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राजा भोज बहुत बड़े वीर और प्रतापी होने के साथ-साथ प्रकाण्ड पंडित और गुणग्राही भी थे। इन्होंने कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। ये बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे। [[सरस्वतीकंठाभरण]], [[शृंगारमंजरी]], [[चंपूरामायण]], [[चारुचर्या]], [[तत्वप्रकाश]], [[व्यवहारसमुच्चय]] आदि अनेक ग्रंथ इनके लिखे हुए बतलाए जाते हैं। इनकी सभा सदा बड़े बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। इनकी पत्नी का नाम लीलावती था जो बहुत बड़ी विदुषी थी।
 
राजा भोज ने ज्ञान के सभी क्षेत्रों में रचनाएँ की हैं। उन्होने कोई ८४ ग्रन्थों की रचना की है। उनमें से प्रमुख हैं-<ref>{{Cite web |url=http://www.exoticindiaart.com/book/details/samarangana-sutradhara-of-bhojadeva-ancient-treatise-on-architecture-in-two-volumes-IDJ479/ |title=Samarangana Sutradhara of Bhojadeva: An Ancient Treatise on Architecture in Two Volumes) |access-date=25 अगस्त 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150914201912/http://www.exoticindiaart.com/book/details/samarangana-sutradhara-of-bhojadeva-ancient-treatise-on-architecture-in-two-volumes-IDJ479/ |archive-date=14 सितंबर 2015 |url-status=livedead }}</ref>
* [[भोजवृत्ति|राजमार्तण्ड]] ([[पतञ्जलि|पतंजलि]] के [[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]] की [[टीका]])
*[[सरस्वतीकंठाभरण]] ([[व्याकरण]])