"अन-नूर": अवतरणों में अंतर

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{{ज्ञानसन्दूक सूरा
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|Arabic_name= سورة النور
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|Meaning_of_name= प्रकाश
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इस पर सब सहमत है कि यह सूरा बनी मुस्तलिक के अभियान के पश्चात् अवतरित हुई है। किन्तु इसमें मतभेद हैं कि यह अभियान सन् 05 हिजरी में अहज़ब के अभियान से पहले घटित हुआ था या सन् 06 हिजरी में अहजाब के अभियान के पश्चात् । वास्तविक घटना क्या है, इसकी जांच- पड़ताल शरीअत के निहित हित (को समझने के लिए भी आवश्यक है, जो परदे के आदेशों में पाई जाती है, क्योंकि यह आदेश कुरआन मजीद की दो ही सूरतों में आए हैं, एक यह सूरा और, दूसरी सूरा 33 (अहज़ाब) जिसका अवतरण सभी के मतानुसार अहजाब के अभियान के अवसर पर हुआ है। इस उद्देश्य (से जब हम सम्बद्ध उल्लखों की छानबीन करते हैं, तो सही बात यही मालूम होती है कि यह सूरा) सन् 06 हिजरी के उत्तरार्द्ध में सूरा 33 (अहजाब) के कई महीने बाद अवतरित हुई है।
==ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ==
जिस पृष्ठभूमि में इस सूरा का अवतरण हुआ है वह संक्षेप में यह है: बद्र के युद्ध की विजय से अरब में इस्लामी आन्दोलन का जो उत्थान आरम्भ हुआ था वह खन्दक के अभियान (अहजाब के अभियान) तक पहुँचते-पहुंचते यहाँ तक पहुंच चुका था कि बहुदेववादी, यहूदी, मुनाफिक्र(कपटाचारी) और प्रतीक्षा करनेवाले , सभी यह महसूस करने लगे थे कि इस नवोदित शक्ति को केवल हथियारों और सेनाओं के बल पर परास्त नहीं किया जा सकता। (इसलिए उन्होंने अब एक नया उपाय अपनाया और अपने इस्लाम - दुश्मन) प्रयासों का रुख सामारिक कार्यवाइयों से हटाकर ओछे हमलों और आन्तरिक रूप से उपद्रव मचाने की ओर फेर दिया। इस नए उपाय का पहला प्रदर्शन जीकादा सन् 05 हिजरी में हुआ, जबकि नबी (सल्ल.) ने ले-पालक की अज्ञानकाल की रीति को समाप्त करने के लिए स्वयं अपने मुंहबोले बेटे (जैद बिन हारिसा) की तलाक़ दी हुई पत्नी (जैनब बिन्ते हजश) से विवाह किया। इस अवसर पर मदीना के मुनाफ़िक (कपटाचारी) प्रोपगंडे का एक बड़ा तूफान लेकर उठ खड़े हुए और बाहर से यहूदियों और बहुदेववादियों ने भी उनके स्वर में स्वर मिलाकर मिथ्यारोपणों का कार्य आरम्भ कर दिया। इन निर्लज्न मिथ्यारोपण करणेवालों ने नबी (सल्ल .) पर निकृष्ट नैतिक मिथ्यारोपण किए। तदन्तर दूसरा हमला बनी मुस्तलिक के अभियान के अवसर पर किया गया (जब एक मुहाजिर और एक अनसारी के साधारण झगड़े को मनाफ़िकों के सरदार अब्दुल्लाह - इब्ने - उवई ने एक महा - उपद्रव बना देना चाहा (इस घटना का विस्तार आगे सूरा 63 ( अल-मुनाफिकून) की टीका के परिचयात्मक लेख में आ रहा है । यह हमला पहले से भी ज्यादा सख्त था। यह शोशा अभी ताजा ही था कि इसी सफर में उसने एक और भयानक उपद्रव मचाया। यह हजरत आइशा (रजि. ) पर आरोप का उपद्रव था। इस घटना को स्वयं उन्हीं के मुख से सुनिए। वे कहते है कि " बनी मुस्तलिक के अभियान के अवसर (पर मैं नवी (सल्ल.) के साथ थी।) वापसी पर जब हम मदीना के निकट थे, एक पड़ाव पर रात के समय रसूल (सल्ल.) ने पड़ाव किया , और अभी कुछ रात शेष थी कि कूच की तैयारियां शुरू हो गई। मैं उठकर जरूरत से गई, और जब पलटने लगी तो ठहरने के स्थान के निकट पहुंचकर मुझे महसूस हुआ कि मेरे गले का हार टूटकर कही गिर पड़ा है । मैं उसे खोजने में लग गई . इतने में काफ़िला चल दिया। रीति यह थी कि मैं कूच के वक्त अपने हौदे में बेठ जाती थी और चार आदमी उसे उठाकर ऊँट पर रख देते थे। हम इस्त्रीयां उस समय खुराक की कमी के कारण बहुत हक्ली - फुल्की थीं। मेरा हौदा उठाते वक्त लोगों को यह महसूस ही न हुआ कि मैं उसमें नहीं हूँ । वे बेखबरी में खाली होदा ऊँट पर रखकर प्रस्थान कर गए। मैं जब हार ढूंढकर पलटी तो वहाँ कोई न था। अन्ततः अपनी चादर ओढ़कर वहीं लेट गई और मन में सोच लिया कि आगे चलकर जब ये लोग मुझे न पाएंगे तो स्वयं ही ढूंढते हुए आ जाएंगे। इसी हालत में मुझको नींद आ गई। प्रातः काल सफवान - बिन - मुअत्तल सुलमी उस स्थान से गुजरे जहाँ मैं सो रही थी और मुझे देखते ही पहचान गए , क्योंकि परदे का आदेश आने से पहले वे कई बार मुझे देख चुके थे। (ये साहब बदरी सहाबियों में से थे। इनको प्रातः देर से उठने की आदत थी, इसलिए ये भी सेना-स्थल में कहीं पड़े सोते रह गए थे और जब उठकर मदीना जा रहे थे।) मुझे देखकर उन्होंने ऊंट रोक लिया और सहसा उनके मुंह से निकला , " इन्ना लिल्लाहि व इना इलैहि राजिऊन (निस्संदेह हम अल्लाह के हैं और उसी की ओर हमें पलटना है। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की पत्नी यही रह गई। " इस आवाज़ से मेरी आँख खुल गई और मैंने उठकर तुरन्त अपने मुंह पर चादर डाल ली । उन्होंने मुझसे कोई बात न की, अपना ऊँट लाकर मेरे पास बिठा दिया और अलग हटकर खड़े हो गए । मैं ऊंट पर सवार हो गई और वे नकेल पकड़कर चल पड़े। दोपहर के निकट हम सेना में पहुंच गए , जबकि वह एक स्थान पर जाकर ठहरी ही थी और सेना के लोगों को अभी यह पता न चला था कि मैं पीछे छूट गई हूँ । इस पर लांछन लगानवालों ने लांछन लगा दिए और उनमें सबसे आगे अब्दुल्लाह इब्ने-उबई था। किन्तु मैं इससे बेख़बर थी कि मुझपर क्या बातें बन रही हैं। मदीना पहुंचकर मैं बीमार हो गई और एक महीना पलंग पर पड़ी रही। नगर में इस लांछन की खबरें उड़ रही थीं। अल्लाह के नबी (सल्ल.) तक यह बात पहुंच चुकी थी , किन्तु मुझे कुछ पता न था । अलबत्ता जो चीज़ मुझे खटकती थी वह यह कि अल्लाह के नवी (सल्ल.) उस प्रकार मेरी ओर ध्यान नहीं दे रहे थे, जिस प्रकार बीमारी के समय में दिया करते थे। आखिर आपकी अनुमति से मैं अपनी माँ के घर चली गई, ताकि वे मेरी सेवा शुश्रूषा भली - प्रकार कर सकें।
एक दिन रात के समय जरूरत से मैं मदीना के बाहर गई । उस समय हमारे घरों में शौचालय न थे और हम लोग जंगल ही जाया करते थे। मेरे साथ मिस्तह- बिन असासह की माँ भी थी। (उनसे मालूम हुआ कि लांछनकारी लोग मेरे बारे में क्या बातें उड़ा रहे हैं। यह दास्तान सुनकर मेरा खून सूख गया। वह ज़रूरत भी भूल गई जिसके लिए आई थी । सीधे घर गई और रात रो-रोकर काटी। आगे चलकर हजरत आइशा (रजि . ) कहती है कि एक दिन अल्लाह के नबी (सल्ल . ) ने अभिभाषण में कहा, " मुसलमानो, कौन है जो उस व्यक्ति के हमलों से मेरी इज्जत बचाए, जिसने मेरे घरवालों पर आरोपण करके मुझे अत्यन्त दुख पहुंचाया है। अल्लाह की कसम, मैंने न तो अपनी पत्नी ही में कोई बुराई देखी है और न उस व्यक्ति में जिसके साथ लांछन लगाया जाता है। वह तो कभी मेरी अनुपस्थिति में मेरे घर आया भी नहीं। " इस पर उसैद - बिन-हुजैर, खजरज के रईस (और कुछ उल्लेखों में सअद - बिन - मुआज) ने उठकर कहा, “ ए अल्लाह के रसूल , अगर वह हमारे कवीले का आदमी है तो हम उसकी गर्दन मार दें और अगर हमारे भाई खरजियों में से है, तो आप आदेश दें , हम आज्ञापालन के लिए उपस्थित हैं। " यह सुनते ही सअद - बिन - उवादा , सरज के रईस उठ खड़े हुए और कहने लगे, “ झूठ कहते हो, तुम कदापि उसे मार नहीं सकते । " उसैद - बिन - हुर्जर ने जवाब में कहा, " तुम मुनाफ़िक हो इसलिए मुनाफ़िकों का पक्ष लेते हो। " इसपर मस्जिदे-नववी में एक कोलाहल मच गया जबकि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) मिम्बर पर विराजमान थे। बहुत संभव था कि औस और खज़रज मस्जिद में ही लड़ पड़ते, किन्तु अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने उनको ठंडा किया और फिर मिम्बर से उतर आए। (इस विस्तृत वर्णन से भली - भाँति स्पष्ट हो जाता है ) कि अब्दुल्लाह - बिन - ठबई ने यह शोशा छोड़कर एक साथ कई शिकार करने की कोशिश की। एक तरफ उसने अल्लाह के रसूल (सल्ल.) और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (रजि.) की इज्जत पर हमला किया । दूसरी और उसने इस्लामी आंदोलन की उच्चतम प्रतिष्ठा को गिराने की कोशिश की। तीसरी तरफ़ उसने यह एक ऐसी चिंगारी फेंकी थी कि अगर इस्लाम अपने अनुयायियों की काया न पलट चुका होता तो मुहाजिर और अनसार और स्वयं अनसार के भी दोनों कबीले (औस और खजरज) आपस में लड़ मरते।
==विषय और वार्ताएँ==
ये थी वे परिस्थितियाँ जिनमें पहले हमले के अवसर पर सूरा 33 (अहजाब) की आयतें 28 से लेकर 73 तक अवतरित हुई । और दूसरे हमले के अवसर पर यह सूरा नूर उत्तरी। इस पृष्ठभूमि को दृष्टि में रखकर इन दोनों सूरतों का क्रमशः अध्ययन किया जाए तो वह तत्वदर्शित अच्छी तरह समझ में आ जाती है जो उनके आदेशों में निहित है। मुनाफ़िक्र (कपटाचारी) मुसलमानों को उस क्षेत्र में पराजित करना चाहते थे जो उनकी उच्चता का वास्तविक क्षेत्र था। अल्लाह ने इसके बदले कि मुसलमानों को जवाबी हमले पर उकसाता , पूर्ण रूपेण ध्यान उनको यह शिक्षा देने पर दिया कि तुम्हारे मुकाबले के नैतिक क्षेत्र में जहाँ-जहाँ रंध हैं उनको भरो और मुकाबले के इस क्षेत्र को और अधिक सुदृढ़ करो। (हज़रत जैनब के विवाह के अवसर पर) जब मुनाफ़िकों और काफिरों ने तूफान उठाया था (उस समय सामाजिक सुधार के सम्बन्ध में वे आदेश दिए गए थे , जो सूरा 33 (अहजाब ) में उल्लिखित है । फिर लांछन की घटना से जब मदीना के समाज में एक हलचल मची तो यह सूरा नूर नैतिक, सामाजिक और कानून के ऐसे आदेश और मार्गदर्शनों के साथ अवतरित की गई जिसका उद्देश्य यह था कि पहले तो मुस्लिम समाज को बुराइयों के उत्पन्न होने और उसके फैलाव से सुरक्षित रखा जाए और अगर वे पैदा ही हो जाएं तो उनका पूरा - पूरा निवारण किया जाए। इन आदेशों और निर्देशों को उसी क्रम के साथ ध्यानपूर्वक पढ़िए जिसके साथ वे इस सूरा में अवतरित हुए हैं, तो अंदाजा होगा कि कुरआन ठीक मनोवांछित अवसर पर मानव जीवन के सुधार और निर्माण के लिए किस तरह कानूनी (वैधानिक), नैतिक और सामाजिक उपाय एक साथ प्रस्तावित करता है। इन आदेशों और निर्देश के साथ-साथ मुनाफ़िकों और ईमानवालों के खुले-खुले लक्षण भी बयान कर दिए गए हैं जिससे हर मुसलमान यह जान सके कि समाज में निश्छल ईमानवाले कौन लोग हैं और मुनाफ़िक (कपटाचारी) कौन? दूसरी तरफ मुसलमानों के सामूहिक अनुशामान को और कस दिया गया। इस समय वार्ता में स्पष्ट चीज देखने को यह है कि पूरी सूरा नूर उस कटुता से खाली है जो लज्जाजनक और अश्लील हमलों के प्रत्युत्तर में उत्पन्न हुआ करती है । इतनी अधिक उत्तेजक परिस्थितियों में कैसे ठंडे तरीके से कानून की रचना की जा रही है, सुधारात्मक आदेश दिए जा रहे हैं , तत्त्वदर्शितायुक्त आदेश दिए जा रहे हैं और शिक्षा और उपदेश का हक़ अदा किया जा रहा है। इससे केवल यही शिक्षा नहीं मिलती कि हमें उपद्रवों के मुक़ाबले में तीव्र से तीव्र उत्तेजना के अवसरों पर भी किस प्रकार ठंडे विचार , विशाल - हृदयता और विवेक से काम लेना चाहिए, बल्कि इससे इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि यह वाणी मुहम्मद (सल्ल . ) की अपनी रचना नहीं है, किसी ऐसी सत्ता ही की अवतरित की हुई है जो बहुत उच्च स्थान से मानव की परिस्थितियों और मामलों का निरीक्षण कर रही है। और अपने आपमें इन परिस्थितियों और मामलों से अप्रभावित रहकर विशुद्ध निर्देश और मार्गदर्शन के पद का हक़ अदा कर रही है। अगर यह नबी (सल्ल.) की अपनी वाणी होती तो आपकी अत्यान्तिक उच्च दृष्टि के बावजूद इसमें उस स्वाभाविक कटुता का कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य पाया जाता, जो स्वयं अपनी इज़्ज़त और प्रतिष्ठा पर ओछे हमलों को सुनकर एक सज्जन व्यक्ति की भावनाओं में अवश्य ही पैदा हो जाया करती है।
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{{मुख्य|बिस्मिल्लाह|बिस्मिल्लाह=}}
 
24|1| यह एक (महत्वपूर्ण) सूरा है, जिसे हमने उतारा है। और इसे हमने अनिवार्य किया है, और इसमें हमने स्पष्ट आयतें (आदेश) अवतरित की है। कदाचित तुम शिक्षा ग्रहण करो<ref>An-Nur सूरा का हिंदी अनुवाद http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/24:1 {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20180425183153/http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/15:1 |date=25 अप्रैल 2018 }}</ref>
 
24|2| व्यभिचारिणी और व्यभिचारी - इन दोनों में से प्रत्येक को सौ कोड़े मारो और अल्लाह के धर्म (क़ानून) के विषय में तुम्हें उनपर तरस न आए, यदि तुम अल्लाह औऱ अन्तिम दिन को मानते हो। और उन्हें दंड देते समय मोमिनों में से कुछ लोगों को उपस्थित रहना चाहिए
 
24|3| व्यभिचारी किसी व्यभिचारिणी या बहुदेववादी स्त्री से ही निकाह करता है। और (इसी प्रकार) व्यभिचारिणी, किसी व्यभिचारी या बहुदेववादी से ही निकाह करते है। और यह मोमिनों पर हराम है
 
24|4| और जो लोग शरीफ़ और पाकदामन स्त्री पर तोहमत लगाएँ, फिर चार गवाह न लाएँ, उन्हें अस्सी कोड़े मारो और उनकी गवाही कभी भी स्वीकार न करो - वही है जो अवज्ञाकारी है। -
 
24|5| सिवाय उन लोगों के जो इसके पश्चात तौबा कर लें और सुधार कर लें। तो निश्चय ही अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है
 
24|6| औऱ जो लोग अपनी पत्नियों पर दोषारोपण करें औऱ उनके पास स्वयं के सिवा गवाह मौजूद न हों, तो उनमें से एक (अर्थात पति) चार बार अल्लाह की क़सम खाकर यह गवाही दे कि वह बिलकुल सच्चा है
 
24|7| और पाँचवी बार यह गवाही दे कि यदि वह झूठा हो तो उसपर अल्लाह की फिटकार हो
 
24|8|पत्ऩी से भी सज़ा को यह बात टाल सकती है कि वह चार बार अल्लाह की क़सम खाकर गवाही दे कि वह बिलकुल झूठा है
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