"साँचा:गांधी के सिद्धांत": अवतरणों में अंतर
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गाँधी का जन्म हिंदू धर्म में हुआ, उनके पूरे जीवन में अधिकतर सिद्धान्तों की उत्पति [[हिन्दू धर्म|हिंदुत्व]] से हुआ। साधारण हिंदू की तरह वे सारे धर्मों को समान रूप से मानते थे, और इसलिए उन्होंने धर्म-परिवर्तन के सारे तर्कों एवं प्रयासों को अस्वीकृत किया। वे ब्रह्मज्ञान के जानकार थे और सभी प्रमुख धर्मो को विस्तार से पढ़ते थे। उन्होंने हिंदू धर्म के बारे में निम्नलिखित बातें कही हैं-
:हिंदू धर्म, इसे जैसा मैंने समझा है, मेरी आत्मा को पूरी तरह तृप्त करता है, मेरे प्राणों को आप्लावित कर देता है,... जब संदेह मुझे घेर लेता है, जब निराशा मेरे सम्मुख आ खड़ी होती है, जब क्षितिज पर प्रकाश की एक किरण भी दिखाई नहीं देती, तब मैं '[[श्रीमद्भगवद्गीता|भगवद्गीता]]' की शरण में जाता हूँ और उसका कोई-न-कोई श्लोक मुझे सांत्वना दे जाता है, और मैं घोर विषाद के बीच भी तुरंत मुस्कुराने लगता हूं। मेरे जीवन में अनेक बाह्य त्रासदियां घटी है और यदि उन्होंने मेरे ऊपर कोई प्रत्यक्ष या अमिट प्रभाव नहीं छोड़ा है तो मैं इसका श्रेय 'भगवद्गीता' के उपदेशों को देता हूँ।<ref>महात्मा गांधी के विचार, सं०- आर० के० प्रभु एवं यू० आर० राव, नेशनल बुक ट्रस्ट, नयी दिल्ली, संस्करण-2005, पृ०-88.</ref>
[[Image:Gandhi Smriti.jpg|thumb|right|''गाँधी स्मृति'' (
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