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{{for|ईश्वर फ़िल्म|ईश्वर (1989 फ़िल्म)}}
वह ऊर्जा है जिसने ‌इस सृष्टि का निर्माण किया है वह ईश्वर है ईश्वर का नाम वैज्ञानिक (वैदिक) नाम ॐ है इश्वर ने ना सिर्फ सृष्टि बनाई अपितु इसके नियम भी बनाए जिसका अर्थ है इश्वर के नियम सार्वभौमिक व सार्वकालिक है अर्थात यह नियम न किसी भी काल में समान रहेगा परिवर्तन नहीं होगा और वह स्वयं भी अपने नियम नहीं छोड़ेंगे इसलिए इश्वर न्यायकारी है
{{Distinguish|देवता}}
उसने अनगिनत सृष्टि की रचना की है और मानव उनकी सबसे शक्तिशाली रचना है उन्होंने कर्म के आधार पर सृष्टि व जीव जंतुओ को बनाया है और उसमें चलन के लिए लिय वेद का निर्माण किया, वेद को सर्वप्रथम श्रुति कहा गया कारण उस समय वेद को केवल सुन कर स्मरण किया जाता था कुछ काल पश्चात इश्वर कृपा से देवराज इन्द्र ने संस्कृत भाषा लिखने के लिए वर्ण (लिपि) बनाया तत्पश्चात आज वेद हम पढ़ पाते हैं।
{{एक स्रोत}}
अतिरिक्त ज्ञान
'''परमेश्वर''' वह सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस [[ब्रह्माण्ड|संसार]] का सृष्टा और शासक माना जाता है। हिन्दी में ईश्वर को [[भगवान]], [[परमात्मा]] या [[परमेश्वर]] भी कहते हैं। अधिकतर धर्मों में परमेश्वर की परिकल्पना [[ब्रह्माण्ड]] की संरचना से जुड़ी हुई है।
वेदों के अनुसार आत्मा अर्थात ऊर्जा न तो निर्माण किया गया न कभी जन्म हुआ यह केवल मृत्यु के पश्चात शरीर परिवर्तित करता है अर्थात नये भ्रून में प्रवेश कर नया शरीर धारण कर लेता है।
[[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] की ईश् [[धातु]] का अर्थ है- नियंत्रित करना और इस पर वरच् प्रत्यय लगाकर यह शब्द बना है। इस प्रकार मूल रूप में यह शब्द नियंता के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इसी धातु से समानार्थी शब्द ईश व ईशिता बने हैं।<ref>{{ Citation
(और यह भूत-प्रेत केवल कल्पित कथाए है जो आज सामाज ढो रहा है मनुष्य दुःख चिंता के कारण मानसिक विवाद उत्पन्न होने के कारण भ्रमित हो जाता है और कुछ नहीं )
| last1=आप्टे
| first1=वामन शिवराम
| title=द प्रैक्टिकल् संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी
| publisher= मोतीलाल बनारसीदास
| place=दिल्ली, वाराणसी, पटना, मद्रास
| edition=चौथा
| year=१९६५
}}</ref>
 
[[File:YHWH.svg|thumb|200px|नाम [[यहोवा]] इब्रानी में]]
 
== धर्म और दर्शन में परमेश्वर की अवधारणाएँ ==
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इस्लाम मे मुसलमानो को खड़े खुले में पेशाब(इस्तीनज़ा) करने की इजाज़त नही क्योंकि इससे इंसान नापाक होता है और नमाज़ पढ़ने के लायक नही रहता इसलिए इस्लाम मे बैठके पेशाब करने को कहा गया है और उसके बाद पानी से शर्मगाह को धोने की इजाज़त दी गयी है।
 
इस्लाम मे 5 वक़्त की नामाज़ मुक़र्रर की गई है और हर नम्र फ़र्ज़ है। इस्लाम मे रमज़ान एक पाक महीना है जो कि 30 दिनों का होता है और 30 दिनों तक रोज़ रखना जायज़ हैजिसकी उम्र 12 या 12 से ज़्यादा हो।<ref>{{Cite web|url=https://www.jansatta.com/religion/ramadan-2019-history-and-significant-know-about-how-long-ramadan-what-is-its-recognition-in-islam/1002116/|title=जानिए, कब से शुरू हुआ रमजान, इस्लाम में क्या है इसकी मान्यता|date=2019-05-04|website=Jansatta|language=hi|access-date=2020-10-03}}</ref> 12 से कम उम्र पे रोज़ फ़र्ज़ नही। सेहत खराब की हालत में भी रोज़ फ़र्ज़ नही लेकिन रोज़े के बदले ज़कात देना फ़र्ज़ है। वैसा शख्स जो रोज़ा न रख सके किसी भी वजह से तो उसको उसके बदले ग़रीबो को खाना खिलाने और उसे पैसे देने या उस गरीब की जायज़ ख्वाइश पूरा करना लाज़मी है!है। मुसलमान कुरान का ज्ञान देने वाले को अल्लाह यानीमानते परमेश्वरहैं केलेकिन अलावासूरत कोई25 भीआयत पूजने59 योग्यमें नहींप्रमाण है कि वास्तविक अल्लाह कुरान का ज्ञान देने वाले से भिन्न है, और नाउसका हीनाम कोईकबीर दूसराहै<ref>{{Cite मददगारweb|url=https://www.jagatgururampalji.org/hi/quran-sharif|title=कुरान हैशरीफ (इस्लाम) में सर्वशक्तिमान अविनाशी भगवान (अल्लाह कबीर) {{!}} Jagat Guru Rampal Ji|website=www.jagatgururampalji.org|access-date=2020-10-03}}</ref>
 
=== हिन्दू धर्म ===
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[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
[[श्रेणी:इस्लाम]]
 
आस्तिकता या ईश्वरी विश्वास का अर्थ है -
1) काल्पनिक ईश्वर रूपी शब्द नाम का जप करना।
2) दूसरों जीवो का भला करना।
3) दूसरा जीवो का पुराना करना।
4) अपना काम स्वयं करना ।
{वीरेंद्र बांकरिया}
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ईश्वर" से प्राप्त