"पाण्डुलिपि": अवतरणों में अंतर
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: ('' मुझे जल से, तेल से, ढ़ीले बन्धन (बाइंडिंग) से बचायें। मुझे मूर्ख के हाथ में नहीं थमाना चाहिये - ऐसा पुस्तक कहता है।''
== इतिहास ==
मातृकाग्रन्थों का मुख्य उद्देश्य भारतीयज्ञान की अतिप्राचीन परम्परा का संरक्षण है । [[वेद|वेदों]] के गंभीर ज्ञान से लेकर [[पञ्चतन्त्र]] की बालकथाओं तक संस्कृत में विषय-विविधता विद्यमान है। हजारों वर्षों से सङ्कलित और संरक्षित यह ज्ञान युगों युगों से चला आ रहा है । अंत: मातृकाग्रन्थों या '''पाण्डुलिपियों''' का इतिहास ही भारतीयपरम्परा का इतिहास माना जाता है । बल-विक्रम और आयु के साथ कालान्तर में मनुष्य की स्मृतिशक्ति का ह्रास हुआ । जिस ह्रास के कारण ज्ञान का और शोधप्रबन्धों का रक्षण करने के लिए मातृकाग्रन्थों की वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग आरम्भ हुआ । मातृकाग्रन्थ अनेक प्रकार के होते हैं , परन्तु उनमें [[तालपत्र|ताडपत्र]], [[भोजपत्र|भोजपत्र,]] [[अभिलेख|ताम्रपत्र]] और [[सुवर्णपत्र]] आदि प्रसिद्ध प्रकार हैं । वर्तमान में सर्वाधिक मातृकाग्रन्थ भोजपत्रों और ताडपत्रों में प्राप्त होते हैं । ताडपत्र लौह [[लेखनी]] से लिखे जाते थे । मातृकाग्रन्थों के लेखन में विशिष्ट साधन और कौशल की अपेक्षा होती है । मातृकाग्रन्थ के लेखक विद्वान और कलाओं से पूर्ण (कुशल) होने चाहिए । [[जर्मनी]] देश के वेद विद्वान [[मैक्स मूलर|मैक्समूलर]] (१८२३-१९००) ने अपनी [[पुस्तक]] में लिखा है कि "इस समस्त संसार में ज्ञानियों और पण्डितों का देश एकमात्र [[भारत]] ही है, जहाँ विपुल ज्ञानसम्पदा हस्तलिखित ग्रन्थों के रूप में सुरक्षित है "।
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