर कस चंद्रावती में आकर बस गए। वहाँ से वह कच्छ के घानदार क्षेत्र में और वहाँ से गुजरात में आकर बस गए, जैसा कि भाट चारण की किताबों में और कुछ हद तक इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इन ऐतिहासिक नोटों से यह भी कहा जा सकता है कि आँजणा पाटीदार गुर्जर क्षत्रियों(यानी आर्य प्रजा) के प्रत्यक्ष वंशज हैं।
 
आँजणा पाटीदार की कुलदेवी "माँ अर्बुदा" हैं। उन्हें कात्यायनी के नाम से भी जाना जाता है। कात्यायनी नवदुर्गा का छठा अवतार है। आँजणा की पारिवारिक देवी माउंट आबू में बिराजमान है। उनके मंदिर को अध्धरदेवी के नाम से भी जाना जाता है। अर्बुदाँचल आबू को ऋग्वेद में अर्बुदा पर्वत के रूप में वर्णित किया गया है। माउंट आबुगिरी एक पवित्र भूमि है। हजारों वर्षों से यह पर्वत ऋषियों की तपस्या का स्थान रहा है।
 
गुजरात में रहने वाले सभी आँजणा पाटीदार लोगों की कुलदेवी "माँ अर्बुदा" अर्थात माँ कात्यायनी हैं। जिन्होंने परशुराम के कोप से क्षत्रियों को बचाया। भारत में अंजना मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, कच्छ और महाराष्ट्र में रहते है।
 
उन्हें "आँजणा", "आँजणा पटेल", "अंजना कणबी/ कलबी" और "चौधरी" के रूप में जाना जाता है। उनमें से कुछ खुद को 'पटेल', 'चौधरी', 'देसाई' के उपनामों से पुकारते हैं। जबकि कुछ अपने उपनामों से खुद को 'आँजणा' या अपने मौर्य, हुण, गुर्जर, मालव-मालवी, काग, जुवा, सोलंकी, भाटिया, लोह, हाडीया कहते हैं। आँजणाओ का मुख्य व्यवसाय खेती है। खेती के साथ-साथ वह पशुपालन का व्यवसाय भी करते है।
 
यूरोपीयन इतिहासकार एस.ए. रोरिंग कच्छ में रहने वाले आँजणा की पहचान राजपूतों के रूप में थी और उनके नाम 'अजाणी', 'अजानी' बताते हैं। जबकि ए.एस. अलटेकर और आर.सी. मजूमदार जैसे भारतीय इतिहासकार इन लोगों को 'अर्जुनिस' कहते हैं।
 
अर्जुनक, अर्जुनायन, आर्जुनायन, आर्जुणायन शब्दों के 'क', 'यन' प्रत्यक्षो को निकाल के और 'न' का 'ण' करने पर अर्जुणा, आर्जुणा नाम निकल आया और फिर अर्जुणा का अपभ्रंश करने पर आँजणा शब्द का जन्म हुआ। इस प्रकार मध्य एशिया का 'अरजण', पश्चिम एशिया का 'ऐरझन', यूनानी इतिहासकार जस्टिन का 'अजिणी', यूरोपीयन इतिहासकार 'रोरिंग' का अजाणी, काशीकाकार का अर्जुनी ', भारतीय इतिहासविदो तथा वेदों और पुराणों में 'अर्जुनाका, आर्जुनायन 'और' आर्जुणायन' शब्दों से मिल के आँजणा शब्द ने एक लंबा सफ़र तय किया है।
 
== आँजणा समाज के पृष्ठ को संपादन करने हेतु। जिस से लोग इसके बारे में और जानकारी मील पाएं। ==
 
{{infobox caste
| caste_name = आँजणा
| caste_name_in_local = चौधरी, कलबी, पटेल
| image =[[File:Jay arbuda.jpg|thumb|આંજણા ની કુળદેવી]]
| caption =
| identity = आँजणा कणबी/कलबी, चौधरी, पटेल, देसाई, वगैरह
| kula_devi = श्री माँ अर्बुदा, [[माउन्ट आबु]]
| religion = हिंदू
| country = [[भारत]]
| populated_states = [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[मध्यप्रदेश]], [[उत्तरप्रदेश]], [[बिहार]] और [[बंगाल]]
| profession = कृषि और पशुपालन
}}
 
==इतिहास==
 
सहस्त्रार्जुन के पुत्र जमदग्नि ऋषि के आश्रम में गए, ऋषि को टुकड़ों में काटकर उनकी हत्या कर दी। तभी परशुराम यात्रा कर के वापस आश्रम में आये तो माता रेणुका ने रोने लगी और सभी जानकारी बताई। तब परशुराम का रोम-रोम क्रोधित हो गया और उनके हाथ में फर्शी (कुल्हाड़ी) लिया और क्षत्रियों को हरा दिया और ब्राह्मणों को दान में उनके राज्य दे दिए। इस तरह, राम से लेकर कृष्ण तक 21 (इक्कीस) बार पृथ्वी को नक्षत्रिय किया गया।
 
जब मां अर्बुदा (कात्यायनी) की शरण में सहस्त्र अर्जुन के छह पुत्र गए तो परशुराम उनकी तलाश में आबू आए, तो मां अर्बुदा ने कहा, “इन्होंने मेरे समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है, इसलिए उन्हें जीवन दान दें। अब से ये लोग क्षत्रियत्व का त्याग कर देंगे और कृषि काम करेंगे। "मा अर्बुदा ने उनको बचाया तो उन्होंने मैया के पैर पकड़ लिए और आशीर्वाद मांगा। और कहा की," अब से, आप हमारे कुल देवी हैं, तो हमें मार्गदर्शन दें " जीवित रहने वाले छह (6) बेटों में से, दो बेटे आबू पर रहे और खेती शुरू की। और चार बेटे उत्तर प्रदेश चले गए और खेती शुरू कर दी। जैसे-जैसे उनकी आबादी बढ़ती गई, वे उत्तर प्रदेश और हरियाणा में फैल गए।
 
टोडरमल ने राजस्थान के इतिहास के बारे में लिखा तब हो सकता है जाट किसान थे, लेकिन वे चंद्रवंश के क्षत्रिय हैं। जो कश्यप गोत्र के हैं। जाट आबू पर खेती करने के लगे और उन्होंने मा अर्बुदा को कुलदेवी के मान के आत्मसमर्पण कर दिया था, इसलिए जाट आँजणा चौधरियों की कुलदेवी हैं।
 
 
ऐतिहासिक रूप से, सोलंकी राजा भीमदेव की बेटी अंजना बाई, जो कि पाटन के सिंहासन पर थीं, उन्होंने माउंट आबू में अंजान किले का निर्माण किया इसलियें वहाँ रहने वाले लोगों को अंजना कहा जाता है। सोलंकी एक चंद्रवंशी क्षत्रिय थे। अतः इस मत के अनुसार भी अंजन क्षत्रिय हैं।
 
 
बॉम्बे प्रेसीडेंसी पार्ट -12 (बार) (खानदेश) के गजेटियर में अंजना पाटीदारों के लिए निम्नलिखित लिखा है। खानदेश जिले में दो प्रकार के गुर्जर हैं, रेव और डोर। और रेव गुज्जर भीनमाल से निकल के मालवा होके खानदेश की और चले गए। गजेटियर में उनकी कई शाखाओं के नाम हैं। इसकी प्रमुख शाखाएँ हैं जैसे अंजना, आँजणा, आभय, पटलिया आदि। इन शाखाओं में से, अंजना या अंजना नाम की शाखा स्पष्ट रूप से सूचित की गई है।
 
जब विदेशियों ने 953 ईस्वीं (नौ सौ तिरपन) में भीनमाल पर आक्रमण किया तो कुछ गुर्जर भीनमाल छोड़कर अन्यत्र चले गए। इनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र शामिल थे। इस बार आँजणा पाटीदार भीनमाल से लगभग 2,000 (दो हजार) बैलगाड़ी जोड़ के भीनमाल से पलायन कर कस चंद्रावती में आकर बस गए। वहाँ से वह कच्छ के घानदार क्षेत्र में और वहाँ से गुजरात में आकर बस गए, जैसा कि भाट चारण की किताबों में और कुछ हद तक इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इन ऐतिहासिक नोटों से यह भी कहा जा सकता है कि आँजणा पाटीदार गुर्जर क्षत्रियों(यानी आर्य प्रजा) के प्रत्यक्ष वंशज हैं।
 
आँजणा पाटीदार की कुलदेवी "माँ अर्बुदा" हैं। उन्हें कात्यायनी के नाम से भी जाना जाता है। कात्यायनी नवदुर्गा का छठा अवतार है। आँजणा की पारिवारिक देवी माउंट आबू में बिराजमान है। उनके मंदिर को अध्धरदेवी के नाम से भी जाना जाता है। अर्बुदाँचल आबू को ऋग्वेद में अर्बुदा पर्वत के रूप में वर्णित किया गया है। माउंट आबुगिरी एक पवित्र भूमि है। हजारों वर्षों से यह पर्वत ऋषियों की तपस्या का स्थान रहा है।
 
गुजरात में रहने वाले सभी आँजणा पाटीदार लोगों की कुलदेवी "माँ अर्बुदा" अर्थात माँ कात्यायनी हैं। जिन्होंने परशुराम के कोप से क्षत्रियों को बचाया। भारत में अंजना मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, कच्छ और महाराष्ट्र में रहते है।
 
उन्हें "आँजणा", "आँजणा पटेल", "अंजना कणबी/ कलबी" और "चौधरी" के रूप में जाना जाता है। उनमें से कुछ खुद को 'पटेल', 'चौधरी', 'देसाई' के उपनामों से पुकारते हैं। जबकि कुछ अपने उपनामों से खुद को 'आँजणा' या अपने मौर्य, हुण, गुर्जर, मालव-मालवी, काग, जुवा, सोलंकी, भाटिया, लोह, हाडीया कहते हैं। आँजणाओ का मुख्य व्यवसाय खेती है। खेती के साथ-साथ वह पशुपालन का व्यवसाय भी करते है।
 
यूरोपीयन इतिहासकार एस.ए. रोरिंग कच्छ में रहने वाले आँजणा की पहचान राजपूतों के रूप में थी और उनके नाम 'अजाणी', 'अजानी' बताते हैं। जबकि ए.एस. अलटेकर और आर.सी. मजूमदार जैसे भारतीय इतिहासकार इन लोगों को 'अर्जुनिस' कहते हैं।
 
अर्जुनक, अर्जुनायन, आर्जुनायन, आर्जुणायन शब्दों के 'क', 'यन' प्रत्यक्षो को निकाल के और 'न' का 'ण' करने पर अर्जुणा, आर्जुणा नाम निकल आया और फिर अर्जुणा का अपभ्रंश करने पर आँजणा शब्द का जन्म हुआ। इस प्रकार मध्य एशिया का 'अरजण', पश्चिम एशिया का 'ऐरझन', यूनानी इतिहासकार जस्टिन का 'अजिणी', यूरोपीयन इतिहासकार 'रोरिंग' का अजाणी, काशीकाकार का अर्जुनी ', भारतीय इतिहासविदो तथा वेदों और पुराणों में 'अर्जुनाका, आर्जुनायन 'और' आर्जुणायन' शब्दों से मिल के आँजणा शब्द ने एक लंबा सफ़र तय किया है।