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{{वैश्वीकरण|1=article|2=यह भारतीय पक्ष को दिखाता है और वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं करवाता। |date=अगस्त 2020}}
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| name = गिलगित-बल्तिस्तान
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[[चित्र:काराकोरम राजमार्ग.png|thumb|[[काराकोरम राजमार्ग]]]][[काराकोरम राजमार्ग]] के साथ साथ [[हुन्ज़ा]] और [[शतियाल]] के बीच लगभग दस मुख्य स्थानों पर पत्थरों के काट कर और चट्टानों को तराश कर बनाये गये लगभग 20000 कला के नमूने मिलते हैं। इनको मुख्यत इस व्यापार मार्ग का प्रयोग करने वाले हमलावरों, व्यापारियों और तीर्थयात्रियों के साथ साथ स्थानीय लोगों ने भी उकेरा है। इन कला के नमूनों में सबसे पुराने तो 5000 और 1000 ईसापूर्व के बीच के हैं। इनमें अकेले जानवरों, त्रिकोणीय पुरुषों और शिकार के दृश्यों को जिनमें जानवरों का आकार अमूमन शिकारी से बड़ा है, को उकेरा गया है। पुरातत्वविद कार्ल जेटमर ने इन कला के नमूनों के माध्यम से इस पूरे इलाके के इतिहास को अपनी पुस्तक ''रॉक कार्विंग एंड इंस्क्रिपशन इन द नॉर्दन एरियास ऑफ पाकिस्तान'' में दर्ज किया है। इसके बाद उन्होने अपनी एक दूसरी पुस्तक ''बिटवीन गंधारा एंड द सिल्क रूट–रॉक कार्विंग अलोंग द काराकोरम हाइवे'' को जारी किया।
पाकिस्तान की स्वतंत्रता और 1947 में भारत के विभाजन से पहले, [[महाराज हरि सिंह|महाराजा हरि सिंह]] ने अपना राज्य गिलगित और बल्तिस्तान तक बढ़ाया था। विभाजन के बाद, संपूर्ण जम्मू और कश्मीर, एक स्वतंत्र राष्ट्र बना रहा। 1947 के भारत पाकिस्तान युद्ध के अंत में
पाकिस्तान सरकार ने 1974 में गिलगित-बाल्टिस्तान में राज्य विषय नियम (एसएसआर) को समाप्त कर दिया,<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/international-49517339|title=गिलगित-बल्तिस्तान के लोग पाकिस्तान से कितने ख़ुश}}</ref> जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए।<ref>{{Cite web|url=https://indianexpress.com/article/opinion/columns/those-troubled-peaks/|title=Those Troubled Peaks|date=May 11, 2015}}</ref><ref>{{Cite web|url=http://www.dawn.com/news/1188410|title=GB’s aspirations|first=Tahir|last=Mehdi|date=June 16, 2015|website=DAWN.COM}}</ref> वर्तमान में गिलगित-बल्तिस्तान, सात ज़िलों में बंटा हैं, इसकी जनसंख्या लगभग दस लाख और क्षेत्रफल 28,000 वर्ग मील है। इसकी सीमायें पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान और भारत से मिलती हैं। इस दूरदराज के क्षेत्र के लोगों को जम्मू और कश्मीर के पूर्व राजसी राज्य के डोगरा शासन से 1 नवम्बर 1947 को बिना किसी भी बाहरी सहायता के मुक्ति मिली और वे एक छोटे से समयांतराल के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक बन गए। इस नए राष्ट्र ने स्वयं के एक आवश्यक प्रशासनिक ढांचे के आभाव के फलस्वरूप पाकिस्तान की सरकार से अपनी सरकार के मामलों के संचालन के लिए सहायता मांगी। पाकिस्तान की सरकार ने उनके इस अनुरोध को स्वीकारते हुए उत्तरपश्चिम सीमांत प्रांत से सरदार मुहम्मद आलम खान जो कि एक अतिरिक्त सहायक आयुक्त थे, को गिलगित भेजा। इसके पहले नियुक्त राजनीतिक एजेंट के रूप में, सरदार मुहम्मद आलम खान ने इस क्षेत्र का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।
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