छो सद्गुरु महर्षि मेंहीं अमृतवाणी से मानव शरीर की विशेषता के बारे में बतलाया।
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'''<big>मानव शरीर</big>-''' '''''मनुष्य का शरीर अद्भुत है । अज्ञानी लोग ख्याल करते हैं कि यह शरीर केवल मांस , हड्डी , चर्म आदि का समूह है , परंतु विशेषज्ञ जानते हैं कि इतना ही नहीं है केवल स्थूल ज्ञान में रहनेवाले जो जानते हैं , वह तो प्रत्यक्ष है ; किन्तु इस प्रत्यक्ष के अन्दर अप्रत्यक्ष भी है , उसे विशेषज्ञ और सूक्ष्मदर्शी जानते हैं''''' । स्थूलदर्शी दो तरह के होते हैं - एक विद्या - बुद्धि में बढ़े लोग और दूसरे विद्या - बुद्धि में कम और हीन । अच्छे अच्छे डॉक्टर शरीर के भीतर को जानते हैं , किन्तु उसके स्थूल अंशों को ही । इसके अतिरिक्त जो अधिक जाननेवाले हैं , वे जानते हैं कि शरीर के अन्दर स्थूल भाग के अतिरिक्त सूक्ष्म भाग भी है , जो डॉक्टरी यंत्र से नहीं जाना जाता । कोई दूसरे केवल पढ़ - सुनकर , समझकर जानते हैं , '''''सुन - समझ और प्रत्यक्ष पाकर जानते हैं । उन लोगों के ज्ञानानुसार यह शरीर विचित्र है । विश्व ब्रह्माण्ड में जो सब तत्त्व हैं , शरीर में भी वे सब ही हैं । यदि अपने अन्दर सूक्ष्मतल पर कोई जाय , तो उसको सूक्ष्मतल पर का सब कुछ वैसा ही मालूम होगा , जैसा स्थूल तल पर रहने से उस तल का सब कुछ मालूम होता है । स्थूल तल पर आप दूर तक देखते हैं और विचरण करते हैं ; उसी प्रकार सूक्ष्मतल पर आरूढ़ हुआ दूर तक देख सकता और विचरण कर सकता है''''' । स्थूल तल पर रहने से आपको मालूम होता है कि स्थूल शरीर में रहता हूँ और स्थूल संसार में काम करता हूँ । उसी प्रकार आप अपने सूक्ष्म तल पर रहें तो मालूम करेंगे कि सूक्ष्म शरीर में हूँ और सूक्ष्म संसार में विचरण करता हूँ , काम करता और देखता हूँ । [https://satsangdhyan.blogspot.com/2020/09/s55-visions-of-universe-in-human-body.htmlसद्गुरु&#x20;महर्षि&#x20;मेंही&#x20;अमृतवाणी&#x20;से]
 
'''ब्रह्माण्ड लक्षणं सर्व देहमध्ये व्यवस्थितम् ।''' -ज्ञानसंकलिनीतंत्र
 
'''सकल दृश्य निज उदर मेलि सोवइ निद्रातजि योगी''' । -गोस्वामी तुलसीदासजी
 
'''जो जग घट घट माहिं समाना ।घटि घटि जगजीव माहि जहाना''' ।। '''पिण्ड माहिं ब्रह्माण्ड , ताहि पार पद तेहि लखा । तुलसी तेहि की लार , खोलि तीनिपट भिनि भई ।।''' -तुलसी साहब
 
 
 
 
 
 
== शरीर के अंग ==
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